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राजनीति और साहित्य के स्तंभ थे डॉ. सुधांशु

पटना। हिदी भाषा के उन्नयन में भारत के जिन महानुभावों ने अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया उनमें बेहद समर्पण भाव था।

By JagranEdited By: Published: Tue, 19 Jan 2021 01:36 AM (IST)Updated: Tue, 19 Jan 2021 01:36 AM (IST)
राजनीति और साहित्य के स्तंभ थे डॉ. सुधांशु
राजनीति और साहित्य के स्तंभ थे डॉ. सुधांशु

पटना। हिदी भाषा के उन्नयन में भारत के जिन महानुभावों ने अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया, उनमें डॉ. लक्ष्मी नारायण सिंह 'सुधांशु' का नाम भी आता है। वे बिहार हिदी साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष होने के साथ विधानसभा के भी अध्यक्ष थे। राजनीति और साहित्य दोनों के आदर्श व्यक्तित्व थे। राजनीति में उनके आदर्श महात्मा गांधी थे और साहित्य में राजर्षि पुरुषोत्तम दास टंडन। सोमवार को उनकी जयंती पर आयोजित काव्य गोष्ठी में यह बातें सुनने को मिलीं।

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बिहार हिदी साहित्य सम्मेलन की ओर से गोष्ठी का आयोजन किया गया था। अध्यक्षता करते हुए अध्यक्ष डॉ. अनिल सुलभ ने कहा, डॉ. सुधांशु हिदी प्रगति समिति से भी जुड़े रहे। बिहार राष्ट्रभाषा परिषद की स्थापना में उनका योगदान रहा। विश्वविद्यालय सेवा आयोग बिहार के अध्यक्ष डॉ. राजव‌र्द्धन आजाद ने कहा, जो व्यक्ति साहित्यकार होता है, वह राजनैतिक भी होता है। वे इन दोनों ही धाराओं में मधुर सामंजस्य बनाने में सफल रहे थे। डॉ. शंकर प्रसाद ने कहा, सुधांशुजी बड़े कथाकार, कवि, समालोचक, पत्रकार और प्रतिष्ठित राजनेता थे। उन्होंने निबंध, आलोचना, संस्मरण आदि गद्य की अनेक विधाओं को समृद्ध किया। जयंती पर मधु वर्मा, राजकुमार प्रेमी, चंदा मिश्र, स्वामी गिरिधर गिरि आदि ने विचार दिए। साहित्यकारों ने जयंती पर लघुकथा का पाठ किया। मंच का संचालन डॉ. पल्लवी विश्वास ने किया। मैथिली साहित्य को वैश्विक पटल पर लाना युवा साहित्यकारों की जिम्मेदारी

पटना। दक्षिणपंथ और वामपंथ दोनों अपनी-अपनी विचारधारा से इतर हो गए हैं। अगर ऐसा नहीं होता तो इतनी मत-भिन्नता नहीं रहती। सोमवार को ये बातें युवा कथाकार व शोध वैज्ञानिक शुभेंदु शेखर ने ऑनलाइन कार्यक्रम के दौरान कहीं। प्रभा खेतान फाउंडेशन, मसि इंक और श्रीसीमेंट की ओर से होने वाले मासिक कार्यक्रम 'आखर' के दौरान शुभेंदु शेखर ने युवा साहित्यकार गुंजनश्री से बातचीत के दौरान कही।

आखर बिहार फेसबुक पेज पर कार्यक्रम के दौरान युवा कथाकार शेखर ने कहा, साहित्य के प्रति उनका रूझान बचपन से ही रहा। आरंभ के दिनों में साहित्य का सफर चंपक से होते हुए मैथिली व विदेशी भाषा के साहित्य तक पहुंचा। उन्होंने कहा, जब अपने राज्य से दूसरे राज्य की ओर पलायन किया तो अपनी भाषा और माटी को लेकर विशेष अनुराग उत्पन्न हुआ। इसके बाद से मैथिली में लिखना आरंभ किया। कथा संग्रह 'ओकरो कहियो पांखि हेतै' अंतिका प्रकाशन से प्रकाशित हुआ। उन्होंने मैथिली साहित्य के विकास पर कहा कि मैथिली लिटरेचर फेस्टिवल हो रहा है, लेकिन उसे वैश्विक पटल पर लाने की जरूरत है। इसमें युवा साहित्यकारों को अपनी जिम्मेदारी निभानी होगी। धन्यवाद ज्ञापन मसि इंक की संस्थापक और निदेशक आराधना प्रधान ने किया। कार्यक्रम के दौरान पद्मश्री ऊषा किरण खान, अरुणाभ सौरभ, कमल मोहन चुन्नू, नारायणजी मौजूद थे।


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