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कैप्टन जय नारायण निषाद: नाम की तरह कद भी लंबा और राजनीतिक पारी भी लंबी

कैप्टन जय नारायण निषाद नहीं रहे। सोमवार को दिल्‍ली के एक अस्‍पताल में उन्‍होंने अंतिम सांस ली। उनकी लंबी राजनीतिक पारी की पूरी जानकारी के लिए पढ़ें यह खबर।

By Amit AlokEdited By: Published: Mon, 24 Dec 2018 09:36 PM (IST)Updated: Tue, 25 Dec 2018 08:26 AM (IST)
कैप्टन जय नारायण निषाद: नाम की तरह कद भी लंबा और राजनीतिक पारी भी लंबी
कैप्टन जय नारायण निषाद: नाम की तरह कद भी लंबा और राजनीतिक पारी भी लंबी

पटना [अरुण अशेष]। कैप्टन जय नारायण प्रसाद निषाद। नाम की तरह लंबा कद। दलों में रहने की लिस्ट इतनी लंबी कि एक बार में वह खुद भी नहीं बता पाते थे कि कब से कब तक किस दल में रहे। लंबी राजनीतिक पारी खेेल कर 88 साल की उम्र में विदा हुए। राजनीतिक दलों का बदलाव उनके  वजूद से जुड़ा था। दल बदलने से ही दूसरों को उनके प्रभाव का पता चलता था। मुजफ्फरपुर से पांच बार लोकसभा गए। दल बदलने का असर उनकी जनता पर कभी नहीं पड़ा। जिस दल से, उनके लोग उसी के हो जाते थे।

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वंचित वर्ग को याद दिलाई उनकी ताकत

सत्ता में आने के बाद लालू प्रसाद ने  वंचित जातियों और उनके समूहों को यह अहसास कराया कि उनके वोट की ताकत भी संपन्न लोगों के बराबर है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार इस अहसास को और आगे ले गए। अत्यंत पिछड़ी जातियां अगर चुनावी जीत के लिए अपरिहार्य बन गईं हैं तो इसमें लालू-नीतीश के अलावा कैप्टन निषाद का भी योगदान है। बार-बार दल बदल कर वे सिर्फ संसद ही नहीं जाते थे, वंचित वर्ग के लोगों को उनकी ताकत की याद भी दिलाते थे।

भाजपा से बेटे को भिजवाया लोकसभा

दल बदल उनके लिए क्यों जरूरी था? फर्ज कीजिए कि 2013 में दल बदलकर जदयू से भाजपा में नहीं जाते तो मुजफ्फरपुर उनके हाथ से निकला हुआ था। उम्र उन्हें चुनाव लडऩे की इजाजत नहीं दे रही थी। पुत्र अजय निषाद के लिए टिकट चाहते थे। भाजपा इसके लिए राजी हो गई।

जदयू ने किया पार्टी से निलंबित

आम चुनाव से एक साल पहले ही निषाद को जदयू से निलंबित कर दिया गया था। आरोप यह कि नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री बनाने के लिए आपने यज्ञ किया। 2008 में भाजपा में रहने के दौरान भी उनके साथ कुछ ऐसा ही हुआ। दल-बदल कर अगले साल फिर लोकसभा में थे। कुछ लोग कह सकते हैं कि कैप्टन ने परिवारवाद को बढ़ावा दिया। अपवाद को छोड़ कर बिहार के हरेेक राजनेता की यही गति है। जनता के बीच यह मुद्दा चल नहीं रहा है।

झटके में नहीं लेते थे फैसला

यह नहीं है कि निषाद झटके में कोई फैसला कर लेते थे। उनका हरेक फैसला राय मशविरे से तय होता था। दिल्ली वाले सरकारी आवास का एक हिस्सा आम लोगों के लिए आरक्षित था। अजय निषाद भी इस सुविधा को जारी रखे हुए हैं। मरीजों के लिए अलग इंतजाम।

दिल्‍ली आवास पर बिहारियों के लिए खास इंतजाम

राज्य का कोई आदमी सरकारी आवास में पहुंच जाए उसे हरसंभव मदद की कोशिश होती थी। सेहत अच्छी थी तो कैप्टन निषाद सबसे हाल-चाल पूछना नहीं भूलते थे। यह भी जनता की नब्ज परखने का उनका एक माध्यम था। कोई सवाल पूछे कि उन्होंने अपने समाज के लिए क्या किया? जवाब है- हरेक गठबंधन चाह रहा है कि मुकेश सहनी उसी के साथ रहें। आज जिस फसल को मुकेश काटना चाह रहे हैं, यह कैप्टन की ही जमीन है।


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