रेलवे में होता था मौत का सौदा, अब 100 करोड़ के इस घोटाले की जांच करेगी CBI
रेलवे में मौत का सौदा होता था जिसका खुलासा होने के बाद रेल मंत्रालय ने इसकी जांच सीबीआइ को सौंप दी है। 100 करोड़ से अधिक राशि के इस घोटाले का पर्दाफाश होने के बाद हड़कंप मच गया था।
By Kajal KumariEdited By: Published: Mon, 11 Feb 2019 03:56 PM (IST)Updated: Tue, 12 Feb 2019 09:37 AM (IST)
पटना [चंद्रशेखर]। रेल मंत्रालय ने रेलवे क्लेम ट्रिब्यूनल में 100 करोड़ से अधिक के घोटाले की जांच सीबीआइ को सौंप दी है। घोटाला 5 मई 2015 से 16 अगस्त 2017 के बीच का है। जांच एजेंसी ने इस अवधि की सारी फाइलें मांग ली हैं। विशेष टीम को जांच के लिए लगाया गया है।
सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई ने रेलवे बोर्ड के अनुरोध पर उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश उदय यू. ललित की अध्यक्षता में इस घोटाले की जांच को कमेटी बनी थी। कमेटी ने जांच के दौरान प्रथम दृष्टया घोटाले के किंगपिन रहे रेल दावा अभिकरण के न्यायिक सदस्य आरके मित्तल को दोषी पाया था। सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश ने उन्हें निलंबित कर दिया था।
ज्ञात हो कि 5 मई 2015 से 16 अगस्त 2017 की अवधि में रेलवे क्लेम ट्रिब्यूनल की ओर से 2564 क्लेम का निस्तारण किया गया। क्लेम देने में नियमों का पालन नहीं किया गया। सौ से अधिक मामले में एक ही मृत व्यक्ति के नाम पर चार-चार बार मुआवजे की राशि दी गई थी।
मामला प्रकाश में आते ही कुछ वसूली भी कर ली गई। मुआवजे की राशि के लिए तीन खास बैंक की शाखाओं को चुना गया था। लाभान्वित होने वाले पीडि़त परिजनों के बैंक खाते के पहचानकर्ता भी पैरवी करने वाले अधिवक्ता ही बनते थे। इतना ही नहीं उनके गांव के बैंक खाते के नाम से चेक का भुगतान न कर अलग से इन्हीं शाखाओं में उनका खाता खुलवाया जाता था। राशि का भुगतान होते ही बैंक खाता बंद कर दिया जाता था।
दैनिक जागरण ने 19 फरवरी 2018 को क्लेम के नाम पर करोड़ों की हेराफेरी संबंधी खबर प्रकाशित कर अनियमितता को उजागर किया था। रेलवे की ओर से स्वीकार किया गया था कि 80 लोगों ने एक-एक मृतक के नाम पर चार-चार बार चार से आठ लाख रुपये मुआवजा लिया था।
मामले में पूर्व-मध्य रेल के कई अधिकारी संदेह के घेरे में हैं। अब सीबीआइ जांच होने से अकेले आरके मित्तल ही नहीं बल्कि कई बैंककर्मियों के साथ प्रबंधक, रेल थानाध्यक्ष, घोटाले की राशि हड़पने वाले अधिवक्ताओं के साथ ही मामले की लीपापेाती करने वाले कई वरीय रेल अधिकारियों के भी फंसने की संभावना है।
सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई ने रेलवे बोर्ड के अनुरोध पर उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश उदय यू. ललित की अध्यक्षता में इस घोटाले की जांच को कमेटी बनी थी। कमेटी ने जांच के दौरान प्रथम दृष्टया घोटाले के किंगपिन रहे रेल दावा अभिकरण के न्यायिक सदस्य आरके मित्तल को दोषी पाया था। सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश ने उन्हें निलंबित कर दिया था।
ज्ञात हो कि 5 मई 2015 से 16 अगस्त 2017 की अवधि में रेलवे क्लेम ट्रिब्यूनल की ओर से 2564 क्लेम का निस्तारण किया गया। क्लेम देने में नियमों का पालन नहीं किया गया। सौ से अधिक मामले में एक ही मृत व्यक्ति के नाम पर चार-चार बार मुआवजे की राशि दी गई थी।
मामला प्रकाश में आते ही कुछ वसूली भी कर ली गई। मुआवजे की राशि के लिए तीन खास बैंक की शाखाओं को चुना गया था। लाभान्वित होने वाले पीडि़त परिजनों के बैंक खाते के पहचानकर्ता भी पैरवी करने वाले अधिवक्ता ही बनते थे। इतना ही नहीं उनके गांव के बैंक खाते के नाम से चेक का भुगतान न कर अलग से इन्हीं शाखाओं में उनका खाता खुलवाया जाता था। राशि का भुगतान होते ही बैंक खाता बंद कर दिया जाता था।
दैनिक जागरण ने 19 फरवरी 2018 को क्लेम के नाम पर करोड़ों की हेराफेरी संबंधी खबर प्रकाशित कर अनियमितता को उजागर किया था। रेलवे की ओर से स्वीकार किया गया था कि 80 लोगों ने एक-एक मृतक के नाम पर चार-चार बार चार से आठ लाख रुपये मुआवजा लिया था।
मामले में पूर्व-मध्य रेल के कई अधिकारी संदेह के घेरे में हैं। अब सीबीआइ जांच होने से अकेले आरके मित्तल ही नहीं बल्कि कई बैंककर्मियों के साथ प्रबंधक, रेल थानाध्यक्ष, घोटाले की राशि हड़पने वाले अधिवक्ताओं के साथ ही मामले की लीपापेाती करने वाले कई वरीय रेल अधिकारियों के भी फंसने की संभावना है।
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