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NDA में कम होती जा रही कुशवाहा के रहने की गुंजाइश, आगे-आगे देखिए होता है क्‍या

उपेंद्र कुशवाहा खुद राजग (NDA) से निकलेंगे या उन्‍हें निकाला जाएगा, यह देखना बाकी है। इतना तो तय लग रहा है कि उनकी राह जुदा होने वाली है। हां, इस क्रम में उनकी पार्टी टूट सकती है।

By Amit AlokEdited By: Published: Sun, 02 Dec 2018 09:35 AM (IST)Updated: Sun, 02 Dec 2018 03:05 PM (IST)
NDA में कम होती जा रही कुशवाहा के रहने की गुंजाइश, आगे-आगे देखिए होता है क्‍या
NDA में कम होती जा रही कुशवाहा के रहने की गुंजाइश, आगे-आगे देखिए होता है क्‍या
पटना [अरुण अशेष]। लंबे समय से इधर-उधर की बातें कर रहे राष्‍ट्रीय लोक समता पार्टी (रालोसपा) सुप्रीमो उपेंद्र कुशवाहा अब असल बात बोल रहे हैं। उन्हें किसी और से नहीं, जनता जद यूनाइटेड (जदयू) सुप्रीमो व मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की नेतृत्व वाली भूमिका से परहेज है। इसका सीधा मतलब यह भी है कि राष्‍ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) में उनके लिए जगह नहीं है। महागठबंधन में वे किन शर्तों पर शामिल होंगे, बस यही तय होना बाकी है। हालांकि, इस फैसले से पार्टी टूट भी सकती है।
राजग में नहीं रहने की कई वजहें
कुशवाहा के राजग में न रह पाने की कई वजहें हैं। सबसे बड़ी वजह: वे नीतीश से बराबरी करने का है। तर्क यह कि लोकसभा चुनाव में जदयू ने दो और रालोसपा ने तीन सीटें जीती थीं। राज्य कैबिनेट में उन्हें लोकसभा की छह सीट जीतने वाली लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) की आधी हैसियत भी नहीं दी गई। लोजपा को एक मंत्री पद के अलावा विधान परिषद की सदस्यता दी गई। कुशवाहा देर से इस पर बोले। तब तक समय के साथ उनके दोनों विधायक भी हाथ से निकल चुके थे।

एक उम्मीद लोजपा से थी। कुशवाहा चाहते थे कि राजग में लोजपा से मिलकर वे तीसरी ताकत बना लें। यह दांव उल्टा पड़ गया। लोजपा का अपना गणित है- रालोसपा की गैर-हाजिरी में अधिक सीटें मिलेंगी। हर दल अपना फायदा देखता है। लोजपा अपवाद नहीं है।
बीच में उपेंद्र नरम हुए। उन्होंने खुद को 'नीच' कहे जाने वाले कथन के लिए नीतीश कुमार से माफी मांगने की शर्त रखी थी। इसे शिथिल  करते हुए उन्होंने अपेक्षा की कि नीतीश अपना कथन वापस लें। किसी और संदर्भ में नीतीश ने कह दिया कि उनके शब्दकोष में किसी के लिए नीच जैसा शब्द है ही नहीं। इसके बाद यह भी अध्याय खत्म हो गया।
इस दौरान कुशवाहा ने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) अध्यक्ष अमित शाह से मुलाकात की कई कोशिशें की। ये कोशिशें नाकाम रहीं तो भरपाई के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात का समय मांगा। इसमें भी सफलता नहीं मिल सकी।

कौन पहल करे, इसमें फंसा पेच

घटनाक्रम को देखें तो साफ हो जाएगा कि कुशवाहा और भाजपा दोनों एक दूसरे से ऊबे हुए लगते हैं। भाजपा चाह रही है कि कुशवाहा खुद निकल जाएं। कुशवाहा की मांग है कि उन्हें निकाला जाए, ताकि शहीद बनकर मैदान में जाएं। बस, इसी में मामला फंसा हुआ है। लेकिन अब लगता है कि पहल कुशवाहा की ओर से ही होगी।
राजग के साथ रहना चाहता पार्टी का एक गुट
शनिवार को तीन घटनाएं हुईं। उपेंद्र ने नीतीश के नेतृत्व को मानने से मना कर दिया। रालोसपा के राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष नागमणि नई दिल्ली में शरद यादव से मिले। कहा कि राजग में रहने वाला चैप्टर बंद ही समझिए। उधर, पार्टी के प्रदेश कार्यकारी अध्यक्ष भगवान कुशवाहा ने कहा कि राजग में इज्जत है, उपेंद्र को इसी में बने रहना चाहिए। यह रालोसपा में टूट का भी संकेत है।
भगवान सिंह ने हाल में मुख्यमंत्री के साथ मंच साझा किया था। विधायक पहले से ही राजग में बने रहने की जिद किए हुए हैं। किसी वजह से उपेंद्र राजग में रह गए तो उन्हें नागमणि से हाथ धोना पड़ेगा।

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