सातवीं सदी का इतिहास संजोए है जहानाबाद का दावथु गांव, खेतों में बिखरी मिलती हैं पुरानी मूर्तियां
Bihar News सातवीं सदी का इतिहास संजोए है जलवार नदी किनारे बसा दावथु गांव खेतों में मिलते हैं पुरातात्विक अवशेष यहां एक साथ देखने को मिलती है गंगा जमुनी तहजीब पर्यटन व संस्कृति से जुड़े इतिहास के दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है गांव
हुलासगंज (जहानाबाद), संवाद सहयोगी। केंद्र सरकार ने शहरी चकाचौंध से दूर ऐसे गांव को विश्व पटल पर लाने और उसे संजोने का प्रयास शुरू किया है, जिसे मेरा गांव मेरा धरोहर प्लान के अंतर्गत रखा गया है। इसमें गांव की संस्कृति, उसकी प्राचीन विरासत और ऐतिहासिक, सांस्कृतिक खासियत को जनमानस के सामने लाकर उसे लोगों से जोडऩे का प्रयास किया जाएगा। इससे पर्यटन को बढ़ावा तो मिलेगा ही साथ ही ऐसे धरोहर को संरक्षित करने का प्रयास भी शुरू हो जाएगा। ऐसा ही एक गांव दावथु जो जहानाबाद जिला मुख्यालय से 25 किलोमीटर की दूरी पर जिले के पूर्वी छोर पर स्थित है।
हुलासगंज प्रखंड मुख्यालय से इस गांव की दूरी महज चार किलोमीटर की है। पर्यटन और संस्कृति के उद्भव से जुड़े इतिहास को जानने के दृष्टिकोण से यह गांव काफी महत्वपूर्ण माना जाता है। दावथु गांव जो कभी देवस्थल के नाम से जाना जाता था। यहां हिंदू ,बौद्ध ,जैन धर्म के साथ-साथ सूफी संतों का समागम भी हुआ करता था। इन सभी धर्मों के विकास के प्रमुख केंद्र भी इस गांव को माना जाता है।
इतिहासकारों ने सातवीं शताब्दी के उपलब्ध कई साक्ष्यों के आधार पर इस स्थल को सर्वधर्म समभाव वाले धार्मिक स्थल के केंद्र बिंदु के रूप में माना है। यहां गंगा-जमुनी तहजीब और सभी धर्म प्रचारकों के केंद्र के रूप में कई प्रमाण इतिहास के पन्नों में दर्ज हैं। जलवार नदी के किनारे बसे इस गांव में सैकड़ों मूर्तियां जहां के तहां क्षत-विक्षत अवस्था में खेतों में पड़ी हैं।
कुछ मूर्तियों को पटना और गया के संग्रहालय में संरक्षित किया गया है तो वही देखरेख और संरक्षण के अभाव में बहुत से कीमती मूर्तियों पर चोरों ने हाथ साफ किया है। पत्थर के विशाल शिलाओं को तराशकर मंदिर का गुंबद और उसके स्तंभ बनाए गए हैं। जिसका अवशेष अभी भी यहां पर देखने को मिलता है। कुछ इतिहासकारों ने इसे बौद्ध स्तूप के रूप में माना है। जिसे सातवीं शताब्दी से पहले का बताया गया है।
इसी गांव में भगवान शंकर और विष्णु का प्राचीन मंदिर भी है। ग्रामीणों ने कुछ वर्ष पहले इसका जीर्णोद्धार कराया है। मंदिर के जीर्णोद्धार के लिए पर्यटन विभाग ने भी कार्य योजना बनाई थी, जिसे दूसरे चरण में लागू किया जाना था। पहले चरण की योजना में चहारदीवारी और तालाब के निर्माण के साथ लाइट लगाने के साथ साथ सौंदर्यीकरण की व्यवस्था करनी थी। वह पूरा होने के बावजूद उसे आज तक पर्यटन विभाग को सौंपा नहीं जा सका।
पर्यटन के मानचित्र पर लाने के लिए यहां दो करोड़ रुपए पर्यटन विभाग के द्वारा खर्च भी किए गए, लेकिन इसके बावजूद भी बनी बनाई चीजें संरक्षण के अभाव में अपना अस्तित्व खो रहा है। गांव के पूर्वी दक्षिणी हिस्से में एक अति प्राचीन मजार भी है जिसे लोग बताते हैं कि यह किसी प्रसिद्ध सूफी संत की मजार है। इस मजार के बारे में ग्रामीणों को कुछ विशेष जानकारी नहीं है। यह मजार भी कई सौ वर्ष पुराना बताई जाती है।
कुछ लोग बताते हैं कि इस क्षेत्र में पाल वंश के शासन में बौद्ध धर्म से जुड़े मंदिरों और प्रतिमाओं का निर्माण कराया गया था। इतिहासकारों और शोधकर्ताओं का मानना है कि बौद्ध धर्म के विकास से जुड़े महत्वपूर्ण पद चिन्ह यहां से प्राप्त हो सकते हैं। दावथु गांव का इतिहास करीब दो हजार वर्ष से अधिक पुराना बताया जाता है। पुरातत्व और पर्यटन की दृष्टि से इस महत्वपूर्ण गांव की उपेक्षा से हजारों वर्ष पहले का इतिहास कहीं दफन न हो जाए। प्रशासन और सरकार के द्वारा दावथु के विकास और ऐतिहासिक धरोहर के संरक्षण के लिए प्रयास करने की जरूरत है।