अशोक चौधरी के पाला बदल से टारगेट पर कांग्रेस, दिलचस्प होगी राज्यसभा की लड़ाई
बिहार में राज्यसभा चुनाव की लड़ाई दिलचस्प होने के आसार हैं। पूर्व प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अशोक चौधरी के पाला बदल से कांग्रेस टारंगेट पर है। जानिए मामला।
पटना [अरविंद शर्मा]। बिहार में राज्यसभा की छह सीटों के लिए 23 मार्च को चुनाव होने हैं, किंतु बड़े सियासी दलों के बीच घमासान अभी से शुरू हो गया है। असली लड़ाई छठी सीट को लेकर होने वाली है। मतदान के फार्मूले के हिसाब से दोनों गठबंधनों के हिस्से में तीन-तीन सीटें आसानी से आती दिख रहीं थीं, लेकिन ऐन वक्त पर कांग्र्रेस के चार विधान पार्षदों के पाला बदलने से महागठबंधन की स्थिति नाजुक दिखने लगी है। हालांकि, राज्यसभा चुनाव में पार्षद वोट नहीं करते हैं, किंतु कुछ विधायकों ने अशोक की राह पकड़ ली तो राजद-कांग्रेस की राह मुश्किल हो सकती है।
राज्यसभा-विधान परिषद चुनावों में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की नीति तोडफ़ोड़ की नहीं रही है। पिछले चुनाव में उन्होंने इसे साबित भी किया था, किंतु जदयू की नई साथी भाजपा को इससे परहेज नहीं है। अपने हिस्से की एक सीट निकालने के साथ वह दूसरी सीट के लिए प्रयास कर सकती है। कांग्र्रेस के विधायक भाजपा के टारगेट में आ सकते हैं।
दो अप्रैल को खाली होने वाली राज्यसभा की छह सीटों में से राजद-कांग्र्रेस गठबंधन के खाते की एक भी सीट नहीं है। सभी सीटें सत्तारूढ़ गठबंधन की हैं। चार सीटें जदयू एवं दो सीटें भाजपा की हैं। भाजपा एवं जदयू की कोशिश होगी कि रिक्त हो रही सीटों पर उसके अधिकतर नेताओं की वापसी हो जाए। ऐसे में कांग्रेस के विधायकों को अंतरात्मा की आवाज, सत्तारुढ़ दलों के वाणी-व्यवहार एवं प्रतिद्वंद्वी प्रत्याशी के प्रताप के आगे अनियंत्रित करने की कोशिश हो सकती है।
हालांकि, राजद के राष्ट्रीय महासचिव भोला यादव ऐसी किसी आशंका से इनकार करते हैं। उनके मुताबिक राजद के सभी विधायक एकजुट हैं और कांग्रेस छोड़कर जिन्हें जाना था, वे जा चुके। पार्षदों के जाने से राज्यसभा चुनाव पर कोई असर नहीं पडऩे वाला, क्योंकि उन्हें वोट नहीं देना होता है।
बढ़ सकती हैं महागठबंधन की मुश्किलें
243 सदस्यों वाली विधानसभा में राज्यसभा की एक सीट जीतने के लिए 35 वोटों की दरकार होगी। राजग के पास कुल 128 वोट हैं। दो सीटें निकालने के लिए जदयू को किसी की मदद की जरूरत नहीं पड़ेगी। भाजपा के पास एक सीट जीतने के बाद 22 वोट बचेंगे। दूसरी सीट के लिए उसे 13 वोट का जुगाड़ करना पड़ेगा। कांग्रेस के 27 विधायक हैं और उसे एक सीट जीतने के लिए आठ अतिरिक्त वोट की दरकार है। सबकी नजर जदयू से सेवानिवृत्त होने वाले उद्योगपति किंग महेंद्र पर है। उन्हें किसी दल से परहेज नहीं है। कांग्रेस और राजद से भी वह राज्यसभा जा चुके हैं।
किंग महेंद्र जिस दल के प्रत्याशी बनेंगे, प्रतिद्वंद्वी खेमे को उनकी काट तलाशने की जरूरत पड़ेगी। अभी सबसे बड़ा सवाल यही है कि किंग महेंद्र किस पार्टी से प्रत्याशी बनाए जाते हैं। तीन सीटों पर जीत के लिए विपक्ष को 105 वोट चाहिए। अभी हैं 106 वोट। जरूरत से एक ज्यादा। ऐसे में सत्ता पक्ष की नीयत डोल सकती है। कांग्र्रेस के दो विधायकों ने भी अगर पाला बदल लिया या वोट के समय अनुपस्थित हो गए तो महागठबंधन की मुश्किलें बढ़ जाएंगी।