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बिहार चुनाव में पीछे छूटा परिवारवाद

इस बार के विधानसभा चुनावों के परिणाम कई मायनों में हैरान करने वाले हैं। इस बार लोगों ने नेताओं के बेटे बेटियों को राजनीति की मुख्यधारा में शामिल करने की कोशिशों को बहुत ज्यादा तरजीह नहीं दी है। अपवादों को छोड़ कर अधिकांश को मुंह की खानी पड़ी है।

By Kajal KumariEdited By: Published: Mon, 09 Nov 2015 04:05 PM (IST)Updated: Mon, 09 Nov 2015 04:16 PM (IST)
बिहार चुनाव में पीछे छूटा परिवारवाद

पटना [सुविज्ञ दुबे]। इस बार के विधानसभा चुनावों के परिणाम कई मायनों में हैरान करने वाले हैं। इस बार लोगों ने नेताओं के बेटे बेटियों को राजनीति की मुख्यधारा में शामिल करने की कोशिशों को बहुत ज्यादा तरजीह नहीं दी है। अपवादों को छोड़ कर अधिकांश को मुंह की खानी पड़ी है।

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राजनीति में परिवार को आगे बढ़ाने की कोशिशों को लोगों का समर्थन मिलता रहा है। लेकिन इस बार स्थिति थोड़ी बदली दिखाई दी। चुनाव मैदान में दांव आजमा रहे तमाम नेता पुत्रों को लोगों ने नकार दिया।

जदयू सरकार में कृषि मंत्री रहे और बाद में हम में शामिल हुए नरेंद्र सिंह के दोनों बेटे इस बार चुनावों में किस्मत आजमा रहे थे। चकाई से सुमित कुमार और जमुई से अजय प्रताप सिंह। दोनों को ही जनता ने खारिज कर दिया।

हम के वरिष्ठ नेता व दिग्गज नेता जगदीश शर्मा के बेटे राहुल शर्मा भी घोसी विधानसभा सीट से चुनाव हार गए। यह जगदीश शर्मा की परंपरागत सीट रही है। उन्हें जेडीयू के कृष्णानंदन प्रसाद वर्मा ने हरा दिया।

इसी तरह भाजपा के वरिष्ठ नेता व बक्सर सांसद अश्विनी कुमार चौबे के एमबीए पुत्र अर्जित शाश्वत भागलपुर से चुनाव मैदान में थे। भागलपुर सीट पर अश्विनी कुमार चौबे का लंबे समय से कब्जा रहा था।

उन्होने यहां का कई टर्म प्रतिनिधित्व किया। तमाम अंदरूनी विरोधों के बीच पार्टी ने उन्हें पिता की सीट का उत्तराधिकार सौंपा था। लेकिन शाश्वत को मतदाताओं ने स्वीकार नहीं किया। उन्हें कांग्रेस के अजीत शर्मा ने शिकस्त दी।

इस बार दरभंगा जिले के केवटी की तस्वीर बदल गई। पूर्व केन्द्रीय मंत्री हुकुमदेव नारायण यादव के पुत्र अशोक यादव को राजद के पूर्व केन्द्रीय मंत्री अशरफ अली फातमी के पुत्र फैयाज फातमी ने शिकस्त दी।

भाजपा सांसद डा. सीपी ठाकुर के बेटे विवेक ठाकुर का नाम भी इस श्रृंखला में लिया जा सकता है। वे बक्सर के ब्रह्मपुर विधानसभा सीट से मैदान में थे। इस सीट पर भाजपा के संस्थापकों में से एक व बिहार के दिग्गज नेता कैलाशपति मिश्र की पुत्रवधू व सिटिंग विधायक दिलमणि देवी का दावा था। टिकट कटने से नाराज दिलमणि देवी ने भाजपा से रिश्ता तोड़ जदयू की सदस्यता ले ली थी। वे चुनाव में नहीं उतरीं। इस सीट पर राजद के शंभू नाथ यादव ने जीत दर्ज करायी।

पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी के बेटे संतोष के मामले में भी यही बात सही रही। मांझी के बेटे संतोष सुमन भी इस बार कुटुंबा से चुनाव मैदान में थे। लेकिन उन्हें भी मुंह की खानी पड़ी।

इस सीट से कांग्रेस के राजेश कुमार विजयी रहे हैं। राजग गठबंधन के दूसरे सबसे बड़े घटक लोक जनशक्ति पार्टी सुप्रीमो रामविलास पासवान के भाई पशुपति नाथ पारस के बेटे प्रिंस राज की किस्मत भी इन चुनावों में दांव पर थी। समस्तीपुर के कल्याणपुर से उम्मीदवार राज को मतदाताओं ने नकार दिया। उन्हें जेडीयू के महेश्वर हजारी ने पराजित किया।

इसी तरह ललित नारायण मिश्र के पुत्र विजय कुमार मिश्र के बेटे ऋषि मिश्रा की किस्मत ने भी साथ नहीं दिया। वे जाले से चुनाव हार गए। उन्हें भाजपा के जीवेश कुमार ने शिकस्त दी।

पिछले साल इसी सीट पर हुए उपचुनाव में उन्होने जीत हासिल की थी। कई नेतापुत्र इस पूरे मामले के अपवाद भी रहे हैं। उसमें लालू प्रसाद के दोनों बेटों तेज प्रताप और तेजस्वी का नाम शामिल किया जा सकता है।


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