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लालू ने बढ़ाई कांग्रेस की मुश्किल, तेजस्वी से तेलंगाना के सीएम चंद्रशेखर की मुलाकात में बड़े संकेत

लालू प्रसाद की पहल पर महज दो दिन पहले ही वामदलों के प्रमुख नेताओं से चंद्रशेखर की मुलाकात हो चुकी है। ऐसे में तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस) के प्रमुख के अपनी ओर से चार्टर प्लेन भेजकर तेजस्वी को पटना से हैदराबाद बुलाने और मिलने का मतलब सामान्य नहीं हो सकता।

By Akshay PandeyEdited By: Published: Wed, 12 Jan 2022 08:13 PM (IST)Updated: Wed, 12 Jan 2022 08:13 PM (IST)
लालू ने बढ़ाई कांग्रेस की मुश्किल, तेजस्वी से तेलंगाना के सीएम चंद्रशेखर की मुलाकात में बड़े संकेत
कांग्रेस नेता सोनिया गांधी, लालू प्रसाद यादव, तेजस्वी यादव और तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव। जागरण आर्काइव।

अरविंद शर्मा, पटना: हैदराबाद में तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव से बिहार के नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव की मुलाकात के मायने को शिष्टाचार की ओट में नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। तेजस्वी के पिता और राजद प्रमुख लालू प्रसाद की पहल पर महज दो दिन पहले ही वामदलों के प्रमुख नेताओं से चंद्रशेखर की मुलाकात हो चुकी है। ऐसे में तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस) के प्रमुख के अपनी ओर से चार्टर प्लेन भेजकर तेजस्वी को पटना से हैदराबाद बुलाने और मिलने का मतलब सामान्य नहीं हो सकता। दक्षिण भारत के इस प्रमुख नेता की राजनीतिक बुनियाद कांग्रेस और भाजपा से एक समान दूरी पर है।

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बिहार में राजद भी कुछ ऐसा ही संकेत दे रहा है। भाजपा से राजद की अदावत तो जगजाहिर है ही, अब कांग्रेस से भी कटुता कम होती नहीं दिख रही है। विधानसभा की दो सीटों पर हाल में हुए उपचुनाव के दौरान दोनों दलों की दोस्ती टूट चुकी है, जो अभी भी जुटती नहीं दिख रही। के चंद्रशेखर राव और तेजस्वी की इस मुलाकात को गैर भाजपा और गैर कांग्रेस दलों की एकजुटता का प्रारंभिक प्रयास माना जा रहा है। दोनों दलों का मानना है कि बड़े राष्ट्रीय दल (भाजपा और कांग्रेस) क्षेत्रीय दलों के अस्तित्व को समाप्त करना चाह रहे हैं। इसलिए एकजुट हो जाना चाहिए। चंद्रशेखर राव और तेजस्वी की मुलाकात को प्रारंभिक कदम माना जा रहा है। यूपी चुनाव के बाद सक्रियता का विस्तार होगा। राष्ट्रीय स्तर पर तीसरा मोर्चा का माहौल बनाया जाना है। 

कांग्रेस को राजद की ओर से भाव नहीं

इस प्रयास का साइड इफेक्ट सबसे ज्यादा कांग्रेस पर पड़ सकता है, क्योंकि कई राज्यों में अपना बल-बूता खो चुकी कांग्रेस की सबसे बड़ी ताकत भाजपा विरोधी दलों का समर्थन है। पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस और यूपी में अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी ने पहले ही कांग्रेस को दुत्कार दिया है। बिहार विधानसभा की दो सीटों के उपचुनाव में तेजस्वी भी कांग्रेस के साथ ऐसा ही व्यवहार कर चुके हैं। अब बिहार विधान परिषद की 24 सीटों पर होने जा रहे चुनाव में भी कांग्रेस को राजद की ओर से भाव नहीं दिया जा रहा है। वामदलों की सहमति लेकर महागठबंधन के सारे प्रत्याशी अकेले तेजस्वी यादव ही तय कर रहे हैं। इससे पहले बिहार विधानसभा चुनाव में राजद से गठबंधन के तहत 70 सीटें लेकर 51 पर हार जाने वाली कांग्रेस को राजद के राष्ट्रीय महासचिव शिवानंद तिवारी काफी कोस चुके हैं। यहां तक कि राहुल गांधी की नेतृत्व क्षमता पर भी सवाल उठा चुके हैं।  जाहिर है, कांग्रेस को अपनों से मिलने जा रही चुनौती के लिए भी तैयार रहना होगा। 


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