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स्वाभिमान रैली नहीं, यह थी नमो निंदा रैली : भाजपा

दयू-राजद-कांग्रेस-समाजवादी पार्टी के महागठबंधन की रैली को फ्लाप बताते हुए भाजपा ने कहा कि यह लालू यादव के घटते जनाधार का द्योतक है। पार्टी के मुताबिक आयोजकों ने रैली का नाम तो स्वाभिमान रैली दिया था, लेकिन कुल मिलाकर यह नमो निंदा रैली थी।

By Kajal KumariEdited By: Published: Mon, 31 Aug 2015 02:26 PM (IST)Updated: Mon, 31 Aug 2015 02:32 PM (IST)
स्वाभिमान रैली नहीं, यह थी नमो निंदा रैली : भाजपा

पटना। जदयू-राजद-कांग्रेस-समाजवादी पार्टी के महागठबंधन की रैली को फ्लाप बताते हुए भाजपा ने कहा कि यह लालू यादव के घटते जनाधार का द्योतक है। पार्टी के मुताबिक आयोजकों ने रैली का नाम तो स्वाभिमान रैली दिया था, लेकिन कुल मिलाकर यह नमो निंदा रैली थी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता और बढ़ते प्रभाव से हताश और निराश लोगों की यह रैली थी।

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प्रदेश भाजपा मुख्यालय में नेता प्रतिपक्ष नंदकिशोर यादव और प्रदेश अध्यक्ष मंगल पांडेय ने रविवार को प्रेस कांफ्रेंस में कहा बिहार की जनता ने रैली को पूरी तरह से नकार दिया। गरीब, दलित, अतिपिछड़ा और महिलाएं गायब रहीं। यानी इस तबके ने रैली को अस्वीकार कर दिया।

नेता प्रतिपक्ष ने कहा कि लालू यादव ने अपने जमाने में इसी गांधी मैदान में एक से एक बड़ी रैलियां की हैं। आज की यह रैली तीन दलों की थी। तीन दलों की रैली में भी संख्या घट गई, यह लालू प्रभाव के घटते जनाधार का असर है। उन्होंने कहा कि मंच पर तीनों दलों के शीर्ष नेता मौजूद थे, लेकिन इनके भाषणों में विरोधाभाष दिखा। सोनिया गांधी ने कहा कि नीतीश कुमार के दस साल और लालू यादव के पंद्रह साल के शासन में बिहार में काफी विकास हुआ। मैं नीतीश कुमार से पूछना चाहता हूं क्या वह सोनिया जी के बयान से सहमत हैं। अगर सहमत हैं तो लालू यादव के राज को आतंकराज बताते हुए उसके खिलाफ बिगुल क्यों फूंका था। अपने भाषण में नीतीश ने कहा कि जेपी के चरणों में मैंने राजनीति करना सीखा। यादव ने कहा कि अगर जेपी के चरणों में उन्होंने राजनीति सीखी तो उसी कांग्रेस से हाथ क्यों मिला लिया जिसके खिलाफ जेपी जीवन भर संघर्ष करते रहे। खुद लालू प्रसाद का भाषण भी पूरी तरह निराशाजनक था। उनका वोट बैंक भी अब भैंस चराने को तैयार नहीं। उसे भी विकास चाहिए। मोबाइल, कंप्यूटर और इंटरनेट चाहिए।

प्रदेश अध्यक्ष मंगल पांडेय ने कहा कि गरीब गुरबों ने रैली को नकार दिया। जो लोग आए वह भी भाड़े पर ढोकर लाए गए लोग थे। जनता ने इस रैली में एक अहंकारी और एक भ्रष्टाचारी को बिहार को सजाने और संवारने की बात कहते सुना। इस रैली से बिहार एक बार फिर से शर्मशार हुआ है। कई मंत्रियों ने अफसरों को दबाव देकर रैली में भीड़ जुटाने के काम में लगाया। बावजूद भीड़ नहीं जुटी। प्रभुनाथ सिंह जैसे नेताओं ने रैली के मंच से जिस तरह की भाषा का प्रयोग किया उससे बिहार एक बार फिर से दुनिया के सामने शर्मशार हुआ है।

पांडेय ने कहा कि देश में करीब पचास साल तक राज करने वाली कांग्रेस पार्टी को भी रैली में औकात बता दी गई। उसकी राष्ट्रीय अध्यक्ष सोनिया गांधी को नीतीश कुमार, शरद यादव और लालू यादव से पहले बुलाया गया। आम तौर पर किसी भी रैली में मुख्य वक्ता सबसे अंत में भाषण करता है। लालू यादव अंतिम वक्ता रहे। यानी महागठबंधन के वह सबसे ताकतवर नेता हैं। बिहार की जनता अब लालू यादव के नेतृत्व को किसी भी कीमत पर स्वीकारने को तैयार नहीं है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बिहार को सवा लाख करोड़ के पैकेज की घोषणा को नीतीश कुमार द्वारा रीपैकेजिंग कहे जाने पर पांडेय ने कहा कि मैं चुनौती देता हूं। इसमें सभी योजनाएं नई हैं। नीतीश कुमार में हिम्मत है तो सोनिया गांधी से पूछें दस साल केंद्र की सत्ता में रहते हुए इन योजनाओं को शुरू क्यों नहीं कराया।


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