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उड़ी अटैक : जब बिहार रेजिमेंट के सामने पाकिस्तानी जनरल ने टेके थे घुटने

उड़ी में पाकिस्तानी आतंकियों के हमले में बिहार रेजिमेंट के 15 जवान शहीद हो गए। इसी रेजिमेंट ने 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान पाक जनरल को आत्मसमर्पण के लिए मजबूर किया था।

By Amit AlokEdited By: Published: Wed, 21 Sep 2016 12:00 PM (IST)Updated: Wed, 21 Sep 2016 11:05 PM (IST)
उड़ी अटैक : जब बिहार रेजिमेंट के सामने पाकिस्तानी जनरल ने टेके थे घुटने
उड़ी अटैक : जब बिहार रेजिमेंट के सामने पाकिस्तानी जनरल ने टेके थे घुटने

पटना [जितेन्द्र कुमार]। बिहार रेजिमेंट की जिस छठी बटालियन पर जम्मू-कश्मीर के उड़ी में आतंकियों ने हमला किया, उसके वीर सैनिकों ने बांग्लादेश की मुक्ति को लड़ाई में पाकिस्तानी सेना के छक्के छुड़ा दिए थे। ढाका में इस जांबाज बटालियन के आगे 16 दिसंबर 1971 को पाक फौज के जनरल को आत्मसमर्पण करना पड़ा था।

