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बिहार में लोकसभा-विधानसभा उपचुनाव की घोषणा के बाद सियासत तेज

बिहार के तीन सीटों पर लोकसभा और विधानसभा उपचुनाव की घोषणा हो गई। 11 मार्च यहां मतदान होगा।

By Ravi RanjanEdited By: Published: Fri, 09 Feb 2018 11:47 AM (IST)Updated: Sat, 10 Feb 2018 10:51 PM (IST)
बिहार में लोकसभा-विधानसभा उपचुनाव की घोषणा के बाद सियासत तेज
बिहार में लोकसभा-विधानसभा उपचुनाव की घोषणा के बाद सियासत तेज

पटना [जेएनएन]। बिहार के अररिया लोकसभा और कैमूर व जहानाबाद विधानसभा क्षेत्र के लिए उपचुनाव की घोषणा हो चुकी है। इन सीटों पर 11 मार्च को मतदान होगा और 14 मार्च को मतगणना होगी। इसके लिए 13 फरवरी से नामांकन की प्रक्रिया शुरू हो जायेगी। 20 फरवरी तक उम्मीदवार नामांकन भर सकते हैं। 23  फरवरी नाम वापस लेने की आखरी तारीख है। इस बीच जहानाबाद सीट को लेकर चल रहे खिंच-तान के बीच सांसद अरूण कुमार ने बड़ा बयान दिया है। कहा कि जदयू यहां से चुनाव लड़ ले, लेकिन उपेंद्र कुशवाहा के गुट का दावा जायज नहीं है।

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बता दें कि राजद सांसद तस्‍लीमुद्दीन के निधन के बाद अररिया लोकसभा सीट खाली हो गई थी, वहीं जहानाबाद के राजद विधायक मुंद्रिका सिंह यादव और भभुआ के भाजपा विधायक आनंद भूषण पांडेय की मौत के बाद ये दोनों सीट खाली हो गई थी।

लोकसभा की एक और विधानसभा की दो सीटों के लिए होने वाले उपचुनाव में सत्तापक्ष के इकबाल की अग्निपरीक्षा तय है। पिछले चुनाव में तीनों सीटों में से दो पर राजद का कब्जा था और एक पर भाजपा का। तीनों सीटें राज्य और केंद्र की सत्ताधारी दल भाजपा और जदयू के साथ ही लोजपा, रालोसपा और हम के लिए प्रतिष्ठा का विषय बनी हुई हैं, जबकि विपक्ष इन सीटों को हथिया कर सत्ता पक्ष का भ्रम तोडऩे के मूड में है।

चुनाव की घो‍षणा होते ही बिहार की सियासत में सरगर्मी बढ़ गई है। चारा घोटाला में सीबीआइ के विशेष अदालत में पेश होकर निकले बिहार के पूर्व मंत्री मुख्यमंत्री लालू प्रसाद ने उपचुनाव की घोषणा पर चुनाव लड़ने का संकेत दे दिया है। कहा कि सब सीट हमारा है, हम लड़ाई लड़ेंगे। दोनों विधानसभा में सीट पर भी चुनाव लड़ेंगे।

सबसे अधिक खिंचतान जहानाबाद विधानसभा सीट को लेकर शुरू हो गई है। राजद विधायक मुद्रिका यादव के निधन के बाद खाली हुए इस सीट पर उनके बेटे सुदय यादव का प्रत्‍याशी बनना लगभग तय है। वहीं, दूसरी ओर भाजपा, हम, रालोसपा और जदयू एनडीए के सभी दल यहां अपने प्रत्‍याशी उतारने की जुगत में हैं। सबसे अधिक कसरत रालोसपा के नेता कर रहे हैं क्‍योंकि यह पार्टी खुद दो गुटों में बंट गई है। दोनों गुटों उपेंद्र कुशवाहा गुट और अरूण गुट अपने-अपने प्रत्‍याशी खड़ा करना चाहते हैं।

