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भोला प्रसाद सिंह: स्‍मृतियों में सदा जीवित रहेंगे सेवा व संघर्ष के ये सारथी

बेगूसराय के दिवंगत सांसद भोला प्रसाद सिंह राजनीति में सेवा, संघर्ष और सरोकार के सारथी माने गए। पक्ष-विपक्ष व आरोप-प्रत्‍यारोप की राजनीति के बीच उनकी अलग पहचान बनी रही।

By Amit AlokEdited By: Published: Sat, 20 Oct 2018 07:00 PM (IST)Updated: Sun, 21 Oct 2018 11:18 PM (IST)
भोला प्रसाद सिंह: स्‍मृतियों में सदा जीवित रहेंगे सेवा व संघर्ष के ये सारथी
भोला प्रसाद सिंह: स्‍मृतियों में सदा जीवित रहेंगे सेवा व संघर्ष के ये सारथी

बेगूसराय [जेएनएन]। राजनीति में सेवा, संघर्ष और सरोकार के सामर्थ सारथी तथा बेगूसराय की राजनीति के अजेय योद्धा सांसद डॉ. भोला सिंह नहीं रहे। लंबी बीमारी के बाद शुक्रवार को दिल्ली के राम मनोहर लोहिया अस्पताल में उन्होंने अंतिम सांस ली। वे अपने पीछे भरा-पूरा परिवार छोड़ गए हैं। अपने राजनीतिक जीवन में करीब 50 वर्षों तक वे न सिर्फ बेगूसराय, बल्कि बिहार की राजनीति को भी झकझोरते रहे।

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लंबी राजनीतिक पारी खेलने वाले भोला बाबू आठ बार विधानसभा एवं दो बार लोकसभा सदस्य के रुप में भी निर्वाचित हुए। कांग्रेस के शासनकाल में वे दो बार बिहार के राज्यमंत्री रहे। वहीं राष्‍ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) के शासनकाल में भी मंत्री रहे। भोला प्रसाद सिंह कहा करते थे, 'मैं डमरुवादक आगों का शोला हूं, मैं सदा जीवित हूं, हां मैं ही भोला हूं।' अपने कार्यों के कारण वे स्‍मृतियों में सदा जिंदा रहेंगे। दिवंगत भोला सिंह का अंतिम संस्‍कार रविवार को बेगूसराय के सिमरिया जट पर राजकीय सम्‍मान के साथ किया गया।

आमजन को केन्द्र में रख की राजनीति
सांसद भोला बाबू की उपस्थिति राजनीति के संघर्ष की वह अनकही दास्तान कही जाती थी, जहां जन का संघर्ष खड़ा होता था और जन का सरोकार भी सहज ही प्रदर्शित हो जाता था। आम जन को केन्द्र में रखकर की गई इसी राजनीति ने भोला बाबू के 50 साल के राजनीतिक जीवन को महान आकृति प्रदान की। इसी कारण भोला सिंह जहां खड़े हुए, वही राजनीति का केंद्र बन गया। राजनीति के विरोधाभासों तथा आरोप-प्रत्यारोप के बीच भी एक कुशल राजनेता के रूप में उनकी अलग पहचान रही।

विषम परिस्थितियों में भी हार कर जीतने की थी क्षमता
विषम परिस्थितियों में भी हार कर जीतने की गजब जिजीविषा का परिचय उन्होंने अपने राजनीतिक जीवन में दिया। ओजस्वी व्यक्तित्व के धनी भोला सिंह बेगूसराय के अजातशत्रु थे। अपने हित-अनहित की परवाह किए बिना सत्य के साथ संघर्ष को अख्तियार कर कई मौकों पर उन्होंने अपने व पराया को भी चौंकाने का कार्य किया। शायद यही विशिष्ट पहचान उनकी खासियत रही।
अपने भाषणों में वे कहा करते थे, 'मैं डमरुवादक आगों का शोला हूं, मैं सदा जीवित हूं, हां मैं ही भोला हूं।' उनके निधन के बाद बेगूसराय की समृद्ध राजनीति में आयी रिक्तता को संजीदगी से महसूस किया जा सकता है।

