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कोसी क्षेत्र को यूं ही 'मक्का का मक्का' नहीं कहते, कई देशों में होता है सप्लाई, कोरोना ने बर्बाद की फसल

आज बाजार में मक्के के उत्पाद भरे पड़े हैं। कॉर्नफ्लेक्स पॉपकार्न चिप्स आटा सत्तू और न जाने क्या-क्या। पूर्णिया में उसकी खेती करने वाले किसान इस बार बदहाल हैं।

By Amit AlokEdited By: Published: Fri, 08 May 2020 01:19 PM (IST)Updated: Sat, 09 May 2020 11:38 AM (IST)
कोसी क्षेत्र को यूं ही 'मक्का का मक्का' नहीं कहते, कई देशों में होता है सप्लाई, कोरोना ने बर्बाद की फसल
कोसी क्षेत्र को यूं ही 'मक्का का मक्का' नहीं कहते, कई देशों में होता है सप्लाई, कोरोना ने बर्बाद की फसल

पूर्णिया, मनोज कुमार। पीले-पीले दाने। आटा बना लें, सत्तू बना लें या फिर कॉर्नफ्लेक्स। गांव-देहात से लेकर शहर तक विभिन्न रूप में मिल जाएगा। पार्क या मल्टीप्लेक्स में पॉपकार्न के बिना तो बात ही नहीं बनती है। आखिर इसके मूल में है क्या? यह है मक्का। मकई भी बोलते हैं। पॉककार्न, स्वीटकॉर्न, कॉर्नफ्लेक्स, चिप्स क्या कुछ नहीं बनता है इससे। जिस फसल से बनने वाली इतनी चीजों को बड़े चाव से खाया जाता है, उस मक्के की उपज के बारे में नहीं जाना चाहेंगे? तो हम ले चलते हैं पूर्णिया। बिहार का कोसी क्षेत्र, जो मक्के के लिए मशहूर है। पीले-पीले दाने देख किसानों के चेहरे खिल उठते थे, लेकिन इस बार मौसम और कोरोना की मार ने यहां किसानों के चेहरे भी पीले कर दिए हैं।

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80 फीसद लोग करते हैं खेती, मक्‍का प्रमुख नकदी फसल

पूर्णिया में 80 फीसद लोग कृषि पर निर्भर हैं। प्रमुख फसल है मक्का। यह किसानों के लिए नकदी फसल है। इस बार भी 61 हजार हेक्टेयर में इसकी खेती की गई। फसल भी अच्छी हुई। जब कटनी का समय आया तो आंधी-बारिश ने फसल बर्बाद कर दी। वहीं, लॉकडाउन के कारण न तो विदेशी कंपनियां खरीदारी के लिए आ रही हैं और न ही लोकल ट्रेडर। किसानों का कहना है कि हाल के वर्षों में मक्के की इतनी कम कीमत कभी नहीं मिली थी।

अच्छी क्वालिटी के कारण विदेश में भी रहती मांग

पूर्णिया में अच्छी क्वालिटी के मक्के का उत्पादन होता है। इसकी कद्रदान विदेशी कंपनियां भी हैं। फ्रांस, ऑस्ट्रेलिया, लंदन, सिंगापुर, जापान आदि आधा दर्जन देशों की कंपनियां यहां से डेढ़ से दो लाख टन मक्का हर साल खरीदती हैं। इसके अलावा लगभग 200 लोकल ट्रेडर यहां मक्के का कारोबार करते हैं। यहां से हर साल लगभग 10 लाख टन मक्का देश के दूसरे प्रांतों में निर्यात किया जाता है। यह दवा और अन्य खाद्य सामग्री बनाने के काम में आता है।

हर साल होता एक हजार करोड़ का कारोबार

पूर्णिया रेलवे जंक्शन, जलालगढ़ एवं रानीपतरा रेलवे स्टेशन पर स्थित तीन रैक प्वाइंटों से पिछले साल लगभग दो लाख टन मक्का दूसरे प्रांतों में भेजा गया था। इससे चार गुणा अधिक हर साल सड़क मार्ग से भेजा जाता है। पूर्णिया में लगभग एक हजार करोड़ रुपये का मक्के का सालाना कारोबार होता है।

