यह निर्णय केंद्र सरकार के उस व्यापक आदेश का हिस्सा है, जिसमें राज्यों के राज भवन और केंद्र शासित प्रदेशों के राज निवास के नाम क्रमशः ‘लोक भवन’ और ‘लोक निवास’ करने का निर्देश दिया गया था।
केंद्रीय गृह मंत्रालय ने 25 नवंबर 2025 को यह आदेश जारी किया था। इस कदम के पीछे सरकार की मंशा शासन व्यवस्था को और अधिक जनोन्मुखी तथा लोकतांत्रिक मूल्यों के अनुरूप बनाना है।
राज भवन और राज निवास जैसे नाम ब्रिटिश शासनकाल की उस परंपरा से जुड़े हुए थे, जब इन भवनों का उपयोग औपनिवेशिक प्रशासन के शीर्ष पदाधिकारियों के आवास के रूप में किया जाता था।
वर्ष 2014 में नरेंद्र मोदी सरकार के गठन के बाद से केंद्र सरकार लगातार उन संस्थानों, मार्गों और भवनों के नामों में बदलाव कर रही है जो औपनिवेशिक प्रतीकों को दर्शाते हैं।
‘बिहार लोक भवन’ नामकरण को भी इसी अभियान की एक अहम कड़ी माना जा रहा है।
अधिसूचना लागू होते ही बदलाव की प्रक्रिया भी शुरू हो गई है। राज भवन के नेम प्लेट, साइन बोर्ड और अन्य आधिकारिक बोर्डों को बदलकर ‘लोक भवन’ लिखा जा रहा है।
राज भवन की आधिकारिक वेबसाइट पर भी नाम अपडेट कर दिया गया है और अब यह ‘बिहार लोक भवन’ के रूप में दिखाई देता है।
इतिहास के पन्नों में झांकें तो बिहार के राज भवन की आधारशिला तत्कालीन वायसराय लॉर्ड हार्डिंग ने 1913 में रखी थी।
तीन साल बाद, 3 फरवरी 1916 को उन्होंने इसका उद्घाटन भी किया था। उसी दिन पटना हाई कोर्ट और मुख्य सचिवालय भवन का भी उद्घाटन हुआ था।
न्यूजीलैंड के जे.के. मुनीफ इन भवनों के आर्किटेक्ट थे। उस समय बिहार और ओडिशा एकीकृत प्रदेश थे, और इससे चार साल पहले 1912 में बंगाल से अलग होकर बिहार अलग राज्य बना था।
नाम बदलने के साथ ही बिहार लोक भवन अब अपने औपनिवेशिक इतिहास से आगे बढ़ते हुए नए लोकतांत्रिक पहचान के साथ सामने आ रहा है।
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