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बटालियन ने न केवल ब्रह्मपुत्र नदी को पार कर हलुआघाट, सर्चापुर और मैमनसिंह के मोर्चे को फतह किया, बल्कि ढाका तक अपनी विजय पताका फहराई। उड़ी में वीर बिहार रेजिमेंट पर यह हमला तब हुआ है जब यह रेजिमेंट अपने गौरवशाली 75 साल पूरे होने पर नवंबर में हीरक जयंती के आयोजन की तैयारी में जुटी है।
ऐसे किया मोर्चा फतह
45 साल पूर्व सन् 1971 के सितंबर में बिहार रेजिमेंट की छठी बटालियन को बांग्लादेश मुक्ति अभियान का आदेश मिला था। बटालियन तामेंगलौंग में तैनात थी, जहां से वह बंगलादेश के लिए कूच कर गई। कुछ समय भूटान की सीमा के निकट दरंगा में दुश्मनों की गतिविधियों का आकलन कर तूरा जिले के जोशीपारा पहुंची।
बटालियन की चार कंपनियां तूरा से पूर्वी पाकिस्तान में कमालपुर व हलुआघाट से सर्चापुर होते ब्रह्मपुत्र नदी को पार कर मैमनसिंह मोर्चा फतह करने पहुंची। एक टुकड़ी ने हलुआ घाट और दूसरी टुकड़ी ने सर्चापुर पर हमला बोल दिया।
यहां कब्जा जमाए पाकिस्तानी फौज एमएमजी और मोर्टार से गोलीबारी शुरू कर चुकी थी। महज 500 गज की दूरी से युद्ध में वीर बिहारी सैनिकों ने जवाबी हमले में पाक के 27 सैनिकों को मार गिराया। 27 पाक फौजी जख्मी होकर गिरे थे।
इस कार्रवाई में छठी बटालियन के छह सैनिक वीरगति को प्राप्त हुए और चार जख्मी हो गए थे। छठी बटालियन के सिपाही प्रभुदान हेम्ब्रम ने पाक की मशीनगन को बर्बाद कर दिया था। उन्हें वीरता के लिए सेना मेडल से सम्मानित किया गया।
जब पाक सेना के पांव उखडऩे लगे तो पाकिस्तानी सिविल बस से सैनिक लाए गए थे। पूरे दिन दोनों ओर से गोलियां चलती रहीं, जिसमें पाक के सात सैनिक हताहत हो गए। फिर पीछे भागे।
अगले ही दिन बिहार रेजिमेंट की छठी बटालियन के सी कंपनी ने चरबंगअली और हलुआघाट के बीच पुल पर कब्जा जमा लिया। इसी बीच वायु सेना के विमानों ने पाकिस्तानी फौज पर हमला कर दिया। रात में वीर बिहार रेजिमेंट ने हलुआघाट पर कब्जा जमा लिया।
टारगेट सर्चापुर
पाकिस्तानी सैनिक सर्चापुर के बखाई पश्चिमपारा और मध्यनगर में मोर्चा लिये बैठे थे। बिहार रेजिमेंट की छठी बटालियन की एक कंपनी ने मेजर संधू के नेतृत्व में बखाई पश्चिमपारा और दूसरी कंपनी ने मध्य नगर पर आक्रमण कर दिया। पाक फौज के हथियार धरे रह गये और वीर बिहारियों ने अदम्य साहस का परिचय देते हुये 60 दुश्मन सैनिकों को मार गिराया। हालांकि, इस युद्ध में एक भारतीय सैनिक शहीद हो गया। नायक सुबेदार गोपा बंधु रावत को दुश्मनों ने पकड़कर मार डाला था।
मैमनसिंह पर विजय पताका
नौ दिसंबर 1971 को बीएसफ और बिहार रेजिमेंट की छठी बटालियन नागला पर कब्जा कर चुकी थी, जहां पाक की दो सैन्य टुकडिय़ों का कब्जा था। 10 दिसंबर 71 की सुबह रेजिमेंट ने काकनी पर कब्जा करते हुए ब्रह्मपुत्र नदी को पार किया। दोपहर में ताराकंडा में पाकिस्तानियों से मुठभेड़ में तीन भारतीय सैनिक वीरगति को प्राप्त हो गये। लेकिन, भारतीय सैनिकों का हौसला कम नहीं हुआ।
बिहार रेजिमेंट ने 11 दिसंबर की सुबह मैमनसिंह पर कब्जा कर लिया। पाक फौज ने लैंडमाइंस बिछा दिया था जिसे हवलदार विसनदेव सिंह ने नाकाम किया। इसके लिए उन्हें मैंशन ऑफ डिस्पैच सम्मान दिया गया।
पाक जनरल का आत्मसमर्पण
12 दिसंबर को बिहार रेजिमेंट की छठी बटालियन माधोपुर पहुंची। 14 दिसंबर को कालियाकैर पर कब्जा जमाया और 15 दिसंबर को ढाका के लिए कूच कर गई। शाम तक पूरी बटालियन ढाका से 18 मील दूरी पर पहुंच चुकी थी। बिहार रेजिमेंट के ले. कर्नल लौलर, मेजर जनरल नागरा और ब्रिगेडियर संत सिंह ने ढाका को घेर लिया था। 16 दिसंबर को पाक फौज के जनरल जमशेद ने आत्मसमर्पण कर दिया।
छठी बटालियन के वीर बिहारी
बंगलादेश की स्वतंत्रता के लिए बिहार रेजिमेंट के छठी बटालियन के जिन सैनिकों ने वीरगति को प्राप्त किया उसमें नायक सूबेदार गोपा बंधु रावत, लांस नायक कामेश्वर राम, सिपाही रमाकांत, दंबरू सेठी, भास्कर नायक, विश्वनाथ सिंह, जस्टिन किस्कू, शर्मा नंद चौधरी, प्रभुदान हेम्ब्रम, दिम्बा, चामू उरांव, जोसफ तिग्गा, वाथू प्रसाद और सलूका बनरा शामिल थे।
ले. कर्नल पीआइ लौलर को वीर चक्र, सिपाही प्रभुदान हेम्ब्रम और सलूका बनरा को मरणोपरांत सेना मेडल से सम्मानित किया गया था। मेजर हरकीरथ सिंह और हवलदार विसनदेव सिंह को मेंशन ऑफ डिस्पैच सम्मान मिला।

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