दहेज की कोढ़ से कबतक मिलेगी मुक्ति, हर रोज लील लेती है 22 बेटियों की जान
चंद रुपयों और जायदाद के लिए किसी की बेटी को जिंदा जला देना, उसकी हत्या कर देना क्या यह हमारे विकसित और सभ्य समाज की पहचान है? क्या बेटों को बेचने की परंपरा खत्म नहीं हो सकती....
पटना [सुनील राज]। हमारे सामने दो तस्वीरें हैं। पहली, नवरात्र में लड़कियों को देवी मानकर उनके पैर पूजते समाज की। दूसरी, दहेज के लिए ब्याहताओं को आग में झोंकते-जलाते समाज की। दोनों में स्वार्थ और अतिवाद दिखता है। यही हमारे समाज की विडंबना है कि हम स्त्री को उसके वास्तविक स्वरूप में स्वीकार नहीं करते।
दहेज प्रथा दुनिया के तमाम देशों में प्रचलित निकृष्टतम कुप्रथाओं में एक है जिसमें लड़की की शादी के लिए परोक्ष रूप से लड़का खरीदा जाता है। हम सभ्यता और विकास के उस दौर में दाखिल हो चुके हैं जहां तमाम पशुओं-पक्षियों की प्रजातियों की खरीद-फरोख्त पर भी प्रतिबंध लग चुका है। इसके विपरीत 'दूल्हों की बिक्री' बदस्तूर जारी है।
लालच और लोलुपता की इंतिहा यह कि लड़के की पारिवारिक पृष्ठभूमि और कॅरियर के हिसाब से दहेज के रेट तय हैं। दहेज जुटाने के लिए मकान और खेत बेचने पड़ते हैं। जिंदगी भर की सारी बचत और प्रॉविडेंट फंड फूंक देना पड़ता है। कर्ज लेना पड़ता है। इसके बावजूद दहेज-लोलुपों की जेब नहीं भरती तो बेटियां जिंदा जलाई जाती हैं।
आंकड़े कभी झूठ नहीं बोलते
आंकड़े कभी झूठ नहीं कहते। वे तो हमें आइना दिखाते हैं। देश दुनिया में जो घट रहा है उसकी बानगी बयां करते हैं। आंकड़े चीख-चीख कर कह रहे हैं कि अकेले बिहार में हर रोज दहेज के लिए तीन बेटियों को मार दिया जाता है। हमारी बेटियों की यह हत्या कोई बाहरी व्यक्ति नहीं करता। यह हत्याएं तो उनके अपने ही करते हैं।
पूरे देश में हर रोज मार दी जाती हैं 22 बेटियां
ऐसा नहीं कि सिर्फ बिहार में बेटियों को दहेज के लिए सताया या मार दिया जा रहा हो, कमोबेश पूरे देश की यह स्थिति है। राष्ट्रीय क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़े तस्दीक करते हैं कि जहां बिहार में प्रत्येक दिन तीन लड़कियों को दहेज का दानव लील रहा है वहीं देश में ऐसी वारदातों की संख्या 21 से 22 के करीब है।
भारत सरकार की ओर से दो वर्ष पूर्व राष्ट्रीय क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़े सार्वजनिक किए गए। जिसमें बताया गया कि बीते तीन साल के दौरान चौबीस हजार सात सौ इकहत्तर बेटियों को दहेज का दानव निगल गया।
दहेज हत्या में बिहार दूसरे पायदान पर
दहेज हत्या के मामलों में पहला नंबर बिहार के पड़ोसी राज्य उत्तर प्रदेश का है। उत्तर प्रदेश में तीन साल में सात हजार अड़तालिस बेटियों को मार दिया गया। इस पायदान में बिहार का नंबर दूसरा रहा। यहां करीब 3830 बेटियां दहेज की आग में समा गईं। तीसरे नंबर पर ब्यूरो ने मध्यप्रदेश को रखा।
