आपातकाल में हिटलर और अंग्रेजों के शासन से ज्यादा किया गया अत्याचार RK Sinha Patna News
एएन सिन्हा इंस्टीट्यूट में लोकनायक जयप्रकाश सामाजिक परिवर्तन संस्थान के बैनर तले आपातकाल एक काला अध्याय विषय पर राष्ट्रीय संगोष्ठी आयोजित की गई।
By Edited By: Published: Thu, 27 Jun 2019 01:39 AM (IST)Updated: Thu, 27 Jun 2019 08:54 AM (IST)
पटना, जेएनएन। आपातकाल विरोध दिवस के बहाने जेपी सेनानियों की बैठक बुधवार को एएन सिन्हा इंस्टीट्यूट में हुई। लोकनायक जयप्रकाश सामाजिक परिवर्तन संस्थान के बैनर तले 'आपातकाल एक काला अध्याय' विषय पर राष्ट्रीय संगोष्ठी में राज्यसभा सांसद रवींद्र किशोर सिन्हा, बिहार सरकार के पूर्व मंत्री नरेंद्र सिंह, पूर्व सांसद देवदास आप्टे, दिल्ली से आए डॉ. वेद व्यास, प्रदीप जैन, अशोक आहूजा, पटना विवि के सेवानिवृत्त प्रो. रमाकांत पांडेय ने आपातकाल से जुड़ी यादें सभागार में साझा कीं।
गोष्ठी के दौरान राज्यसभा सांसद आरके सिन्हा ने आपातकाल को देश के इतिहास में सबसे बड़ा धब्बा बताया। सिन्हा ने कहा कि उस समय की सरकार ने जिस प्रकार अत्याचार किया था, वैसा अत्याचार हिटलर और अंग्रेजों ने भी नहीं किया। इस इमरजेंसी को हर साल याद करना जरूरी है, ताकि देश में दुबारा इस घटना को न दुहराया जा सके।
जेपी को मिला था हर लोगों का साथ
जेपी आंदोलन की चर्चा करते हुए सिन्हा ने कहा कि आंदोलन में सभी लोगों का साथ मिलता रहा। इस आंदोलन में हर वर्ग के विचारधारा से जुड़े लोग शामिल थे। आंदोलन में मार्क्सवादी और भाकपा माले के लोग भी जुड़े। वर्ष 1975 में 16-17 और 18 जनवरी को राजधानी पटना के छज्जूबाग में एक बैठक में गहन चर्चा और संवाद के बाद छात्र आंदोलन करने का निर्णय लिया गया। 18 मार्च को पटना में जुलूस निकाला गया। घटना के बाद पांच जून को पटना के गांधी मैदान में जन सैलाब उमड़ पड़ा। सभी जेपी को सुनने आए थे।
सिन्हा ने कहा कि आपातकाल का प्रभाव प्रेस पर भी पड़ा। बडे़-बड़े अखबार अपने संपादकीय पृष्ठ को सादा छोड़ दिया करते थे अथवा काला कर दिया करते थे। आपातकाल के दौरान बुजुर्गो को भी कमर और हाथ में रस्सी बांधकर सड़क पर घुमाते हुए कोर्ट ले जाया जाता था।
समारोह की अध्यक्षता करते हुए पूर्व मंत्री नरेंद्र सिंह ने कहा कि वो दिन देश में फिर न आए, इसके लिए लोगों को एकजुट होने की जरूरत है। देवदास आप्टे ने कहा कि आंदोलनकारियों को जेल में कई प्रकार की यातनाएं दी जाती थीं। गोली मारने की धमकी मिलती थी। ये सारा आंदोलन लोकतंत्र को बचाने के लिए हुआ। आपातकाल में 1977 में राष्ट्रीय जनता पार्टी बनी थी। प्रो. रमाकांत पांडेय ने कहा कि ये देश के इतिहास में सबसे बड़ा दुर्भाग्य समय रहा। मंच का संचालन करते हुए कुमार अनुपम ने जेपी से जुड़ी यादें साझा की। जेपी द्वारा जेल में लिखे गए पत्र को प्राप्त कर उसके प्रकाशन में सहयोग करने की बात कही।
गोष्ठी के दौरान राज्यसभा सांसद आरके सिन्हा ने आपातकाल को देश के इतिहास में सबसे बड़ा धब्बा बताया। सिन्हा ने कहा कि उस समय की सरकार ने जिस प्रकार अत्याचार किया था, वैसा अत्याचार हिटलर और अंग्रेजों ने भी नहीं किया। इस इमरजेंसी को हर साल याद करना जरूरी है, ताकि देश में दुबारा इस घटना को न दुहराया जा सके।
जेपी को मिला था हर लोगों का साथ
जेपी आंदोलन की चर्चा करते हुए सिन्हा ने कहा कि आंदोलन में सभी लोगों का साथ मिलता रहा। इस आंदोलन में हर वर्ग के विचारधारा से जुड़े लोग शामिल थे। आंदोलन में मार्क्सवादी और भाकपा माले के लोग भी जुड़े। वर्ष 1975 में 16-17 और 18 जनवरी को राजधानी पटना के छज्जूबाग में एक बैठक में गहन चर्चा और संवाद के बाद छात्र आंदोलन करने का निर्णय लिया गया। 18 मार्च को पटना में जुलूस निकाला गया। घटना के बाद पांच जून को पटना के गांधी मैदान में जन सैलाब उमड़ पड़ा। सभी जेपी को सुनने आए थे।
सिन्हा ने कहा कि आपातकाल का प्रभाव प्रेस पर भी पड़ा। बडे़-बड़े अखबार अपने संपादकीय पृष्ठ को सादा छोड़ दिया करते थे अथवा काला कर दिया करते थे। आपातकाल के दौरान बुजुर्गो को भी कमर और हाथ में रस्सी बांधकर सड़क पर घुमाते हुए कोर्ट ले जाया जाता था।
समारोह की अध्यक्षता करते हुए पूर्व मंत्री नरेंद्र सिंह ने कहा कि वो दिन देश में फिर न आए, इसके लिए लोगों को एकजुट होने की जरूरत है। देवदास आप्टे ने कहा कि आंदोलनकारियों को जेल में कई प्रकार की यातनाएं दी जाती थीं। गोली मारने की धमकी मिलती थी। ये सारा आंदोलन लोकतंत्र को बचाने के लिए हुआ। आपातकाल में 1977 में राष्ट्रीय जनता पार्टी बनी थी। प्रो. रमाकांत पांडेय ने कहा कि ये देश के इतिहास में सबसे बड़ा दुर्भाग्य समय रहा। मंच का संचालन करते हुए कुमार अनुपम ने जेपी से जुड़ी यादें साझा की। जेपी द्वारा जेल में लिखे गए पत्र को प्राप्त कर उसके प्रकाशन में सहयोग करने की बात कही।
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