अब फोटो से होगी कैंसर की पहचान, पटना आइआइटी की छात्राओं ने ईजाद की नई तकनीक
देशभर में हुए आनलाइन हैकथान में आइआइटी पटना के प्रोजेक्ट को मिला पहला स्थान हैकथान में मिली पुरस्कार की राशि से अब प्रोजेक्ट को दे रही अंतिम रूप एम्स में होगा प्रायोगिक परीक्षण कैंसर के इलाज में आएगा बड़ा बदलाव
पटना, नलिनी रंजन। कैंसर की पहचान अब आम मरीज भी कैंसर की आशंका वाले अंग की तस्वीर या जांच रिपोर्ट पोर्टल पर डाल कर आसानी से कर सकेंगे। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आइआइटी), पटना से इंटर्न कर रही चार छात्राओं ने यह तकनीक ईजाद की है। छात्राओं के आइडिया को बीते मई में हुए हैकथान में प्रथम स्थान मिला था। पुरस्कार में मिली राशि से छात्राएं शांभवी, श्रुति मिश्रा, राशि अग्रवाल एवं वृद्धि लालवानी संयुक्त रूप से इस प्रोजेक्ट को अंतिम रूप दे रही हैं। आइआइटी के मेंटर प्राध्यापक श्रीपर्णा साहा सहित कई टीचर उनका सहयोग कर रहे है। इस वेब पोर्टल पर डीप लर्निंग तकनीक का उपयोग किया गया है। इससे स्तन, त्वचा और गर्भाशय के कैंसर का आसानी से पता चल जाता है। त्वचा कैंसर के मामले में कैंसर की आशंका वाले शरीर के हिस्से की तस्वीर, जबकि अन्य मामलों में मेमोग्राफी, अल्ट्रासाउंड एवं एक्स-रे रिपोर्ट की तस्वीर के आधार पर बीमारी की जानकारी मरीजों को दे दी जाती है।
एम्स में होगा प्रायोगिक परीक्षण
इस प्रोजेक्ट के प्रायोगिक परीक्षण का एक चरण एम्स पटना में होगा। एम्स पटना में इस वेब पोर्टल के जरिये मरीजों के रिकार्ड के साथ एक्यूरेसी चेक की जाएगी। यदि एक्यूरेसी 95 फीसद से अधिक होती है तो यह तकनीक आमजनों के लिए वरदान साबित हो सकती है।
चंद सेकेंड में मिलती जानकारी
सामान्य तौर पर आरंभिक चरण में कैंसर की पहचान नहीं हो पाती है। इससे उपचार में देर हो जाती है। इस समस्या के निदान में इंजीनियरिंग छात्राओं का यह प्रयोग बेहद अहम साबित होगा। इस पोर्टल में डीप लर्निंग तकनीक से स्तन, त्वचा और गर्भाशय कैंसर के फैलाव का भी पता किया जा सकेगा। एम्स पटना में रेडिएशन आंकोलाजी की विभागाध्यक्ष डा. प्रीतांजलि सिंह ने बताया कि पोर्टल में आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस का प्रयोग कर रोग का पता लगाने की तकनीक पर काम किया जा रहा है। यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि कितने मरीजों ने पोर्टल का उपयोग किया। यदि पोर्टल की एक्यूरेसी सही साबित हुई तो मरीजों के लिए यह तकनीक वरदान साबित हो सकती है। एम्स के पास प्रस्ताव आने पर शोध को आगे बढ़ाने में हर संभव मदद दी जाएगी।