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Lockdown पटना एम्स में 33 सवाल का जवाब देकर 90 सेकंड में लग जाएगा अवसाद का पता

पटना एम्स में 90 सेकंड के अंदर अवसाद का पता लगाया जा सकेगा। इसके लिए शोध शुरू कर दिया गया है। बस हां और न में जवान देने की जरूरत रहेगी और बीमारी का पता चल जाएगा।

By Akshay PandeyEdited By: Published: Thu, 21 May 2020 08:35 AM (IST)Updated: Thu, 21 May 2020 08:35 AM (IST)
Lockdown पटना एम्स में 33 सवाल का जवाब देकर 90 सेकंड में लग जाएगा अवसाद का पता
Lockdown पटना एम्स में 33 सवाल का जवाब देकर 90 सेकंड में लग जाएगा अवसाद का पता

जितेंद्र कुमार, पटना। कोरोना संक्रमण से बचाव को लंबे समय से लागू लॉकडाउन में व्यस्क आबादी जिन परिस्थितियों का सामना कर रही है, पहले कभी उसने इसका अनुभव नहीं किया है। वैसे तो किसी भी उम्र में मानसिक विकार से व्यक्ति की सोच में बदलाव आ सकता है, लेकिन लंबे समय तक एक जैसी परिस्थिति मानसिक बीमारी के खतरे को बढ़ा देती है। पटना एम्स में इसे नियंत्रित करने को शोध शुरू हुआ है। मकसद 90 सेकंड में ऐसे मानसिक अवसाद का पता लगा उचित चिकित्सकीय परामर्श देना है।

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एम्स के सामुदायिक चिकित्सा विभाग के डॉ. संजय पांडेय कोविड-19 से उपजी दिमागी उलझनों पर चल रहे शोध कार्य की टीम के प्रमुख हैं। टीम में उनके साथ डॉ. प्रज्ञा कुमार, डॉ. पंकज कुमार, डॉ. अभिषेक मिश्रा व डॉ. अभिषेक कुमार हैं। टीम यह पता करेगी कि लॉकडाउन के दौरान व्यक्तियों के दिमाग में विकार का कितना प्रभाव पड़ा है।

ऐसे करेंगे अध्ययन

एम्स की टीम ने विकार के शिकार का पता करने को 33 बिंदुओं वाले प्रश्न हां-ना में तैयार किए हैं। 18 की उम्र से अधिक के लोग सहमति से शोध में शामिल किए जाएंगे। ऑनलाइन प्लेटफार्म पर सर्वेक्षण के आधार पर 12 सप्ताह में शोध पूरा किया जाएगा। शोध का मकसद कोरोना काल मेंं मानसिक बीमारी को बढऩे से रोकना है। शोध के प्रारूप में कहा गया है कि 1990 तक बीमारी और शारीरिक चोटों के कारण 10 फीसद आबादी मानसिक विकार के साथ दिव्यांगता की शिकार रही है। 2000 तक यह स्थिति बढ़कर 12 फीसद पहुंच गई। 2020 में ऐसी आबादी करीब 15 फीसद तक हो सकती है।

शोध करने वाली टीम का मानना है कि कोविड-19 महामारी के पहले एशियाई फ्लू (सार्स), एमइआरएस और इबोला का प्रकोप हुआ था। लेकिन कोविड-19 इससे अलग है, पूरी दुनिया को हिलाकर रख दिया है। इसका दिलोदिमाग पर अधिक प्रभाव पड़ रहा है। कई तरह के भय से लोग तनाव का शिकार हो रहे हैं।

कोरोना काल में मनोविकार

शोध टीम के अनुसार 18 की उम्र की आबादी के लिए कोरोना महामारी पहला अनुभव है। तनावग्रस्त जिंदगी में वह सही सूचना का अभाव महसूस कर रही है। कोई दवा न आना, मास्क पहने या नहीं। कहां, कितनी दूरी बनाकर रहें। कब और किस समय सैनिटाइजेशन करें नौकरी रहेगी या जाएगी के अलावा आर्थिक मंदी जैसी चिंताएं जेहन में कौंध रही हैं।


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