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स्क्रिप्ट में हो जान तो चेहरे नहीं रखते मायने

फिल्म प्रमोशन के लिए पटना आए नरेंद्र झा ने साझा किए अनुभव - गावं के रंगमंच से ही अभिनेता बन

By JagranEdited By: Published: Sun, 26 Nov 2017 03:04 AM (IST)Updated: Sun, 26 Nov 2017 03:04 AM (IST)
स्क्रिप्ट में हो जान तो चेहरे नहीं रखते मायने
स्क्रिप्ट में हो जान तो चेहरे नहीं रखते मायने

फिल्म प्रमोशन के लिए पटना आए नरेंद्र झा ने साझा किए अनुभव

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- गावं के रंगमंच से ही अभिनेता बनने की जगी ललक

- बंदे में हो दम तो गांव या कस्बा नहीं रखता मायने

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पटना - देसी मिजाज और बोली में बिहारी टोन और फिल्मों में उम्दा अभिनय कर पहचान बनाने वाले फिल्म अभिनेता नरेंद्र झा अपनी नई फिल्म 'विराम' के प्रमोशन को लेकर शनिवार को पटना में थे। हैदर, रईस और काबिल फेम अभिनेता ने कई दशक तक टेलीविजन सेट पर विभिन्न सीरियल में लीड रोल कर दर्शकों के बीच पहचान बनाई। झा की माने तो फिल्म का स्क्रिप्ट ही सबसे बड़ा हीरो होता है। स्क्रिप्ट अगर दिल से लिखी जाए तो चेहरे भी मायने नहीं रखते। स्क्रिप्ट में जान हो तो खान की भी जरूरत नहीं होती। वह दर्शकों के बीच अपनी जगह बना लेता है। झा ने दैनिक जागरण से अपनी बात साझा करते हुए कहा कि स्क्रिप्ट अगर अच्छी हो तो भोजपुरी, मगही एवं मैथिली कोई भी भाषा में काम किया जा सकता है।

डीडी नेशनल पर आने वाली सीरियल से मिली पहचान - नरेंद्र झा बिहार के मधुबनी जिले के कोईलख गावं निवासी है। बचपन के दिनों की याद करते हुए कहा कि गांव में दुर्गा पूजा के मौके पर नाटकों का मंचन होता था जो आज भी हो रहा है। अभिनय करने की इच्छा बचपन से थी लेकिन पिता चाहते थे कि आईएएस अधिकारी बने। लेकिन नियति को कुछ और ही मंजूर था। मंच पर पिता, भाई भी अभिनय करते उसके बाद मैं करने लगा। गांव के रंगमंच से ही अभिनेता बनने की ललक जगी। गांव से मैट्रिक करने के बाद पटना आए। बीएन कॉलेज से बीए और फिर दिल्ली विवि से प्राचीन भारत में पीजी की पढ़ाई की। दिल्ली विवि में पढ़ने का मकसद था कि इतिहासकार रोमिल थापर से पढ़ाई करे जो पूरी हुई। अभिनय के लिए अपनी जगह तलाशना शुरू कर दिया। फिर काफी संघर्ष के बाद टीवी सीरियल में काम करने का अवसर मिला। वर्ष 1995 में दूरदर्शन पर प्रसारित लोकप्रिय सीरियल शांति ने जहां टीवी की पहचान दिलाई वही मेरी भी पहचान कलाकार के रूप में होने लगा। इसके पहले मैंने जमकर मॉडलिंग की। 70 से अधिक सीरियल करने के बाद फिल्मों की ओर रूख किया। ¨हदी के साथ संस्कृत, तेलगू, तमिल, कन्नड़ के साथ भासा इंडोनेशिया की फिल्मों में काम करने का मौका मिला।

फिल्म हैदर से मिली पहचान - झा बताते हैं कि एक कलाकार के लिए सबसे बड़ी चीज होती है फिल्म में उसका जबरदस्त अभिनय जिसे दर्शक भी याद रखते है। ¨हदी फिल्मों में श्याम बेनेगल की फिल्म सुभाषचंद्र द लॉस्ट हीरो में रहमान की भूमिका और फंटूस में परेश रावल के साथ वीलेन का रोल करने का मौका मिला। विशाल भारद्वज की फिल्म हैदर में शाहिद कपूर के पिता की भूमिका से फिल्म में मेरी पहचान बनी। फिल्म रईस में शाहरूख खान, काबिल में ऋतिक रोशन और हमारी अधूरी कहानी में विद्या बालन के साथ काम करने का मौका मिला। घायल वंस अगेन में सन्नी देओल के साथ वीलेन की भूमिका ने लोगों के बीच मुझे काफी इज्जत मिली। झा बताते है कि मेरी फिल्म विराम पहली दिसंबर को रिलीज होगी। फिल्म में अभिनेत्री उर्मिला महंथा लीड रोल में है। फिल्म की कहानी प्रेम और क्राइम थ्रीलर पर आधारित है। कम बजट में बनने वाली फिल्म दर्शकों को पसंद आएगी।

दहेज बंदी को लेकर लोगों को होना होगा जागरूक - नरेंद्र झा सरकार के सराहनीय कार्य दहेज बंदी को लेकर कहा कि ये बहुत पहले होना चाहिए थी। बिहार की छवि को बदलने के लिए सरकार काम कर रही है। दहेज बंदी को पूर्ण रूप से समाप्त करने के लिए सरकार के साथ एनजीओ और आम आवाम को आगे आने की जरूरत है। सरकार अपने स्तर से काम कर रही है इसके बावजूद लोगों को इस मुहिम में साथ देना होगा। कानून के पार जाकर काम करना होगा। प्राय देखा जाता है कि जब कानून बनता है तो लोग ज्यादा गलती करते है। ऐसे में लोगों को समझने कीं जरूरत है। बिहार की धरती ज्ञान की धरती रही है। बिहार की जो पहचान वर्षो पूर्व रही है इसे बनाए रखने के लिए लोगों को काम करने की जरूरत है। बिहार फिल्म नीति पर बात करते हुए झा ने कहा बिहार की प्रतिभा किसी का मोहताज नहीं। सरकार


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