राजनीतिक सफरनामा: तीन प्रमुख दलों का किया प्रतिनिधित्व
कॉलेज के लेक्चरर की नौकरी से राजनीति की यात्रा शुरू करने वाले भोला सिंह 1967 में पहली बार निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में विधानसभा चुनाव जीतने में कामयाब रहे। यह विधानसभा स्तर का उनका पहला चुनाव था और इसमें भाकपा का समर्थन उन्हें प्राप्त था। समें उन्होंने कांग्रेस के रामनारायण चौधरी को 29 हजार वोटों से पराजित किया था।
वर्ष 1969 में कम्युनिष्ट उम्मीदवार के रूप में वे कांग्रेस के सरयू प्रसाद सिंह से हार गए। लेकिन 1972 में वे कम्‍युनिष्‍ट पार्टी से चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचे।
भोला प्रसाद सिंह ने वर्ष 1976 में भारतीय कम्‍युनिष्‍ट पार्टी छोडकर कांग्रेस में शामिल हो गए। कांग्रेस की टिकट पर 1977, 1980 एवं 1985 में वे विधानसभा का चुनाव लगातार जीते। कांग्रेस शासनकाल में वर्ष 1984 में वे बिहार के गृह राज्यमंत्री तथा 1988 में शिक्षा राज्यमंत्री के पदों पर रहे।
1990 के विधानसभा चुनाव में उन्हें हार का सामना करना पड़ा। इस चुनाव में मार्क्‍सवादी कम्‍युनिष्‍ट पार्टी उम्मीदवार वासुदेव सिंह ने उन्हें हरा दिया। वर्ष 1995 में उन्‍हें फिर हार का सामना करना पड़ा, जिसके कारण 1996 में कांग्रेस छोड़ वे राष्‍टीय जनता दल (राजद) में शामिल हो गए।
वर्ष 1999 में वे राजद छोड़कर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) में शामिल हो गए। भाजपा से वे वर्ष 2000 और 2005 में विधायक चुने गए। वर्ष 2003 में वे विधानसभा उपाध्यक्ष तथा 2008 में नगर विकास मंत्री भी रहे।

संसदीय राजनीति
करीब 40 वर्षों तक विधानसभा की राजनीति में परचम लहराने वाले भोला बाबू को अब भाजपा ने संसदीय राजनीति में उतारा। संसदीय राजनीति में उन्‍होंने लगातार दो बार अपनी जीत दर्ज कराई। वर्ष 2009 में नवादा तथा 2014 में बेगूसराय संसदीय क्षेत्र से वे सांसद बने। बेगूसराय के सांसद रहते शुक्रवार को उनका निधन हो गया।
गांव में ही मिली थी प्रारंभिक शिक्षा
गढ़पुरा प्रखंड के दुनही गांव निवासी पिता रामप्रताप सिंह एवं माता टुनकी देवी के घर 3 जनवरी 1939 को उनका जन्म हुआ था। उनकी प्रारंभिक शिक्षा गांव में ही हुई थी। गढ़पुरा में मिड्ल स्कूल तक की पढ़ाई करने के बाद मंझौल स्थित जयमंगला उच्च विद्यालय से उन्होंने मैट्रिक की परीक्षा पास की। उसके बाद जीडी कॉलेज बेगूसराय से बीए तथा पटना विश्वविद्यालय से एमए की डिग्री हासिल की। एमए करने के बाद वर्ष 1964 में टीएनबी कॉलेज भागलपुर में अस्थाई तथा 1966 में जीडी कॉलेज बेगूसराय में स्थाई लेक्चरर बने। बाद में उन्होंने डॉक्टरेट की उपाधि भी हासिल की।
सिमरिया घाट पर अंतिम संस्‍कार
भोला बाबू का पार्थिव शरीर शनिवार की शाम उनके पैतृक आवास गढ़पुरा स्थित दुनही पहुंचा। रविवार को सिमरिया गंगा घाट पर राजकीय सम्‍मान के साथ उनका अंतिम संस्‍कार किया गया।


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