फ्लाई ऐश की ईट पर्यावरण के अनुकूल
बिहार राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और डेवलपमेंट अल्टरनेटिव्ज ने बिहार में ईट उद्योग को पर्यावरण अनुकूल बनाने की पहल तेज कर दी है।
पटना । बिहार राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और डेवलपमेंट अल्टरनेटिव्ज ने बिहार में ईट उद्योग को पर्यावरण अनुकूल बनाने की पहल तेज कर दी है। बोर्ड (बीएसपीसीबी) के अध्यक्ष डॉ. अशोक घोष ने पारंपरिक ईट बनाने के तरीकों और बिहार की अर्थव्यवस्था पर पड़ रहे इसके बुरे प्रभाव पर चिंता व्यक्त की है।
अध्यक्ष ने कहा कि ईट उत्पादन और सड़क निर्माण के कारण हर साल 10 हजार हेक्टेयर उर्वरा मिट्टी खो जाती है। इस कारण कृषि उत्पादन पर असर पड़ रहा है। लाल ईट उद्योग में खाद्य सुरक्षा, वायु प्रदूषण, स्वास्थ्य चिंताओं और राज्य की समग्र स्थिति के आर्थिक विकास सहित कई चुनौतिया हैं, इसलिए पर्याप्त उपाय किए जाने चाहिए। पर्यावरण अनुकूल ईट उत्पादन प्रौद्योगिकी और अपशिष्ट प्रबंधन को बढ़ावा देने देने की जरूरत है।
फॉलो-अप करने के मामले में बिहार अग्रणी है। टास्क फोर्स की स्थापना, फ्लाई एश गुणवत्ता रेटिंग सिस्टम, ग्रीन एंटरप्राइज मेला, राज्य परामर्श, क्षमता विकास, प्रौद्योगिकी सुधार, नई तकनीक और जागरूकता सहित कई पहल की गई हैं। ग्लोबल थिंक टैंक डेवलपमेंट अल्टरनेटिव्ज क्लीनर ईंट उत्पादन प्रौद्योगिकियों को अपनाने में तेजी लाने के लिए बिहार सरकार के साथ काम कर रहा है।
बिहार में 4 थर्मल पावर प्लाट हैं जो हर साल अनुमानित 10.6 मिलियन टन फ्लाई ऐश का उत्पादन करते हैं और 2020 तक यह 22.57 मिलियन टन तक बढ़ने की उम्मीद है। प्रति वर्ष 7000 मिलियन ईंटों के उत्पादन के लिए पर्याप्त फ्लाई ऐश उपलब्ध है। फ्लाई ऐश प्रौद्योगिकी से कई लाभ हैं। यह उपजाऊ मिट्टी को संरक्षित करता है। यह ग्रीनहाउस गैस उत्पादन को कम करता है। कोयला जैसे प्राकृतिक संसाधनों को संरक्षित करता है। प्रति दस हजार फ्लाई ऐश ईंट से लगभग 2 टन कोयला बचेगा।