Move to Jagran APP

Bihar: विवि में बड़ा घोटाला रोकने पर प्रोफेसर को पीटा, कानून के साथ शिक्षा व्‍यवस्‍था पर भी खड़े हुए सवाल

डॉ. अमरेन्द्र नारायण ने देश-विदेश में अपना बेहतर कॅरियर बिहार की सेवा के लिए छोड़ा। लेकिन यहां आरा के वीर कुंवर सिंह विश्‍वविद्यालय में धांधली रोकने पर उन्‍हें पीट दिया गया।

By Amit AlokEdited By: Published: Mon, 24 Aug 2020 06:16 PM (IST)Updated: Tue, 25 Aug 2020 10:46 PM (IST)
Bihar: विवि में बड़ा घोटाला रोकने पर प्रोफेसर को पीटा, कानून के साथ शिक्षा व्‍यवस्‍था पर भी खड़े हुए सवाल
Bihar: विवि में बड़ा घोटाला रोकने पर प्रोफेसर को पीटा, कानून के साथ शिक्षा व्‍यवस्‍था पर भी खड़े हुए सवाल

भोजपुर, जेएनएन। अमेरिका के वर्जिनिया में न्यूक्लियर साइंस में शोध करने के बाद डॉ. अमरेन्द्र नारारण को आइआइटी, मुंबई से लेकर रांची विश्‍वविद्यालय तक कई जगह बड़े अवसर मिले, लेकिन उन्‍होंने अपनी जन्‍मभूमि बिहार की सेवा करने की ठानी। वे आरा स्थित वीर कुंवर सिंह विश्‍वविद्यालय में बतौर असिस्टेंट प्रोफेसर बड़े सपने लेकर पहुंचे। पर, विश्‍वविद्यालय के परीक्षा विभाग में धांधली व प्लेगरिज्म (किसी दूसरे की भाषा, विचार, उपाय, शैली आदि की नकल करते हुए अपनी मौलिक कृति बताना) को रोका तो एक पूर्व छात्र ने उनकी पिटाई कर दी। इतना ही नहीं, उसने एक अनजान लड़की से छेड़खानी का आरोप भी मढ़ दिया। विश्‍वविद्यालय प्रशासन ने भी उन्‍हें अकेला छोड़ दिया। प्रो. अमरेंद्र नारायण ने खुद ही अपने स्‍तर पर हमलावर के खिलाफ एफआइआर दर्ज कराई। इस घटना ने कानून-व्‍यवस्‍था के साथ-साथ शिक्षा व्‍यवस्‍था पर भी कई सवाल खड़े कर दिए हैं।

loksabha election banner

विश्‍वविद्यालय परिसर किया दुर्व्‍यवहार, जड़ दिया थप्‍पड़

विश्‍वविद्यालय परिसर के विज्ञान भवन में डाॅ. अमरेन्द्र  नारायण पर गत 13 अगस्त को अपराह्न करीब साढ़े तीन बजे एक पूर्व छात्र जीतेन्द्र पांडेय ने उस समय हमला किया, जब वे विज्ञान भवन से प्रशासनिक भवन जा रहे थे। डॉ. नारायण ने बताया कि गाली-गलौज व धक्‍का-मुक्‍की करते हुए उन्‍हें जोरदार थप्पड़ मारा गया, जिससे उनका चश्मा टूट गया।

मामला रफा-दफा करने को लेकर बनाने लगे दबाव

डाॅ. नारायण के अनुसार उन्‍होंने घटना की जानकारी उसी समय कुलपति प्रो. देवी प्रसाद तिवारी को दी। कुलपति ने अलगे दिन पुलिस में मामला दर्ज करने का निर्देश दिया, लेकिन एफआइआर दर्ज करने में पांच दिनों का समय गुजर गया। सूत्रों की मानें तो डॉ. अमरेन्द्र नारायण पर कुछ अधिकारी मामला रफा-दफा करने व एफआइआर दर्ज नहीं कराने के लिए दबाव बनाने लगे और इसी में दिन गुजरते गए। इस बीच हमलावार ने 14 अगस्त को डॉ. नारायण पर एक अनजान लड़की से छेड़छाड़ करने का आरोप लगाते हुए एफआइआर दर्ज कर दिया।

