गायों पर रहम कीजिए, यहां-वहां पॉलीथिन मत फेंकिए
पॉलीथिन कई जानवरों के लिए जानलेवा साबित हो रही है। गाय भोजन के चक्कर में पॉलीथिन समेत जूठन खा जाती हैं। कुछ महीनों में उसकी जान पर बन आती है।
पटना [जेएनएन]। अपनी सहूलियत के लिए उपयोग में लाई जाने वाली पॉलीथिन एक जीव के लिए जानलेवा साबित हो रही है। तंत्र और हमारी थोड़ी सी लापरवाही की वजह से सड़कों-मोहल्लों में विचरण करने वाली गाय पॉलीथिन में फेंके गए खाद्य पदार्थों को उसी के साथ खा जाती हैं। सोचिए, जो पॉलीथिन जलाने नष्ट होती उसे गाय कैसे हजम कर पाती होगी। थोड़ी-थोड़ी मात्रा में गाय के पेट में जाने वाली पॉलीथिन कुछ दिनों में बाद किलो में बदल जाती है और कुछ महीनों में उसकी जान पर बन आती है। सोचने की बात है कि जो गाय हमें दूध देती है, उसे हम क्या खाने दे रहे हैं। स्मार्ट बनने जा रही राजधानी में ठोस कचरा प्रबंधन नहीं होने से हालात बिगड़ रहे हैं।
राजधानी में ठोक कचरा का प्रबंधन नहीं होने के कारण कूड़ा स्थलों पर भोजन की तलाश में गायें पॉलीथिन तक खा ले रही हैं। यह पॉलीथिन उनके लिए असमय मौत का कारण बन जा रही है। इसके अलावा शहर में मृत पशुओं के शवदाह की भी पर्याप्त व्यवस्था नहीं है। नगर निगम क्षेत्र में औसतन दर्जन भर गायें रोजाना मरती हैं। बांकीपुर अंचल को छोड़कर शेष किसी अंचल क्षेत्र से मृत पशु शवदाह गृह तक नहीं पहुंच रही हैं।
गाय के पेट से निकला था 75 किलोग्राम पॉलीथिन
पिछले पखवाड़े वेटनरी कॉलेज में ऑपरेशन कर एक गाय के पेट से 75 किलोग्राम पॉलीथिन निकाली गई थी। पटना नगर निगम की ओर से आवारा पशुओं के खिलाफ चलाए गए अभियान में पकड़ी गईं गायों में एक दर्जन से अधिक की मौत हो चुकी है। इसे विशेषज्ञों ने पॉलीथिन के कारण हुई मौत बताया था।
18 माह में नहीं बन पाया शवदाह गृह का पहुंच पथ
नगर विकास विभाग ने पटना में मृत पशुओं के लिए रामाचक बैरिया में शवदाह गृह का निर्माण कराया है। 17 मार्च 2016 को लोकार्पण भी हो गया, लेकिन 18 महीने में यहां ट्रैक्टर पहुंचने के लायक रास्ता का निर्माण नहीं कराया जा सका। शहर के दक्षिणी हिस्से में संपतचक प्रखंड के रामाचक बैरिया में ठोस कचरा प्रबंधन परिसर के निकट निर्मित पशु शवदाह गृह पहुंचने पर नोटिस बोर्ड पर सुबह 9.00 बजे से शाम 5.00 बजे तक कार्य अवधि दर्ज है।
शवदाह गृह में छह कर्मचारी तैनात हैं ताकि 24 घंटे कार्य हो सके। प्लांट की क्षमता एक पशु को जलाने में औसत तीन घंटे लगते हैं। निर्धारित कार्य अवधि में अधिकतम तीन पशु निष्पादित हो सकते हैं। तीन से अधिक पशु आ गए तो बाहर छोड़ दिया जाएगा और अगले दिन जलाए जाते हैं।
गत वर्ष अगस्त हुई थी 557 गायों की मौत
अगस्त 2017 तक करीब 557 मृत गायों को यहां निपटारा किया जा चुका है। सितंबर में करीब 67 गाय और अक्टूबर में 60 गायों को शवदाह गृह लाया गया। यह आंकड़ा सिर्फ बांकीपुर अंचल का है। कंकड़बाग, पटना सिटी और नूतन राजधानी अंचल से मृत पशुओं को यहां पहुंचाने की जिम्मेदारी नगर निगम भूल गया।
मजबूत विकल्प है, आप इस्तेमाल तो करिए
पॉलीथिन का मजबूत विकल्प उपलब्ध है। जरूरत इस्तेमाल करने की है। पॉलीथिन के बदले कागज या कपड़े के बने कैरी बैग आसानी से उपयोग किए जा सकते हैं। यह किफायती होने के साथ-साथ पर्यावरण के लिए भी काफी लाभदायक है। अच्छी बात यह है कि हम खरीदारी के समय अपना झोला देकर भी दुकान से छोटी-छोटी चीजों को घर ला सकते हैं। इससे पर्यावरण की सुरक्षा होगी और जिंदगी के लिए कोई परेशानी भी नहीं खड़ी होगी।