जदयू की दावेदारी इसलिए बढ़ जाती है क्‍योंकि महागठबंधन से पहले इस सीट पर जदयू का कब्‍जा था। महागठबंधन की वजह से जदयू को यह सीट राजद को देनी पड़ी थी। वहीं, रालोसपा के उम्‍मीदवार पिछले चुनाव में दूसरे नंबर पर थे, इसलिए वे भी इस सीट पर दावा कर रहे हैं। मांझी का कहना है कि यह सीट उनके क्षेत्र का है, इसलिए वे अपना उम्‍मीदवार उतारेंगे। वहीं भाजपा नेता भी चुनाव में अपनी दावेदारी ठोक रहे हैं। एेसे में चुनाव कौन जीतता है, उससे पहले टिकट किसे मिलता है, यह देखना दिलचस्‍प होगा।

इस बीच जहानाबाद के सांसद अरूण कुमार ने बड़ा बयान दिया है। कहा कि जहानाबाद सीट पर जदयू चुनाव लड़े तो कोई एतराज नहीं है। उपेंद्र कुशवाहा गुट का दावा जायज नहीं है।

राजद के साथ कांग्रेस भी अपने सियासी समीकरण को दुरुस्त करने कवायद में जुट गई है। ऐसे में आने वाले समय में बिहार में जबरदस्त मुकाबला देखने को मिलेगा। सियासी दल इस चुनाव को मिशन-2019 का सेमीफाइनल भी मान रहे हैं।

2015 में महागठबंधन बनने के बाद जदयू ने राजद को जहानाबाद सीट सौंप दी थी, जहां से मुंद्रिका यादव की जीत हुई थी। भभुआ विधानसभा सीट पिछली तीन बार की भारी मशक्कत के बाद 2015 में भाजपा के कब्जे में आई थी। बसपा से भाजपा में आए आनंद भूषण पांडेय ने त्रिकोणीय मुकाबले में इस सीट पर जीत हासिल की थी।

वहीं, कैमूर विधानसभा का उप चुनाव भाजपा विधायक आनंदभूषण पांडेय के निधन के बाद हो रहा। नए परिसीमन के बाद मामला यूं बदला कि एक समय बसपा के टिकट पर चुनाव लडऩे वाले आनंदभूषण पांडेय 2015 में भाजपा से लड़े और चुनाव जीत गए। उस समय जदयू, जिसके कोर वोटर की संख्या काफी है, भाजपा से अलग थी। जदयू के डॉ प्रमोद कुमार सिंह दूसरे स्थान पर रहे। राजद के टिकट पर डॉ प्रमोद इस सीट से दो बार विधायक रहे हैैं। विधानसभा चुनाव 2000 और 2005 में वह जीते। परिसीमन के बाद इस सीट का गणित गठबंधन से प्रभावित होता रहा है।

सीमांचल में माई समीकरण को चुनौती

अब भाजपा-जदयू की संयुक्त ताकत के कारण सीमांचल में लालू प्रसाद के माई समीकरण के लिए भी नई चुनौतियां खड़ी हो सकती हैं। राजद सांसद तस्लीमुद्दीन के निधन से खाली हुई अररिया संसदीय सीट पर कब्जे को लेकर दोनों गठबंधनों में आरपार की लड़ाई के आसार हैं।

भ्रष्टाचार के आरोप में घिरे राजद के लिए महत्वपूर्ण यह है कि सात बार विधायक और छह बार एमपी रह चुके तस्लीमुद्दीन के गैप को भरना आसान नहीं होगा। खासकर उस स्थिति में जबकि 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव में जिले की छह सीटों में से चार पर भाजपा गठबंधन का कब्जा हो चुका है।

भाजपा ने सजाई है फील्डिंग

इस बार तो राजद के आधार वाले क्षेत्रों में पकड़ बढ़ाने के लिए भाजपा ने पहले से ही फील्डिंग सजा दी है। नए परिसीमन के पहले भाजपा इस सीट पर तीन-तीन बार जीत दर्ज कर चुकी है।


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