Bihar: भूपेंद्र की रणनीति पर हावी तावड़े के समीकरण, पहले यादव वोट बैंक साध रही थी BJP; अब लव-कुश पर फोकस
जमीनी फीडबैक के आधार पर सांगठनिक फेरबदल और कुशवाहा जाति से सम्राट चौधरी को प्रदेश अध्यक्ष बनाना इसका संकेत है। जिस कोशिश में भूपेंद्र फेल साबित हुए वहीं तावड़े के फैसले प्रभावी साबित हो रहे हैं जिससे भाजपा में जोश बढ़ा है और राजद-जदयू से टक्कर लेने का हौसला भी।
रमण शुक्ला, पटना: बिहार में भाजपा अब अपना कलेवर बदल रही है। बतौर प्रदेश प्रभारी भूपेंद्र यादव के काल में जो लक्ष्य साधे गए थे, उसे गलत साबित करते हुए वर्तमान प्रभारी विनोद तावड़े की बिछाई चाल ज्यादा प्रभावी दिख रही है। भाजपा पहले जहां यादव वोट बैंक साधने की कोशिश कर रही थी। वहीं अब उसका फोकस गैर यादव पिछड़ी जातियों पर है।
जमीनी फीडबैक के आधार पर सांगठनिक फेरबदल और कुशवाहा जाति से सम्राट चौधरी को प्रदेश अध्यक्ष बनाना इसका संकेत है। जिस कोशिश में भूपेंद्र फेल साबित हुए, वहीं तावड़े के फैसले प्रभावी साबित हो रहे हैं, जिससे भाजपा में जोश बढ़ा है और राजद-जदयू से टक्कर लेने का हौसला भी।
नीतीश के साथ से कमजोर होने लगी थी भाजपा
अगर देखा जाए तो बिहार में पिछले प्रदेश प्रभारी भूपेंद्र यादव का कार्यकाल 2014 से 2022 तक यानी कि आठ साल कार्यकाल रहा। उस दौरान भाजपा का जोर राजद के कोर वोट यादवों में सेंध लगाना रहा। भूपेंद्र खुद को यादव नेता के तौर पर स्थापित भी करना चाहते थे। इसी योजना के तहत नित्यानंद राय को प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया, लेकिन यादव नहीं टूटे। बिहार में नीतीश का साथ भी भाजपा को कमजोर ही करता रहा। प्रदेश के नेता नीतीश का विरोध करते रहे, लेकिन शीर्ष नेतृत्व को उनकी बात का महत्व समझाने में भी भूपेंद्र यादव नाकाम रहे।
भाजपा और जदयू एक पाले में कभी भी नहीं आएंगे
ऐसे में राजद-जदयू गठबंधन के बाद जब भूपेंद्र यादव को हटा विनोद तावड़े को कमान सौंपी गई तो यह भ्रम फैला था कि नीतीश कभी भी भाजपा के साथ आ सकते हैं। यह अंदेशा निचले स्तर के कार्यकर्ताओं के मनोबल को डिगा रहा था। विनोद तावड़े ने स्पष्ट घोषणा कर दी कि नीतीश के साथ भाजपा कभी नहीं आएगी। तावड़े ने एक तरह से जदयू से पुनर्मिलन के रास्ते बंद कर दिए। जिले-जिले प्रवास कर जमीनी पड़ताल की और उसी अनुसार, जिलों में परिवर्तन किए जो कारगर साबित होने वाले हैं।
इसके बाद मात्र छह वर्ष भाजपा के साथ रहे कुशवाहा जाति के सम्राट चौधरी को प्रदेश अध्यक्ष बनवा कर यह संदेश दिया है कि पार्टी उनकी सबसे बड़ी हितचिंतक है। बिहार में कुर्मी-कुशवाहा की राजनीतिक संज्ञा लव-कुश है। यह जदयू का कोर वोट बैंक है और पिछले चुनावों में भाजपा को इसका पूरा साथ-समर्थन मिलता रहा है।
लव-कुश समीकरण पर पकड़ बनाने का अवसर
अभी तक लव-कुश समीकरण पर नीतीश कुमार की पकड़ बताई जाती रही है, लेकिन जदयू से आरसीपी सिंह और उपेंद्र कुशवाहा के अलगाव के बाद भाजपा के लिए इस वोट बैंक में सेंधमारी का बेहतर अवसर बन आया है। सम्राट के जरिये भाजपा इस अवसर को अपने पक्ष में करने की ठान चुकी है। जैसा कि पार्टी के रणनीतिकार बता रहे कि सम्राट की ताजपोशी ही यादववाद का आवरण उतार कर पारंपरिक मतदाताओं के साथ अति पिछड़ा वर्ग को साधने के लिए हुआ है। तावड़े ऐसे ही समीकरण साधने में लगे हैं।