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पिता ने घर ले जाने से किया इन्‍कार, बच्‍चे ने हॉस्‍टल की छत से कूदकर दी जान

परिजनों के द्वारा हॉस्टल से छात्र को घर नहीं ले जाने के कारण वह तनाव में था। तनाव में आकर ही उसने सुबह में छत से कूद कर अपनी जीवन लीला समाप्त कर ली।

By Ravi RanjanEdited By: Published: Sun, 17 Dec 2017 08:25 PM (IST)Updated: Mon, 18 Dec 2017 10:54 PM (IST)
पिता ने घर ले जाने से किया इन्‍कार, बच्‍चे ने हॉस्‍टल की छत से कूदकर दी जान
पिता ने घर ले जाने से किया इन्‍कार, बच्‍चे ने हॉस्‍टल की छत से कूदकर दी जान

नालंदा [जेएनएन]। बिहार थाना क्षेत्र के टिकलीपर मोहल्ला पर स्थित सर्वांगीण बाल विकास विद्यालय के हॉस्टल में रह रहे 8 वर्षीय छात्र अमर कुमार रविवार को छत से कूद कर अपनी जान दे दी। बालक की पहचान सोहसराय निवासी विरेश कुमार का पुत्र बताया जाता है।

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घटना के संबंध में स्कूल की संचालिका शीला देवी ने बताया कि अमर कुमार स्वभाव से बहुत नटखट था और वह पिछली बार भी अपने पिता के साथ घर जाने के क्रम में साइकिल से कूद गया था। इसमें भी छात्र अमर की जान बच गई थी। इस बार अमर के परिजनों के द्वारा दादा के श्राद्धकर्म में हॉस्टल से छात्र को घर नहीं ले जाने के कारण वह तनाव में था। तनाब में आकर ही उसने सुबह में छत से कूद कर अपनी जीवन लीला समाप्त कर ली।

संचालिका ने बताया कि अमर के नाना का दो दिन बाद श्राद्धकर्म था और वह उसमें जाना चाहता था लेकिन परिजनों ने उसे ले जाने से साफ इंकार कर दिया। इस कांड के बाद अपने बच्चों को हॉस्टल में रखने वाले अभिभावकों के होश उड़ गए।

दूसरी ओर छात्र के परिजनों ने हॉस्टल के संचालक पर हत्या का आरोप लगाया है। परिजनों ने कहा कि तीन मंजिला इमारत से कूदने के बावजूद बच्चे के शरीर पर कोई निशान आखिर क्यों नहीं है? फिलहाल मामला संदेह के घेरे में है।

पुलिसिया जांच के बाद ही मामला स्पष्ट हो पाएगा कि हॉस्टल में रह रहे छात्र अमर कुमार की मौत आत्महत्या से हुई है या फिर इसकी हत्या की गई है।  घटना के बाद पुलिस ने शव को कब्जे में लेकर पोस्टमार्टम के लिए बिहार शरीफ अस्पताल भेज दिया है। घटना के बाद परिजनों का रो-रोकर बुरा हाल है।

मनोवैज्ञानिक की सुने

मनोविज्ञान के जानकार शिवजी मिश्रा ने कहा कि बच्चों के पालन-पोषण से काफी बदलाव आता है। अभिभावकों के पास समय की कमी होते जा रही है। उनके पास अपने बच्चों तक को देने का समय नहीं है। परिणामत: उनका बचपन मोबाइल, इंटरनेट में बंधकर रह जाता है। उनमें जिद की प्रवृति भी बढऩे लगती है। वह मोबाइल की काल्पनिक दुनिया को हकीकत का रूप देने की कोशिश करने लगता है। इसके बाद अभिभावकों के ब्लैकमेल की शुरूआत हो जाती है।

बच्चा अपनी हर मांग को पूरा कराना चाहता है। बात-बात पर धमकी देना रोना-चिल्लाना उसकी दिनचर्या का हिस्सा बन जाता है। उन्होंने कहा कि अभिभावकों को अपने बच्चों के हर क्रिया कलाप को ध्यान में रखना चाहिए ताकि बच्चों की ङ्क्षजदगी संवर सके। बच्चों के गलत कार्य का प्रतिकार किया जाना चाहिए वहीं उसके अच्छे कार्यों की प्रशंसा भी की जानी चाहिए। 


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