दरअसल दहेज से जुड़ी ये हत्याएं बेटियों की नहीं थी, ये हत्याएं तो रिश्ते और विश्वास के साथ ही विवाह जैसी सांस्कृतिक मान्यताओं की भी है। यह सब उस वक्त हो रहा है जब समाज में समानता के साथ ही शिक्षा का स्तर बढ़ रहा है। पर इन बदलावों और सुधारों के बीच भी ऐसी ताकतें आज भी हैं जो बेटे और बेटियों में फर्क करती हैं।
कानून तो बना पर सख्ती से अमल में नहीं आया
बेटे के लिए बाप बोलियां लगाने लगे। कन्या के साथ मोटी रकम, धन-धान्य, जेवरात मानो लड़के वालों के लिए जन्मसिद्ध अधिकार बन गए। जब ये सब नहीं मिला तो बेटियां दहेज की भेंट चढऩे लगी। समाज में तेजी से फैलती इस विकृति से निपटने के लिए देश में कानून तो बना पर जिस कदर यह लागू होना चाहिए, नहीं हो सका। अगर आया होता तो बेटियां यूं बे-मौत मारी न जा रही होती।
कानून कहता है दहेज लेना और देना दोंनो ही अपराध हैं। ऐसे व्यक्ति को छह महीने की सजा तक हो सकती है पर लोग रुक कहां रहे। दहेज हत्या के लिए तो उम्र कैद और फांसी तक के प्रावधान हैं बावजूद बेटियां मारी जा रही हैं।
पुलिस भी कार्रवाई को लेकर है मुस्तैद
दहेज के खिलाफ दर्ज होने वाले मामलों को लेकर बिहार सरकार अति संवेदनशील है। मामला पुलिस-थाने तक पहुंचे इसके पहले लड़के-लड़की के साथ ही उनके परिवार की काउंसिलिंग की व्यवस्था की जाती है। इसके लिए राज्य में महिला आयोग और महिला हेल्प लाइन जैसे संगठन कार्यरत हैं। यदि काउंसिलिंग से बात नहीं बनती है तो मामला परिवार न्यायालय के सुपुर्द किया जाता है।
यदि दहेज के लिए हत्या के प्रयास या हत्या जैसे मामले सामने आते हैं तो दहेज निरोधी अधिनियम के तहत कार्रवाई के प्रावधान हैं। इसमें दस साल तक की सजा हो सकती है। हत्या के मामले में आइपीसी की धारा के तहत मुकदमा दर्ज किया जाता है।
बीड़ा उठाया है करेंगे दहेज के दानव का संहार
सबको पता है कि भ्रूण हत्या की अहम वजह दहेज है। जनसंख्या में स्त्री-पुरुष अनुपात डगमगा रहा है। दहेज दानव से डरकर कमजोर आत्मबल वाले मां-बाप कोख में ही बेटियों का कत्ल कर रहे। यह सब तब, जब बेटियां जीवन के हर क्षेत्र में पुरुषों के बराबर योगदान दे रही हैं। पाताल से अंतरिक्ष तक उनकी पहुंच है।
अब वे युद्ध के अग्रिम मोर्चों पर भी तैनात की जा रही हैं। शिक्षा, चिकित्सा, राजनीति, फैशन, उद्योग, खेल, कारपोरेट जगत, अभिनय और समाज सेवा में लड़कियां चमत्कारिक प्रदर्शन कर रही हैं, पर जैसे ही बात उनके विवाह की होती है, वे सिर्फ लड़की बनकर रह जाती हैं जिनके विवाह के लिए दहेज अनिवार्य है।
बिहार ने अब दहेज के खिलाफ आवाज बुलंद की है। सरकारी अमला इस कोशिश में जुट गया है कि बेटियों को दहेज के नाम पर दी जा रही प्रताडऩा से मुक्ति दिलाई जाए। इसके लिए बकायदा अभियान प्रारंभ किया गया है।
एक ओर सरकार ने राज्य स्तर पर दहेज के खिलाफ मुहिम शुरू की है तो दूसरी ओर हिन्दी के प्रमुख समाचार पत्र दैनिक जागरण की ओर से भी दहेज के खिलाफ आवाज बुलंद की गई है। जागरण ने दहेज को ना कहेंगे, खोटा सिक्का नहीं बनेंगे इन मुद्दों के साथ अनोखे अभियान की शुरुआत की है।