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Bihar Politics: तेजस्वी यादव ने पिता व राजद प्रमुख लालू यादव के साये से ही नहीं, रीतियों से भी बनाई दूरी

Bihar Politics विधान सभा चुनाव में हार के बाद राजद में भी बेचैनी है। तेजस्‍वी राजद को फिल्टर करने में जुटे हैं। बागियों-भितरघातियों को निशाने पर ले रहे हैं। उन्‍होंने जता दिया है कि राजद अब बदले जमाने की पार्टी है। जानिए कैसे अलग हैं तेजस्‍वी पिता लालू से।

By Sumita JaiswalEdited By: Published: Fri, 20 Nov 2020 10:56 AM (IST)Updated: Sat, 21 Nov 2020 09:48 PM (IST)
Bihar Politics: तेजस्वी यादव ने पिता व राजद प्रमुख लालू यादव के साये से ही नहीं, रीतियों से भी बनाई दूरी
राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव, पत्‍नी राबड़ी देवी और छोटे पुत्र तेजस्‍वी यादव की तस्‍वीर ।

पटना, अरविंद शर्मा । Bihar Politics: बिहार में सत्ता से दूर रह जाने का असर सिर्फ कांग्रेस पर ही नहीं पड़ा है, बल्कि महागठबंधन के अगुआ राजद में भी हलचल है। सीतामढ़ी के पूर्व सांसद सीताराम यादव समेत कई बड़े नेताओं को छह वर्ष के लिए पार्टी से निकालकर तेजस्वी यादव ने संकेत दे दिया है कि राजद अब बदले जमाने की पार्टी है, जिसमें बागियों और भितरघातियों के लिए कोई जगह नहीं है। राजद में पहली बार चुनाव में प्रत्याशियों की हार के लिए जिम्मेदारी तय की जा रही है और आरोप सत्यापित हो जाने पर कार्रवाई भी हो रही है।

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अनुशासन के नाम पर राजद में नया चलन

लालू प्रसाद के साथ राजनीति करने वाले नेताओं को अच्छी तरह याद है कि तब कहीं किसी प्रत्याशी को हराने के लिए कोई काम करता था तो चुनाव बाद आलाकमान द्वारा बुलाकर उसे समझा-बुझा दिया जाता था। राजद प्रमुख अपने अंदाज में डांट देते थे और फिर वह उसी तरह राजद का हो जाता था, जैसे चुनाव के पहले होता था। इसके लिए उदाहरण दिया जाता है कि पूर्व सांसद राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव के तीखे बयानों पर भी राजद ने कभी कार्रवाई नहीं की, जबकि 2014 में राजद के टिकट पर सांसद बनने के साथ ही पप्पू यादव ने लालू की सियासी विरासत पर अधिकार जताना शुरू कर दिया था। आगे बढ़कर तेजस्वी का विरोध करने लगे थे। फिर भी लालू ने उन्हें राजद से निकालना जरूरी नहीं समझा, मगर तेजस्वी यादव के कमान संभालने के बाद से ही पुरानी परिपाटी खत्म हो गई। अनुशासन के नाम पर नई चलन शुरू हो गई।

कई विधायकों को दिखाया बाहर का रास्‍ता

इसके संकेत तो चुनाव के पहले ही दे दिए गए थे, जब पार्टी लाइन से अलग चल रहे कई विधायकों को बाहर का रास्ता दिखा दिया गया था। जो छोड़कर चले गए थे, उनकी तो कोई बात नहीं, परंतु जो पार्टी में रहकर भी विरोध का झंडा बुलंद कर रहे थे, उन्हें कार्रवाई के दायरे में लाया गया। तत्कालीन विधायक महेश्वर यादव, प्रेमा चौधरी, अशोक सिंह, संजय सिंह और फराज फातमी को निष्कासित कर दिया गया।

कईयों पर लटक रही निष्‍कासन की तलवार

लालू प्रसाद की गैरमौजूदगी में भी हुए चुनाव में सबसे बड़ी पार्टी के ताज को बरकरार रखने वाले तेजस्वी अब राजद को विचारधारा के स्तर पर भी समृद्ध करना चाहते हैैं। पुरानी लाइन को पीछे छोड़कर नए जमाने के अनुरूप बनाना है और यह तभी संभव है जब छोटी-छोटी कमियों को दूर कर लिया जाए। इसी मकसद से चुनाव के पहले उन्होंने रामचंद्र पूर्वे के बदले जगदानंद सिंह के हाथ में प्रदेश राजद की कमान सौंपी थी। इसी सोच के साथ छोटे-बड़े अबतक करीब दो दर्जन नेताओं को बाहर का रास्ता दिखा दिया गया है और करीब इतने ही लोगों पर निष्कासन की तलवार लटक रही है।

तब क्या था : लालू प्रसाद के जमाने में बड़े से बड़े अपराध के लिए भी कोई सजा नहीं थी। लालू परिवार और पार्टी के खिलाफ बयान देने पर भी आंख मूंद ली जाती थी। यहां तक कि कारण बताओ नोटिस भी नहीं दिया जाता है। पार्टी छोड़कर अगर कोई चला जाता था तो उसके निष्कासन की विज्ञप्ति जारी कर सिर्फ औपचारिकता निभाई जाती थी।

अब क्या है : सबसे पहले तेजस्वी ने राजद के पोस्टरों से लालू प्रसाद को हटाया। अब उन्हें भी हटा रहे, जिन्होंने चुनाव में राजद के अधिकृत प्रत्याशियों के खिलाफ अभियान चलाया और हराने की कोशिश की। नतीजे आते ही हार की समीक्षा हुई। पराजित प्रत्याशियों से वजह पूछी गई और बागियों के खिलाफ कार्रवाई की जा रही है। कई को बाहर कर दिया गया।


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