दैनिक जागरण अभियान: दहेज को कहें ना...लोग जुड़ते गए कारवां बनता गया
दैनिक जागरण का दहेज मुक्ति रथ आज मुजफ्फरपुर और औरंगाबाद पहुंचा जहां लोगों ने रथ का भव्य स्वागत किया। मशाल को साक्षी मानकर दहेज के सफाए का लोगों ने संकल्प लिया।
पटना [जेएनएन]। दैनिक जागरण का दहेज मुक्ति अभियान का कारवां अाज मुजफ्फरपुर और औरंगाबाद पहुंचा, जहां लोगों ने दहेज मुक्ति रथ का जोरदार स्वागत किया। अहले सुबह से लोग विभिन्न चौक-चौराहों पर रथ के इंतजार में खड़े रहे। दोनों जिलों में लोग दहेज मुक्ति रथ के साथ मिलकर चलने के लिए तैयार थे।
बुधवार सुबह जब मुजफ्फरपुर के लोगों ने आंखें खोलीं तो मानों नया सवेरा हो रहा था। बैंडबाजा, शहनाई, पंडित जी, मंत्रोच्चार, शंखनाद, भजन-कीर्तन, मंगल गीत, आसमान से होती पुष्प वर्षा। इन सबके बीच सड़कों पर उमड़ा जनसैलाब। ऐसा लग रहा था किसी राजा-महाराजा की भव्य शादी का समारोह है। लेकिन, ऐसा नहीं था। ये भव्यता और उत्साह दहेज के खिलाफ था। दैनिक जागरण के दहेजमुक्ति रथ के स्वागत के लिए।
लाव-लश्कर के साथ पुलिस बल और उनके अधिकारी भी अगवानी और स्वागत में खड़े थे। एमडीडीएम कॉलेज से लेकर जहां तक नजर जाती थी, सड़क किनारे दोनों तरफ कतारबद्ध लोग और छात्र-छात्राएं। ऐसा लग रहा था पूरा मुजफ्फरपुर उमड़ पड़ा है, दहेज के खिलाफ जंग में। रथ पर प्रज्ज्वलित मशाल को साक्षी मानकर लोग दहेज के सफाए का संकल्प ले रहे थे।
बदलाव की उम्मीद
नहीं बुझेगी संकल्पों, संघर्षों और नव-जागरण की यह मशाल। एक ही विकल्प, एक ही रास्ता। नए इंकलाब की मशाल। रथ से गाने बजते जाते-'आदमी है जिंदा पर जमीर मर गया है...। इन गानों के साथ नारे लग रहे थे। होठों से गीत फूट रहे थे। इन दृश्यों की सेल्फी ली जा रही थी। लड़कियां और महिलाएं इस अद्भुत क्षण को अपने कैमरे में कैद करती आगे बढ़ रही थीं। पेंटिंग के जरिए बच्चों ने कागज पर अपनी-अपनी भावनाएं उकेर रखी थीं। आम आदमी की पीड़ा बखूबी झलक रही थी। समाज और परिवार की मानसिकता में बदलाव की उम्मीद के साथ।
बिना दहेज सजाओ डोली
बेटियों की लगाओ न बोली, बिना दहेज सजाओ उनकी डोली। इस रथ को रवाना करने के लिए मुख्य अतिथि आइजी पानी टंकी चौक तक आए। उन्होंने बेटियों को मुखर होकर दहेज को ना कहने का संकल्प लेने को कहा तो बेटियों में उत्साह भर गया। एमडीडीएम के पास ओजपूर्ण भाव में अतिथियों ने अपनी बातें रखीं।
बेटियों में उत्साह जगाया। इनमें कुछ महिलाएं भी थीं। बेटी की मां होने के नाते उनकी पीड़ा भी झलक रही थी मगर उन्होंने इसका डटकर मुकाबला करने को कहा। यह अहसास दिलाया कि इस विचार को मन में उतारेंगी। बेटियां संकल्पित दिखीं। उन्हें मालूम है कि इससे ही दहेज मांगने वाले जुर्रत नहीं कर पाएंगे।
मैं एक देह हूं, फिर देहरी
दूर-दराज गांव-देहात की बेटियां भी गवाह बनीं। जाग उठीं इन बेटियों ने कहा-'ऐ बाबुल मुझे दहेज देकर विदा न कर। मैं एक देह हूं, फिर देहरी। तुमने तय की मेरे अंदर-बाहर की जिंदगी...मेरे तौर-तरीके...बातचीत...मेरे दोस्त, मेरा परिवार भी तय कर दिया तुमने...। अब मुझे तय करने दो कि तुम्हें क्या तय करना चाहिए और क्या नहीं...?' मतलब साफ है कि किसी भी कुरीति के लिए संस्कृति को जिम्मेवार नहीं ठहराया जा सकता।
नाटक के जरिए किया प्रहार
दहेज में कम पैसे मिलने पर बरात लौटाने की जिद करने वाले एक पिता के लिए लड़कियों ने नाटक के जरिए न केवल समाज को आईना दिखाया, बल्कि इसके खिलाफ जोरदार प्रहार भी किया। इसमें दुल्हन के पात्र ने खुद आगे आकर दहेज लोभी के यहां शादी से इन्कार कर दिया। एडीडीएम की छात्राओं की प्रस्तुतियों ने सभी को झकझोर दिया।
इस नाटक के जरिए लड़का-लड़की में भेदभाव न करने की अपील की गई। हरिसभा चौक का नजारा ही अलग था। यहां मार्शल आर्ट के जरिए दहेज के खिलाफ चोट। वह भी ऐसी कि वह एक बार गिरे तो खड़ा न हो सके। एमडीडीएम से लेकर मोतीपुर तक रथ जिधर से गुजरा, हर जगह नए तरीके से स्वागत। कोई घोड़े पर चढ़कर आया तो कोई बाइक से। कोई भी पीछे नहीं रहना चाहता था, इस अभियान में।