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बिहारः पंचायत प्रतिनिधियों के लिए अच्छी खबर, समय पर चुनाव न होने पर दूसरे विकल्प पर भी विचार

पंचायती राज संस्थाओं के निर्वाचित प्रतिनिधियों के लिए अच्छी खबर है। समय पर चुनाव न होने की स्थिति में इन संस्थाओं को कार्यकारी बनाए रखने के लिए अब एक के बदले दो विकल्पों पर विचार किया जा सकता है।

By Akshay PandeyEdited By: Published: Wed, 12 May 2021 05:55 PM (IST)Updated: Wed, 12 May 2021 05:55 PM (IST)
बिहारः पंचायत प्रतिनिधियों के लिए अच्छी खबर, समय पर चुनाव न होने पर दूसरे विकल्प पर भी विचार
बिहार के पंचायती राज मंत्री सम्राट चौधरी। जागरण आर्काइव।

अरुण अशेष, पटनाः पंचायती राज संस्थाओं के निर्वाचित प्रतिनिधियों के लिए अच्छी खबर है। समय पर चुनाव न होने की स्थिति में इन संस्थाओं को कार्यकारी बनाए रखने के लिए अब एक के बदले दो विकल्पों पर विचार किया जा सकता है। दूसरे विकल्प पर अगर फैसला हुआ तो विघटित पंचायती संस्थाओं का अधिकार निवर्तमान प्रतिनिधियों को मिल जाएगा। वे अगले चुनाव तक बदले हुए पदनाम से काम करते रहेंगे।

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मालूम हो कि राज्य की पंचायती राज संस्थाओं का कार्यकाल 15 जून को समाप्त हो रहा है। संक्रमण की व्यापकता को देखते हुए समय पर चुनाव होने की संभावना पूरी तरह क्षीण हो गई है। विधानसभा चुनाव कराने के चलते मद्रास हाई कोर्ट ने चुनाव आयोग की तीखी आलोचना की थी। ऐसी ही आलोचना उत्तर प्रदेश में हुए पंचायत चुनाव को लेकर शुरू हो गई है। यूपी के ग्रामीण क्षेत्रों में कोरोना संक्रमण के बढ़ते प्रकोप के लिए वहां हुए पंचायत चुनाव को भी जिम्मेवार माना जा रहा है।

अधिनियम में नहीं है प्रावधान

राज्य का पंचायती अधिनियम इस स्थिति से निबटने का उपाय नहीं बता रहा है कि किसी कारणवश पंचायतों के चुनाव समय पर नहीं हुए तो संस्थाएं किसके मातहत काम करेंगी। नगर निकायों से जुड़े अधिनियम में संशोधन के बाद ऐसी स्थिति में प्रशासक की व्यवस्था की गई है। उसी तर्ज पर पंचायती राज संस्थाओं को भी चुनाव तक प्रशासक के हवाले करने पर विचार किया जा रहा था। लेकिन, अब दूसरे विकल्प पर भी सोचा जा रहा है।

झारखंड दिखा रहा रास्ता

पड़ोसी झारखंड में भी त्रिस्तरीय पंचायत पंचायती राज संस्थाओं का कार्यकाल पिछले साल समाप्त हो गया। कोरोना के चलते चुनाव नहीं हुए। झारखंड के पंचायती राज अधिनियम में पहले से प्रावधान है। इसलिए इस साल सात जनवरी को एक अधिसूचना के जरिए पुराने निर्वाचित प्रतिनिधियों को ही अधिकार दे दिया गया। इसके तहत विघटित पंचायत के मुखिया को कार्यकारी समिति का प्रधान बना दिया गया। पंचायत समिति के अध्यक्ष का नाम प्रखंड प्रमुख होता है। झारखंड में इसे प्रधान, कार्यकारी समिति, पंचायत समिति कर दिया गया। इसी तरह जिला परिषद के अध्यक्ष को प्रधान, कार्यकारी समिति, जिला परिषद नामित किया गया। इन सभी संस्थाओं में सरकारी प्रतिनिधि के तौर पर पहले की व्यवस्था कायम रखी गई है। झारखंड में नई व्यवस्था का कार्यकाल अधिकतम छह महीना रखा गया है।

दलों का भी है दबाव

बिहार में पंचायती राज संस्थाओं का चुनाव दलीय आधार पर नहीं होता है। लेकिन, अधिसंख्य प्रतिनिधि किसी न किसी दल से जुड़े ही होते हैं। ये प्रतिनिधि अपने प्रदेश नेतृत्व पर दबाव बना रहे हैं कि निर्वाचित संस्थाओं को अफसरों के हाथ में जाने से बचाया जाए। भाकपा के राज्य सचिव रामनरेश पांडेय ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से राज्य में झारखंड जैसी व्यवस्था लागू करने की मांग की है। संभव है कि जल्द ही अन्य दलों से भी ऐसी मांग उठे।

क्या बोले सम्राट चैधरी

पंचायती राज मंत्री सम्राट चौधरी ने कहा कि राज्य सरकार सभी विकल्पों पर विचार कर ही कोई निर्णय लेगी। फिलहाल यह विषय अध्ययन के स्तर पर है कि अन्य राज्यों ने ऐसी परिस्थिति में क्या निर्णय लिया है। यह गंभीर विषय है। सरकार के स्तर पर ही काई निर्णय संभव है।


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