कर्नाटक में कांग्रेस चली बिहार की राह, इस एक गलती से घटता गया जनाधार
वर्ष 2000 में बिहार में राजग को सत्ता से बाहर करने के लिए कांग्रेस ने राजद को समर्थन दिया था। कांग्रेस कुछ इसी राह पर कर्नाटक में चल रही है। क्या है मामला, जानिए इस खबर में।
पटना [अरविंद शर्मा]। कर्नाटक में भाजपा को सत्ता में आने से रोकने के लिए कांग्रेस ने जनता दल (एस) को समर्थन देने की घोषणा की है। ऐसा ही कांग्रेस बिहार में भी कर चुकी है। हालांकि, बिहार में यह रणनीति कांग्रेस की बड़ी गलती साबित हो चुकी है। बिहार में 18 साल पहले नीतीश कुमार की समता पार्टी और भाजपा को सत्ता से बाहर रखने के लिए कांग्रेस ने राजद को समर्थन दे दिया था। उसके बाद कांग्रेस नंबर दो से तीन और चार नंबर तक पार्टी बन गई।
लोकसभा एवं राज्य विधानसभा चुनावों में कांग्रेस की सीटें लगातार कम होती गईं। हालात ऐसे हो गए कि वर्ष 2010 के चुनाव में 243 सदस्यीय बिहार विधानसभा में कांग्रेस के सिर्फ चार विधायक ही जीतकर आ सके।
बिहार में कर्नाटक की तरह थे हालात
मार्च 2000 में आज के कर्नाटक की तरह ही तब बिहार के सियासी हालात थे। कांग्रेस और राजद दोनों ने अलग-अलग चुनाव लड़ा था, लेकिन चुनाव बाद सत्ता की लालसा में दोनों साथ आ गए थे। तब झारखंड का बंटवारा नहीं हुआ था। 324 सदस्यीय बिहार विधानसभा में राजद को कुल 124 सीटें मिलीं थीं। यानी बहुमत से 38 कम।
लगातार गिरता गया कांग्रेस का ग्राफ
अपने बूते लड़कर कांग्रेस को 23 सीटें मिलीं थीं। उसने राजद की राबड़ी देवी सरकार को समर्थन देकर सदानंद सिंह को स्पीकर और बाकी 22 विधायकों को मंत्री बनवाया था। कुछ निर्दलीय विधायकों एवं अन्य दलों में तोडफ़ोड़ के सहारे राबड़ी सरकार 2005 तक तो चली, लेकिन बिहार में कांग्रेस का ग्राफ लगातार गिरता गया।
राजनीतिक विश्लेषक अभय कुमार कहते हैं कि तब कांग्रेस राबड़ी सरकार में शामिल होने के बजाय संघर्ष का रास्ता अपनाती और मजबूत विपक्ष की भूमिका में होती तो बिहार में उसकी ऐसी दुर्गति शायद नहीं होती। बिहार की बानगी से कांग्रेस को कर्नाटक में सबक लेना चाहिए। बिहार में राजद की राबड़ी सरकार के तमाम कार्यों में कांग्रेस बराबर की भागीदार बनती रही, जिसका खामियाजा बाद के चुनावों में भुगतना पड़ा।
क्या हुआ था 2000 में
संयुक्त बिहार में सरकार बनाने के लिए राजद को पर्याप्त संख्या नहीं मिली थी। लिहाजा भाजपा एवं नीतीश कुमार की तत्कालीन समता पार्टी ने सरकार बनाने की पहल की। बहुमत न होने के बावजूद तत्कालीन राज्यपाल सुंदर सिंह भंडारी ने 3 मार्च 2000 को नीतीश को मुख्यमंत्री पद की शपथ दिला दी। किंतु बहुमत नहीं होने की वजह से उन्हें 10 मार्च को इस्तीफा देना पड़ा। इसके बाद कांग्रेस के समर्थन से राजद ने सरकार बनाई, जो पूरे पांच वर्ष चली।
वर्षवार कांग्रेस का ऐसे घटता गया जनाधार
- 2000 : 23
- 2005 फरवरी : 10
- 2005 अक्टूबर : 9
- 2010 : 4
- 2015 : 27