Bihar News: बिहार में बीजेपी और जदयू के बीच खुलेगा एक और मोर्चा, नए मंत्रिमंडल के गठन के बाद दिल्ली पर भी नजर
Bihar Politics बिहार में महागठबंधन की सरकार बनने के बाद नए मंत्रिमंडल के गठन की कवायद तेज हो गई है। 16 अगस्त को विस्तार को संभावना जताई जा रही है। लेकिन नए मंत्रिमंडल के साथ ही बीजेपी और जदयू के बीच एक और मोर्चा खुलेगा।
राज्य ब्यूरो, पटना। नए मंत्रिमंडल के गठन के साथ ही भाजपा और जदयू के बीच एक और मोर्चा खुलने जा रहा है। यह राज्यसभा के उप सभापति और बिहार विधान परिषद के कार्यकारी सभापति के पद के नाम पर खुलेगा। उप सभापति के पद पर जदयू के हरिवंश हैं। इधर परिषद के कार्यकारी सभापति का पद भाजपा के अवधेश नारायण सिंह के पास है। दोनों को जदयू और भाजपा ने अब तक पद छोड़ने के लिए नहीं कहा है। समानता यह है कि हरिवंश जहां भाजपा की पसंद हैं, दूसरी तरफ अवधेश नारायण सिंह को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पसंद करते हैं। इसका मतलब यह कि भाजपा अपनी तरफ से हरिवंश को पद छोड़ने के लिए नहीं कहने जा रही है। वैसे, उप सभापति के करीबी सूत्रों का दावा है कि वह पद छोड़ने के मूड में नहीं हैं। यह भी कि राज्य में हुए ताजा राजनीतिक परिवर्तन से भी वे खुश नहीं हैं। हालांकि जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह ने कहा था कि फोन पर बातचीत के दौरान हरिवंश ने नेतृत्व के फैसले के साथ रहने की सूचना दी है।
इधर परिषद के कार्यकारी सभापति अवधेश नारायण सिंह राजनीतिक कारणों से पद पर बने रहने को लेकर अधिक इच्छुक नहीं हैं। वह गया स्नातक क्षेत्र से निर्वाचित हैं। अगले साल मई में इन्हें चुनाव में जाना है। नेतृत्व की इच्छा के विपरीत अगर पद पर बने रहते हैं तो चुनाव के समय उन्हें परेशानी हो सकती है। इसके कारण वह किसी विवाद से बचना चाहते हैं। 75 सदस्यीय विधान परिषद में भाजपा के सदस्यों की संख्या 23 है। एक सदस्य राष्ट्रीय लोजपा के हैं। यह संख्या बल भाजपा को सभापति पद के चुनाव में खड़ा होने से रोकता है। दूसरा पक्ष यह है कि अगर राजद विधानसभा का अध्यक्ष पद लेता है तो परिषद में वह अपना सभापति चाहेगा। यह क्रम उलट भी सकता है। यानी जदयू अगर विस अध्यक्ष का पद लेता है तो परिषद के सभापति का पद राजद के खाता में जा सकता है।
राज्यसभा में क्या होगा
स्ंविधानिक पद पर बैठे हरिवंश की ओेर से पूरे प्रकरण पर कोई आधिकारिक टिप्पणी नहीं आई है। वह अपने पद से स्वतः इस्तीफा देते हैं तो आसानी से विवाद का निदान हो सकता है। ऐसा नहीं होता है तो उन्हें हटाने के लिए अविश्वास प्रस्ताव का सहारा लिया जा सकता है। अगर जदयू दल से उनके निलंबन की अनुशंसा करता है, उस हालत में भी पद से हटाने के लिए अविश्वास प्रस्ताव की जरूरत पड़ेगी। 245 सदस्यीय राज्यसभा में भाजपा सदस्यों की संख्या 91 है। जदयू के एनडीए से अलग होने के बाद भाजपा इस हालत में नहीं है कि अपने दम पर हरिवंश की जीत सुनिश्चित कर सके।