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तेजस्‍वी नेतृत्‍व चाहिए भाजपा को बिहार में, संजय जायसवाल व तारकिशोर नहीं डाल सके अपेक्षित प्रभाव

बिहार में भाजपा को सक्षम-सशक्त नेतृत्व की तलाश। पार्टी को चाहिए ओजस्वी और तेजस्वी नेतृत्व जो सर्वजन प्रिय हो और सदन से सड़क तक सरकार को घेर सके। प्रदेश अध्यक्ष का कार्यकाल अगले माह हो रहा पूरा। अपनी छाप छोड़ने में विफल रहे विधानमंडल के भाजपा नेता

By Vyas ChandraEdited By: Published: Fri, 12 Aug 2022 06:59 AM (IST)Updated: Fri, 12 Aug 2022 11:17 AM (IST)
तेजस्‍वी नेतृत्‍व चाहिए भाजपा को बिहार में, संजय जायसवाल व तारकिशोर नहीं डाल सके अपेक्षित प्रभाव
तारकिशोर प्रसाद, डा. संजय जायसवाल, डा. नवल किशोर यादव, डा. दिलीप जायसवाल। जागरण

रमण शुक्ला, पटना। देश के 18 राज्यों में शासन करने वाली भाजपा की सरकार (कहीं स्वतंत्र तो कही गठबंधन वाली) अब 17 राज्यों तक सिमट चुकी है। जदयू राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) से बाहर है। इस अलगाव के बाद बिहार में भाजपा सत्ता से अचानक विपक्ष की भूमिका में आ गई है। यह स्थिति 2024 की चुनावी स्थिति के अनुकूल नहीं। उसके अगले साल ही विधानसभा का चुनाव भी है। इन दोनों चुनावों को जीतने की इच्छा रखने वाली भाजपा अब समझ चुकी है कि बिहार दुर्जेय नहीं है। शर्त यह है कि प्रदेश में सक्षम-सशक्त नेतृत्व चाहिए। पार्टी में इसी मंशा के साथ अब ओजस्वी और तेजस्वी सर्वजन प्रिय नेता की तलाश शुरू हो गई है।

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जायसवाल और तारकिशोर नहीं छोड़ सके प्रभाव 

भाजपा को अब वैसा प्रदेश अध्यक्ष और नेता प्रतिपक्ष चाहिए, जो सड़क से लेकर सदन तक राज्य सरकार को घेर सके। प्रदेश अध्यक्ष डा. संजय जायसवाल का कार्यकाल अगले माह पूरा हो जाएगा। इस बीच जायसवाल और तारकिशोर के लिए बोचहां विधानसभा उपचुनाव और विधान परिषद चुनाव में सक्षम नेता सिद्ध होने का एक अवसर था, लेकिन पार्टी को बुरी तरह से मात मिली। उपमुख्यमंत्री रह चुके तारकिशोर प्रसाद अभी भाजपा विधानमंडल दल के नेता हैं, जो सदन में अपनी छाप छोड़ने में बिल्कुल ही सफल नहीं रहे। कमोबेश ऐसी ही स्थिति विधानपरिषद में उप नेता नवल किशोर यादव और उप सचेतक डा. दिलीप जायसवाल की रही।

नए-पुराने चेहरे में हो रही तलाश 

इस वजह से पार्टी अब नेता प्रतिपक्ष के रूप में तेजतर्रार चेहरा तलाश रही है। चेहरा भी ऐसा जो नीतीश और तेजस्वी के सामने मुखर होकर अपनी बात रख सके। बिहार भाजपा में इसको लेकर नामों पर मंथन शुरू हो गया है। नए-पुराने चेहरे टटोले जा रहे हैं, मगर प्राथमिकता नए चेहरे को दी जा सकती है। विधानसभा और विधानपरिषद दोनों सदन के लिए तीन-तीन नाम पर मंथन शुरू है। इन नामों पर अंतिम मुहर दिल्ली आलाकमान ही लगाएगा। बदली हुई परिस्थिति में भाजपा के सामने कई तरह की चुनौती है। उनमें सर्वाधिक महत्वपूर्ण जातीय समीकरण है। पार्टी के आधार मतदाता रहे सवर्णों को अपने पाले में बनाए रखने के साथ जनसंख्या में 30 प्रतिशत की हिस्सेदारी रखने वाले अति पिछड़ा वर्ग को भी साधे रखना होगा। तभी अपेक्षानुसार सीटों पर जीत की राह आसान होगी। 

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