सीएम नीतीश की योजना: अंडा उत्पादन में स्वावलंबी बनेगा बिहार
बिहार को अंडा उत्पादन में स्वावलंबी बनाने के लिए नीतीश सरकार ने कई योजनाएं बनाई हैं। इनसे रोजगार सृजन के अवसर सहित कई तरह के फायदे होंगे। डालते हैं नजर।
By Kajal KumariEdited By: Published: Fri, 02 Feb 2018 05:47 PM (IST)Updated: Fri, 02 Feb 2018 05:50 PM (IST)
style="text-align: justify;">पटना [जेएनएन]। बिहार में जरूरत के अंडे तमिलनाडु और आंध्रप्रदेश से मंगाए जाते हैं। लेकिन, बिहार में अब मुर्गीपालन एक उद्योग के रूप में स्थापित हो चुका है। ग्रामीण क्षेत्रों में यह व्यवसाय के रूप में अपनाया जा रहा है। मुर्गीपालन भूमिहीन, सीमान्त किसानों को तथा बेरोजगार नौजवानों को स्वरोजगार उपलब्ध कराने का एक प्रभावी साधन बनता जा रहा है। अंडा उत्पादन में बिहार को स्वावलम्बी बनाने के लिए नीतीश सरकार ने कई योजनाएं बनाई हैं। सरकार ने इनके क्रियान्वयन के लिए रूपरेखा भी तैयार की है, ताकि दूसरे राज्यों से अंडा मंगाने की जरूरत नहीं पड़े।
मुर्गीपालन काफी लाभकारी व्यवसाय है, जिसमें कम प्रारम्भिक लागत में अधिक उत्पादन, कम भूमि की आवश्यकता, व्यापार में लचीलापन, पैसे की शीघ्र वापसी, स्वरोजगार के अवसर जैसे कई फायदे इस उद्योग में लगे लोगों को मिल रहा है।
मुर्गीपालन व्यवसाय को बैकवर्ड एवं फॉरवर्ड लिंकेज के दृष्टिकोण से प्राइवेट सेक्टर इन्टीग्रेटर से जोड़ने की व्यवस्था की जाएगी। मुर्गीपालन व्यवसाय में लगे लोगों की कार्य कुशलता का विकास करने की भी योजना तीसरे कृषि रोड मैप में समाहित है, ताकि मुर्गी-मांस एवं अंडा का उत्पादन वैज्ञानिक रूप से किया जा सके।
बिहार में अंडा उत्पादन में वृद्धि के लिए बड़े स्तर पर लेयर फॉर्म स्थापित करने की पूरी कार्ययोजना के साथ ही तीसरे कृषि रोड मैप में अगले पाँच सालों के लिए भौतिक और वित्तीय लक्ष्य भी निर्धारित किया गया है। कुछ शाकाहारियों द्वारा अंडे को शाकाहार रूप में स्वीकार किये जाने से इसकी मांग में राष्ट्रीय स्तर पर वृद्धि हुई है।
बिहार में अंडा उत्पादन में वृद्धि हेतु समेकित मुर्गी विकास (रूरल बैकयार्ड पोल्ट्री डेवलपमेंट) योजना अंतर्गत अनुदान की व्यवस्था वर्ष 2014-15 से लागू है| गौरतलब है कि वित्तीय वर्ष 2006-07 में बिहार में अंडा उत्पादन 9400 लाख था, जो अब वर्तमान में बढ़कर 11116.674 लाख प्रतिवर्ष पर पहुंचा है।
एक मुर्गी सलाना करीब 300 अंडे देती है| मुर्गीपालन को पौष्टिक पालन के रूप में भी जाना जाता है, क्योंकि अंडा में विटामिन और मिनरल होते हैं। इसमें विटामिन बी12, कैल्शियम, ओमेगा 3 एवं प्रचुर मात्रा में प्रोटीन पाये जाते हैं।
बिहार में 0-5 वर्ष के आधे से अधिक बच्चे कुपोषित हैं। कुपोषण से निजात के लिए आंगनबाड़ी केंद्रों के माध्यम से बच्चों को सप्ताह में एक दिन अंडा देने का प्रावधान रखा गया है।
मुर्गीपालन काफी लाभकारी व्यवसाय है, जिसमें कम प्रारम्भिक लागत में अधिक उत्पादन, कम भूमि की आवश्यकता, व्यापार में लचीलापन, पैसे की शीघ्र वापसी, स्वरोजगार के अवसर जैसे कई फायदे इस उद्योग में लगे लोगों को मिल रहा है।
मुर्गीपालन व्यवसाय को बैकवर्ड एवं फॉरवर्ड लिंकेज के दृष्टिकोण से प्राइवेट सेक्टर इन्टीग्रेटर से जोड़ने की व्यवस्था की जाएगी। मुर्गीपालन व्यवसाय में लगे लोगों की कार्य कुशलता का विकास करने की भी योजना तीसरे कृषि रोड मैप में समाहित है, ताकि मुर्गी-मांस एवं अंडा का उत्पादन वैज्ञानिक रूप से किया जा सके।
बिहार में अंडा उत्पादन में वृद्धि के लिए बड़े स्तर पर लेयर फॉर्म स्थापित करने की पूरी कार्ययोजना के साथ ही तीसरे कृषि रोड मैप में अगले पाँच सालों के लिए भौतिक और वित्तीय लक्ष्य भी निर्धारित किया गया है। कुछ शाकाहारियों द्वारा अंडे को शाकाहार रूप में स्वीकार किये जाने से इसकी मांग में राष्ट्रीय स्तर पर वृद्धि हुई है।
बिहार में अंडा उत्पादन में वृद्धि हेतु समेकित मुर्गी विकास (रूरल बैकयार्ड पोल्ट्री डेवलपमेंट) योजना अंतर्गत अनुदान की व्यवस्था वर्ष 2014-15 से लागू है| गौरतलब है कि वित्तीय वर्ष 2006-07 में बिहार में अंडा उत्पादन 9400 लाख था, जो अब वर्तमान में बढ़कर 11116.674 लाख प्रतिवर्ष पर पहुंचा है।
एक मुर्गी सलाना करीब 300 अंडे देती है| मुर्गीपालन को पौष्टिक पालन के रूप में भी जाना जाता है, क्योंकि अंडा में विटामिन और मिनरल होते हैं। इसमें विटामिन बी12, कैल्शियम, ओमेगा 3 एवं प्रचुर मात्रा में प्रोटीन पाये जाते हैं।
बिहार में 0-5 वर्ष के आधे से अधिक बच्चे कुपोषित हैं। कुपोषण से निजात के लिए आंगनबाड़ी केंद्रों के माध्यम से बच्चों को सप्ताह में एक दिन अंडा देने का प्रावधान रखा गया है।
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