दशक की न्‍यूनतम कीमत मिल रही इस साल

इतने बड़े पैमाने पर मक्के का उत्पादन करने वाले पूर्णिया के किसान इस साल किसान मायूस हैं। पिछले 10 वर्षों में इस बार किसानों को सबसे कम कीमत मिल रही है। लॉकडाउन के कारण खरीदार नहीं आ रहे हैं। कई लोग पशुओं को खिलाने के लिए भी मक्का लेते थे, लेकिन इस बार ये भी नहीं आए। उपज तो अच्छी हुई, लेकिन बाद में खराब मौसम और फिर कोरोना वायरस ने किसानों की उम्मीदें तोड़ दी।

900 रुपये क्विंटल से अधिक नहीं दे रहे व्यापारी

इस बार मक्का किसी तरह 1000 रुपये प्रति क्विंटल बिक रहा है। गांव में 900 रुपये से ज्यादा देने को तैयार नहीं। वीरनगर के किसान मो. खुर्शीद पिछले कई वर्षों से मक्के की खेती कर रहे हैं। वे बताते हैं कि इस बार कीमत सुनकर रोना आ जाता है। गांव में व्यापारी 900 रुपये क्विंटल से अधिक देने को तैयार नहीं हैं। मंडी में कीमत इससे कुछ अधिक है, लेकिन उसमें भाड़ा आदि देकर बात बराबर हो जाती है। के नगर के किसान रोहित मंडल कहते हैं कि इस बार खेती की लागत निकालनी भी मुश्किल हो रही है।

61 हजार हेक्‍टेयर में की गई मक्‍के की खेती

जिला कृषि पदाधिकारी शंकर झा कहते हैं कि इस बार रबी मौसम में 61 हजार हेक्टेयर में मक्के की खेती की गई है। खरीफ सीजन में 40 हजार हेक्टेयर में खेती हुई थी। रबी मौसम में हर साल किसान बड़े पैमाने पर इसकी खेती करते हैं। जिले में डेढ़ लाख से अधिक किसान इसकी खेती करते हैं।

खेती के लिए अनुकूल है पूर्णिया की जलवायु

बीपीएस कृषि कॉलेज, पूर्णिया के एसोसिएट डीन व प्राचार्य डॉ. पारसनाथ बताते हैं कि पूर्णिया समेत सीमांचल की जलवायु मक्के की फसल के अनुकूल है। 10-15 साल पहले यहां रबी की मुख्य फसल गेहूं थी। अनुकूल जलवायु नहीं होने के कारण इसकी उपज कम होती थी। गेहूं की औसत उपज 50 से 60 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है, जबकि यहां प्रति हेक्टेयर 20-25 क्विंटल ही उत्पादन हो पाता था। मक्का की उपज यहां 100 से 150 क्विंटल ङ्क्षक्वटल प्रति हेक्टेयर है। साथ ही मक्का खरीफ और रबी दोनों मौसम में उपजता है।

बेहतर बाजार उपलब्‍ध, पर इस बार हालात प्रतिकूल

यहां मक्के का बेहतर बाजार उपलब्ध है। उत्तर बिहार की सबसे बड़ी मंडी गुलाबबाग में पूरे देश सहित नेपाल तक से व्यापारी आते हैं। साथ ही बड़ी-बड़ी कंपनियां मक्के की खेती के लिए एडवांस रुपये देती हैं। यही वजह है कि यहां बड़े पैमाने पर मक्के की खेती होती है। लेकिन इस साल हालात बिगड़े हुए हैं।

निर्यात बंद होने से रोजगार ठंडा, व्यापारी भी चिंतित

गुलाबबाग मंडी के व्यापारी सुनील साह कहते हैं कि पिछले 10 साल में बाजार में ऐसी दुर्दशा नहीं देखी थी। व्यवसायी बबलू साह कहते हैं कि यहां से मक्का नेपाल, भूटान, बांग्लादेश, हरियाणा, दिल्ली, आंध्रप्रदेश, केरल, मुंबई आदि जगहों पर भेजा जाता है। इस बार इसका निर्यात बंद है। व्यवसायी संतोष जायसवाल कहते हैं कि इस बार कर्नाटक में मक्के की बंपर पैदावार हुई है। इसलिए दक्षिण के राज्यों में मांग नहीं है। यहां 22 कंपनियां मक्का खरीदती हैं, लेकिन इस बार रोजगार ठंडा है।


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