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मिशन 2019: महागठबंधन खेमे की सियासत में खलबली मचा गए अमित शाह

राजग के घटक दलों की एकजुटता और लोकसभा चुनाव आक्रामक अंदाज में लडऩे का ऐलान करके भाजपा अध्यक्ष ने महागठबंधन खेमे की बेचैनी भी बढ़ा दी है।

By Kajal KumariEdited By: Published: Sat, 14 Jul 2018 02:51 PM (IST)Updated: Sat, 14 Jul 2018 07:31 PM (IST)
मिशन 2019: महागठबंधन खेमे की सियासत में खलबली मचा गए अमित शाह
मिशन 2019: महागठबंधन खेमे की सियासत में खलबली मचा गए अमित शाह

पटना [अरविंद शर्मा]। भाजपा-जदयू की दोस्ती को नए दौर में पहुंचाकर भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह शुक्रवार सुबह पटना से विदा हो गए, लेकिन विरोधी दलों के बीच छोड़ गए चर्चाओं, आशंकाओं और सवालों का लंबा सिलसिला।

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राजग के घटक दलों की एकजुटता और लोकसभा चुनाव आक्रामक अंदाज में लडऩे का ऐलान करके भाजपा अध्यक्ष ने महागठबंधन खेमे की बेचैनी भी बढ़ा दी है। साथ ही बिहार में राजग का चुनावी चेहरा और सीट बंटवारे के मुद्दे पर जारी कयासों पर भी फिलहाल विराम लगा दिया है। 

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के साथ अमित की बात-मुलाकात पर देशभर की निगाहें टिकी हुई थीं, क्योंकि यूपी में सपा-बसपा के एक साथ आने और बिहार में अररिया लोकसभा समेत चार सीटों पर हुए उपचुनावों में तीन सीटों पर हार से राजग की परेशानियों में दिन प्रतिदिन इजाफा हो रहा था।

ऐसे में राजद-कांग्रेस के नेता राजग की एकता पर सवाल उठा रहे थे। सीट बंटवारे और बिहार में राजग के चेहरे के सवाल पर विपक्षी नेताओं की बयानबाजी से गठबंधन की धार कमजोर हो रही थी।

हिन्दुस्तानी अवाम मोर्चा (हम) प्रमुख जीतनराम मांझी के पाला बदलने के बाद राष्ट्रीय लोकसमता पार्टी (रालोसपा) प्रमुख उपेंद्र कुशवाहा की गतिविधियों से भी विपक्षी तेवर को मजबूती मिल रही थी। भाजपा-जदयू की शीर्ष मुलाकात ने एक साथ सारे अध्यायों को बंद कर दिया और स्पष्ट कर दिया कि बिहार में राजग के घटक दल पूरी तरह एकजुट हैं और भाजपा-जदयू की दोस्ती अभी लंबी चलेगी। 

भाजपा-जदयू के आगे पस्त होते रहे हैं विरोधी 

महागठबंधन के घटक दलों की परेशानी यहीं से शुरू हो सकती है, क्योंकि कांग्र्रेस-राजद को मजबूत प्रतिद्वंद्वी से मुकाबले का इतिहास नहीं रहा है। बिहार में 2005 से ही भाजपा-जदयू की संयुक्त ताकत के आगे विरोधी पस्त होते आए हैं।

नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव को बेहतर पता है कि दोनों के बिखरने पर ही महागठबंधन की ताकत बढ़ी और बिहार में राजग सत्ता से बेदखल हो सका। अब दोनों फिर एक हैं तो निपटना आसान नहीं होगा। राजद प्रमुख लालू प्रसाद की अनुपस्थिति में मुकाबला और मुश्किल होगा। खासकर तब जब नीतीश कुमार से दोस्ती को लेकर कांग्र्रेस अभी तक असमंजस के दौर से गुजर रही है। नीतीश के पक्ष में प्रदेश कांग्र्रेस नेताओं का बयान इसका उदाहरण है। 

सीमांचल में भी बढ़ सकता है राजग का दायरा 

अररिया और जोकीहाट उपचुनावों के नतीजों ने साबित कर दिया है कि राजग के लिए सीमांचल में महागठबंधन से मुकाबला आसान नहीं होगा। अब भाजपा-जदयू की मजबूत दोस्ती से सीमांचल में भी राजग प्रतिद्वंद्वी को चुनौती दे सकता है।

नीतीश कुमार के सुशासन और धर्मनिरपेक्ष चेहरे के जरिए मुस्लिम बहुल इलाकों में भी राजग अपनी पकड़ मजबूत कर सकता है। सीमांचल समेत कई संसदीय सीटें ऐसी हैं, जहां राजद का मुस्लिम-यादव (माय) समीकरण मजबूत है। ऐसी सीटों पर भाजपा अपने दम पर जीत नहीं सकती है, किंतु नीतीश की छवि को भुनाकर फायदा उठा सकती है। 


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