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'रोटी' में दिखा टूटते परिवार का दर्द

चेतना समिति द्वारा आयोजित चेतना रंग उत्सव के दूसरे दिन कालिदास रंगालय में दो नाटकों का हुआ मंचन

By JagranEdited By: Published: Mon, 16 Dec 2019 01:31 AM (IST)Updated: Mon, 16 Dec 2019 01:32 AM (IST)
'रोटी' में दिखा टूटते परिवार का दर्द
'रोटी' में दिखा टूटते परिवार का दर्द

पटना। चेतना समिति द्वारा आयोजित चेतना रंग उत्सव के दूसरे दिन कालिदास रंगालय में दो नाटकों का मंचन किया गया। भरत नाट्य कला केंद्र पूर्णिया द्वारा डॉ. सुमित कुमार सिंह लिखित और प्रवीण कुमार निर्देशित नाटक 'रोटी' का मंचन किया गया, जबकि मिथिला विकास परिषद, कोलकता द्वारा अशोक झा लिखित और निर्देशित नाटक 'द्वंद' का मंचन किया गया।

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रोटी में दिखा बिखरते परिवार का दर्द

नाटक 'रोटी' में दिखाने की कोशिश की गई कि किस तरह से संयुक्त परिवार के टूटने के बाद एकल परिवार में प्रेम, विश्वास की टूटन कैसे अभिशाप बन कर उभरती है। आलसी कामचोर, निकम्मे भाई कि परिवार में पूछ कम होते चले जाती है। भाभी के बदलते आचरण से आखिरकार भाई-भाई अलग हो जाते हैं। जिस रिश्ते में शुरू में मिठास देखने को मिलती है, उसी रिश्ते में खटास दिखने लगती है। जो भाई कल जान से प्यारा था, वहीं भाई अपना दुश्मन बन जाता है। बड़ा भाई अपनी ताकत के दम पर अपने छोटे भाई पर हावी हो जाता है। अपने गरीब जीवन को बचपन से संवारने की बजाय गलत संगत के प्रभाव के कारण घर, परिवार समाज से नायक कैसे बहिष्कृत होता है, इसे नाटक में दिखाया गया। नाटक में प्रवीण, सुमित, अमित कुंवर, विवेकानंद, विवेक, रामाशंकर, निलेश, रामभजन, मनीष, आरती, रानी, रिमझिम ने शानदार अभिनय किया। नाटक का संयोजन मिथिलेश राय ने किया।

..और परिवार में पैदा हो जाता है द्वंद

नाटक 'द्वंद' में विभिन्न समय पर परिवार में द्वंद की स्थिति को बहुत ही खूबसूरत ढंग से दिखाया गया है। इसमें नाटक में ऐसे तो नायक परिवार नियोजन के महत्व और उसके प्रचार-प्रसार में पूरा समय बिताता है, परंतु स्वयं दो पुत्री होने के बाद अपनी पत्‍‌नी द्वारा कराये गए नियोजन का हृदय से समर्थन नहीं कर पाता है। नाटक में समाज में बेटी की उपेक्षा और बेटा नहीं होने के कारण मानसिक यातना को समाप्त करने के लिए दोनों बेटियों के द्वारा नाटक के अंदर एक नाटक का सृजन होता है। इससे सास और नायक का भ्रम टूटता है। नाटक के सभी कलाकारों ने अपने शानदार अभिनय से दर्शकों को शुरू से अंत तक बांधे रखा।


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