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...तब लालू को गिरफ्तार करने के लिए CBI ने सेना से मांगी थी मदद, किया था सरेंडर

राज्य सरकार और सीबीआइ के बीच विवाद का मामला नया नहीं है। बिहार में साल 1997 में चारा घोटाला मामले में सीबीआइ को लालू प्रसाद यादव की गिरफ्तारी के लिए सेना से मदद मांगनी पड़ी थी।

By Kajal KumariEdited By: Published: Tue, 05 Feb 2019 03:00 PM (IST)Updated: Wed, 06 Feb 2019 03:48 PM (IST)
...तब लालू को गिरफ्तार करने के लिए CBI ने सेना से मांगी थी मदद, किया था सरेंडर
...तब लालू को गिरफ्तार करने के लिए CBI ने सेना से मांगी थी मदद, किया था सरेंडर

पटना, जेएनएन। सीबीआइ और राज्य सरकार के बीच का जैसा संकट आज पश्चिम बंगाल में देखने को मिल रहा है वो पहला मामला नहीं है। सीबीआइ और राज्य सरकार के बीच टकराव का बिहार भी बड़ा गवाह रहा है। जुलाई, 1997 में चारा घोटाले की जांच कर रही सीबीआइ ने तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद की गिरफ्तारी के समय सेना को अलर्ट रहने का संदेश देकर सबको चौंका दिया था।

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करीब 22 साल पहले बिहार में भी राज्य सरकार और जांच एजेंसी के बीच टकराव देखने को मिली थी और सीबीआइ को बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव को गिरफ्तार करने के लिए सेना से मदद की गुहार लगानी पड़ी थी। सीबीआइ के सह निदेशक यू एन विश्वास तब चारा घोटाले की जांच कर रहे थे और उन्हें घोटाले के मुख्य आरोपी और बिहार के मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव को गिरफ्तार करना था।

विश्वास लालू यादव की गिरफ्तारी चाहते थे। उनके खिलाफ वारंट भी था, लेकिन बिहार पुलिस ने लालू को गिरफ्तार करने से साफ इनकार कर दिया था। उस समय लालू प्रसाद यादव मुख्यमंत्री थे, जब यह तय हो गया कि गिरफ्तारी से बच नहीं सकते तो उन्होंने अपनी पत्नी राबड़ी देवी को अपनी जगह मुख्यमंत्री बना दिया।

तब राजद के अन्य नेताओं के अलावा लालू प्रसाद यादव के छोटे साले साधु यादव मुख्यमंत्री बनने को लेकर बेताब थे और उन्होंने बड़ा तांडव किया था,लेकिन लालू प्रसाद यादव ने किसी पर विश्वास नहीं किया और राबड़ी देवी को मुख्यमंत्री बनाकर बेऊर जेल से रिमोट के माध्यम से सरकार चलाया।

कहा जाता है कि सीबीआइ के सह निदेशक यू एन विश्वास ने लालू की गिरफ्तारी के लिए बिहार के मुख्य सचिव से संपर्क भी साधा था, लेकिन वे उपलब्ध नहीं हुए। फिर डीजीपी से बातचीत की गई, तो उन्होंने एक तरीके से पूरे मामले को ही टाल दिया था। एेसे में कोई चारा न देखकर, विश्वास ने सेना से मदद की गुहार लगाई थी। 

हालांकि सेना के अफसर ने उस समय कहा था कि सेना सिर्फ अधिकृत सिविल अथॉरिटीज के अनुरोध पर ही मदद मुहैया कराती है और इस मामले में आगे सेना मुख्यालय के निर्देश पर ही कार्रवाई होगी। यानि मामले में सेना ने भी सीबीआई की मदद नहीं की थी।

उसके बाद  सीबीआई ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया और कोर्ट ने असहयोग के लिए बिहार के डीजीपी को कारण बताओ नोटिस भी जारी किया। सीबीआइ के संयुक्त निदेशक किसी भी तरह तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद को चारा घोटाले के मामले में गिरफ्तार करना चाहते थे। सीबीआइ को  अंदेशा था कि लालू प्रसाद की गिरफ्तारी के वक्त कोई बड़ी घटना घट सकती है। 

29 जुलाई 1997 की मध्य रात्रि के करीब पुन: तत्कालीन मुख्य सचिव, गृह सचिव, डीजीपी आदि तलब किए गए। रातभर गहमागहमी और मुख्यमंत्री आवास के अंदर जमे कार्यकताओं की नारेबाजी रह-रह कर होती रही। उधर, बताया गया कि सीबीआई टीम को भी मुख्यालय से रात भर रुकने की हिदायत दी गई।

अफसरों व विधिवेत्ताओं के सुझाव के बाद आखिरकार लालू प्रसाद ने 30 जुलाई 97 की दोपहर गाजे-बाजे व समर्थकों के काफिले के साथ जाकर सीबीआई के विशेष अदालत में सरेंडर कर दिया। उन्हें 15 दिनों के न्यायिक हिरासत में बेऊर जेल भेज दिया गया। 


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