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स्कूल जाने में बेटियां अव्वल, बेटे भी नहीं कम, दिखा रहे अपना दम

सूबे के स्कलों के हालात बता रहे हैं कि बेटियां हर जगह अव्वल हैं। बात जब बेटों को हो तो वो भी कम नहीं हैं।

By Akshay PandeyEdited By: Published: Thu, 17 Jan 2019 01:18 PM (IST)Updated: Thu, 17 Jan 2019 01:18 PM (IST)
स्कूल जाने में बेटियां अव्वल, बेटे भी नहीं कम, दिखा रहे अपना दम
स्कूल जाने में बेटियां अव्वल, बेटे भी नहीं कम, दिखा रहे अपना दम

पटना, जेएनएन। सूबे के स्कूलों में नामांकन कराने में लड़कियों की रुचि बढ़ने से शिक्षा में भागीदारी में आधी आबादी का प्रतिशत बढ़ा है, हालांकि मेधा की कसौटी पर लड़के बेहतर रिजल्ट दे रहे हैं। एनुअल स्टेटस आफ एजुकेशन रिपोर्ट (असर-2018) के सर्वेक्षण में यह तथ्य सामने आए हैं। इसमें नीतीश सरकार की बेटियों को स्कूल भेजने वालों को प्रोत्साहनों की बड़ी भूमिका मानी जा सकती है। अब तो लड़कों को उच्च शिक्षा के लिए सरकार स्टूडेंट क्रेडिट कार्ड भी दे रही है।

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कहीं लड़कियां तो कहीं लड़के आगे

रिपोर्ट के अनुसार सरकारी स्कूलों में सभी आयु वर्ग में लड़कों से अधिक लड़कियों का नामांकन हुआ है। 11 से 14 आयु वर्ग में लड़कों का नामांकन 76.3 फीसद है, तो लड़कियों का 84.3 फीसद। हालांकि जब मेधा की कसौटी परखने के लिए 14 से 16 आयु वर्ग के बच्चों को दूसरी कक्षा के पाठ पढ़ाए गए तो लड़कों ने बाजी मार ली। इस आयु वर्ग की 72 फीसद बेटियां दूसरी कक्षा का पाठ पढ़ने में सक्षम रहीं, तो लड़कों का प्रतिशत 79.2 फीसद रहा।

क्लासवार रिजल्ट नहीं हैं बेहतर

वैसे क्लासवार कुल फीसद के आंकड़े बताते हैं कि कक्षा आठ के 2.9 प्रतिशत बच्चे सही ढंग से अक्षर नहीं पहचान पाते। 7.7 फीसद अक्षर पहचानते हैं और 7.2 शब्दों को पढ़ पाते हैं। 11.1 फीसद बच्चे पहली कक्षा का पाठ पढ़ पाते हैं, तो 71.2 दूसरी क्लास तक का पाठ। दूसरी क्लास में पढ़ने वाले बच्चों में तो 15.5 प्रतिशत ही अपने वर्ग का पाठ पढ़ पाते हैं। इस क्लास के 35 फीसद बच्चों को अक्षर का ज्ञान नहीं होता है। 29 फीसद को अक्षर ज्ञान है, तो महज 12.6 फीसद को शब्दों की जानकारी। दूसरी क्लास के 8 फीसद छात्र वैसे होते हैं जो पहली कक्षा का ही पाठ पढ़ पाते हैं।

सरकारी स्कूलों को करनी होगी मेहनत

ये आंकड़े ग्रामीण क्षेत्रों के घरों में सर्वेक्षण के आधार पर तैयार किए गए हैं। क्लासवार के साथ ही वर्षवार तुलनात्मक अध्ययन भी हुए हैं। इसमें यह तथ्य सामने आया है कि 2012 की तुलना में 2018 में जहां ग्रामीण क्षेत्र के सरकारी विद्यालयों में मेधा का स्तर नीचे आया है, वहीं निजी विद्यालय बेहतर कर रहे हैं। 2012 में तीसरी क्लास में पढ़ने वाले 14.2 फीसद बच्चे क्लास दो स्तर का पाठ पढ़ पा रहे थे, तो 2018 में 12.3 फीसद बच्चे। दूसरी ओर 2012 में निजी स्कूलों के तीसरी क्लास के 52.7 फीसद बच्चे दूसरी का पाठ पढ़ने में सक्षम थे, तो 2018 में 62 फीसद।


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