विवि ने नहीं सुनी तो खुद दर्ज कराई एफआइआर

13 अगस्त की घटना के चार दिन बाद तक विश्‍वविद्यालय प्रशासन किसने दबाव में शिक्षक पर हमला करने वाले पूर्व छात्र के खिलाफ एफआइआर करने को लेकर ऊहापोह में रहा, यह जांच का विषय है। इस बीच विश्‍वविद्यालय के स्नातकोत्तर शिक्षक संघ ने 19 अगस्त को बैठक की। बैठक में डाॅ. अमरेन्द्र नारायण पर हमला करने वाले पर कार्रवाई करने, उसकी डिग्री रद करने तथा परिसर में आरोपित के प्रवेश पर निषेध लगाने आदि की मांगें की गईं। आरोप है कि इसके बाद भी जब विश्‍वविद्यालय प्रशासन ने थाने में एफआइआर दर्ज कराने की पहल नहीं की, तब डॉ. अमरेन्द्र नारायण ने खुद ही हमलावार पूर्व छात्र के विरुद्ध एफआइआर दर्ज करा दी। हालांकि, हालांकि विश्‍वविद्यालय के कुलानुशासक डॉ. शिवपरसन सिंह ने बताया कि 17 अगस्त की शाम में हमलावार के विरुद्ध एफआइआर दर्ज करा दी गई थी।

शोध के नाम पर चल रहा था खेल, लगा दी थी रोक

बताया जाता है कि डॉ. अमरेन्‍द्र नारायण से विश्‍वविद्यालय के अंदर के कई पुराने लोग नाराज चल रहे थे। विश्‍वविद्यालय के कई सीनियर शिक्षक हर साल शोध कराते हैं। शोधपत्र पत्र तैयार करने में प्लेगरिज्‍म होता रहा था। इसके अलावा दस्तावेज गायब करने तथा सुपरसीड करने आदि के खेल भी चल रहे थे। डॉ. नारायण ने बतौर कंप्यूटर निदेशक, इनपर नकेल कस दिया। इस कारण कई शोध अटक गए। हालांकि, डॉ. नारायण ने सभी को शोध में तकनीकी खामियों की पहचान करके सुधारने का अवसर दिया।

परीक्षा विभाग में रोक दी धन की बंदरबांट

दूसरी ओर विश्‍वविद्यालय में परीक्षा विभाग के रिजल्ट को तैयार के लिए निजी कंपनी को ठेका दिया जाता था। बताया जाता है कि इसमें लाखों की कमीशन उगाही जाती थी। डॉ. अमरेन्द्र नारायण ने मामूली खर्च पर रिजल्ट निकाल दिया। इसके लिए उन्होंने अवकाश के दिन भी कार्यालय में बैठकर काम किया। विश्‍वविद्यालय ने पहली बार रिजल्ट तैयार किया, जिसकी त्रुटियों का निष्‍पादन महज 24 घंटे में किया गया।

इमानदारी से काम करने पर कई लोग हो गए विरोधी

डॉ. अमरेन्‍द्र नारायण ने दिल्ली विश्वविद्यालय के करोड़ीमल कॉलेज से विज्ञान में स्नातक करने के बाद आइआइटी, कानपुर से फिजिक्स में स्नातकोत्तर की डिग्री हासिल की। फिर, अमेरिका के वर्जिनिया विश्‍वविद्यालय से न्यूक्लियर साइंस में शोध किया। इसके बाद आइआइटी, मुंबई से लेकर रांची विश्‍वविद्यालय तक कई जगह रहे, लेकिन बिहार की सेवा करने की ललक उन्‍हें आरा के वीर कुंवर सिंह विश्वविद्यालय खींच ले गई। उनकी प्रतिभा से प्रभावित कुलपति प्रो. देवी तिवारी ने उंन्हें प्लेगरिज्म का प्रभारी अधिकारी बनाया। वर्षों से मृत पड़े कंम्प्यूटर सेंटर को एक्टिव करने के लिए उसका निदेशक भी बनाया। लेकिन प्रावधानों के अनुसार इमानदारी से काम करने के कारण विश्वविद्यालय में कई लोग उनके विरोधी भी हो गए।

उतर गईं विश्‍वविद्यालय में अनियतितता की परतें

बहरहाल, घटना को लेकर कई सवाल उठ रहे हैं। इसने विश्‍वविद्यालय में व्‍याप्‍त अनियतितता की कई परतें उतार दी हैं। यह कानून-व्‍यवस्‍था के साथ-साथ शिक्षा व्‍यवस्‍था से जुड़ा मामला भी दिख रहा है। इस बाबत शिक्षा मंत्री कृष्णनंदन वर्मा ने कहा कि मामला अभी तक उनके संज्ञान में नहीं आया है। इस संबंध में पता कर कानून-सम्‍मत कार्रवाई की जाएगी।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.