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बिहार संवादी: विमर्श के उजाले में अंतत: तलाश लिया गया गुम संवाद

दैनिक जागरण के साहित्‍य उत्‍सव 'बिहार संवादी' के दो दिन, 18 सत्र और 20 घंटे के विमर्श में बिहारी मूल के करीब 50 विचारक शामिल हुए।

By Amit AlokEdited By: Published: Sun, 22 Apr 2018 11:02 AM (IST)Updated: Mon, 23 Apr 2018 10:02 PM (IST)
बिहार संवादी: विमर्श के उजाले में अंतत: तलाश लिया गया गुम संवाद
बिहार संवादी: विमर्श के उजाले में अंतत: तलाश लिया गया गुम संवाद

पटना [सद्गुरु शरण]। यह दुर्लभ मंच था, हर नजरिए से। साहित्य, समाज, संस्कृति, कला, राजनीति, हिंदी, सिनेमा और पत्रकारिता के सितारों की असाधारण जुटान। वैचारिक अभिव्यक्ति के अवसर का अविश्वसनीय स्तर। मुद्दों पर वैचारिक मतभेद के बावजूद बिहार में अरसे से गुम संवाद को किसी भी कीमत पर तलाशने की एकजुट छटपटाहट। दो दिन और 18 सत्रों में करीब 20 घंटे विमर्श के बाद संवादहीनता के अंधियारे ने अंतत: हाथ खड़े कर दिए और गुम संवाद की तलाश पूरी हुई। 
नीतीश कुमार से लेकर पंकज त्रिपाठी तक। हृदय नारायण दीक्षित से लेकर नरेंद्र कोहली तक। प्रो.राम बचन राय से लेकर उदय शंकर तक। बिहार संवादी के मंच पर जुटे संवाद के ऐसे करीब 50 नायकों ने गहन विमर्श में डूबकर बिहार को उसकी संवाद परंपरा याद दिलाई।

बिहारियों के इस अपने साहित्य उत्सव में पहुंचे हर आम-ओ-खास ने इस पहल के लिए दैनिक जागरण की खूब सराहना की। किसी को याद नहीं कि इससे पहले बिहार में हिंदी और संवाद के लिए ऐसी पहल कब हुई थी। इस आयोजन के सारे वक्त बिहार मूल के थे।
एक अपवाद थे, उत्तर प्रदेश विधानसभा अध्यक्ष एवं प्रख्यात राष्ट्रवादी विचारक हृदय नारायण दीक्षित, जो बिहार संवादी के मेहमान बनकर इस विमर्श का हिस्सा बने। हर सत्र के अंत में पैनल के विचारकों के साथ हुए सवाल-जवाब से जाहिर हुआ कि समाज संवाद करना चाहता है, पर उसे इसका अवसर मिल ही नहीं रहा था। 


जागरण की मुहिम 'हिंदी हैं हम' के तहत आयोजित इस आयोजन की दुर्लभ उपलब्धि यह रही कि जागरण ने वक्ताओं को बेहिचक अपनी बात-राय रखने का मंच दिया। लंबे विमर्श के केंद्र में स्वाभाविक रूप से हिंदी और संवाद की चिंता रही यद्यपि वक्ताओं ने कई बार विषय और अवसर पीछे छोड़कर देश-प्रदेश के ज्वलंत मुद्दों पर भी अपनी राय रखी।

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मंच पर संवाद, अभिव्यक्ति और वैचारिक स्वायत्तता का स्तर कितना उच्च था, इसे इस बात से समझा जा सकता है कि विमर्श के क्रम में कुछ वक्ताओं ने दैनिक जागरण की रीति-नीति पर भी अपनी राय बेहिचक रखी। जागरण ने इसका खुले दिल से स्वागत किया और वक्ताओं के समक्ष अपना पक्ष रखकर उनका भ्रम दूर करने का प्रयास किया।

संवाद की सार्थकता और प्रासंगिकता पर विमर्श के बीच जागरण द्वारा हिंदी को मजबूती और सम्मान दिए जाने की मुहिम दोनों दिन चर्चा में रही। जागरण द्वारा हिंदी में शोध कार्य को प्रोत्साहित करने के लिए शुरू की गई ज्ञानवृत्ति योजना के तीन शोधार्थियों के नाम घोषित होने पर हिंदी प्रेमी मोहित हो गए।

देश में इस ढंग की यह पहली पहल है जिसमें जागरण तीन शोधार्थियोंको ज्वलंत विषयों पर हिंदी में शोध कार्य करने के लिए छह से नौ महीने तक 75 हजार रुपये प्रतिमाह देगा। इसी मंच से जागरण बेस्टसेलर की तिमाही सूची भी जारी की गई जिसके प्रति पुस्तक प्रेमियों में गजब का क्रेज दिखा।

संवादी में घुसकर हुड़दंग
खुद को मिथिला स्टूडेंट यूनियन का कार्यकर्ता बताने वाले करीब दो दर्जन लोगों ने अपरान्ह चार बजे तारामंडल प्रेक्षागृह में चल रहे बिहार संवादी में घुसकर व्यवधान पैदा किया। ये लोग पिछले दिनों दैनिक जागरण में प्रकाशित एक समाचार पर आपत्ति जता रहे थे जिसमें मैथिली भाषा को बोली लिखे जाने का भ्रम हुआ था। जागरण ने इसे लेकर स्थिति स्पष्ट कर दी थी कि मैथिली भाषा है, न कि बोली। हुड़दंग कर रहे लोगों ने अतिथियों और श्रोताओं के साथ अभद्रता और नारेबाजी की तथा मंच पर मौजूद पटना विवि में मैथिली भाषा विभाग के सेवानिवृत्त प्रोफेसर वीरेंद्र झा के ऊपर स्याही फेंकने की कोशिश की। पुलिस ने इन्हें बाहर निकाला और 15-20 मिनट व्यवधान के बाद संवादी पूर्ववत चालू हो गया।


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