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लालटेन युग से आगे निकला बिहार, अब सस्‍ते व तेज इंटरनेट पर जोर: सुशील मोदी

बिहार अब लालटेन युग से आगे निकल चुका है। इसमें इंटरनेट पर जोर है। डिढप्‍टी सीएम व वित्‍त मंत्री सुशील मोदी ने नए वित्‍तीय वर्ष की प्राथमिकताओं पर बातचीत के दौरान ये बातें कहीं।

By Amit AlokEdited By: Published: Sun, 25 Feb 2018 08:31 AM (IST)Updated: Mon, 26 Feb 2018 08:01 PM (IST)
लालटेन युग से आगे निकला बिहार, अब सस्‍ते व तेज इंटरनेट पर जोर: सुशील मोदी
लालटेन युग से आगे निकला बिहार, अब सस्‍ते व तेज इंटरनेट पर जोर: सुशील मोदी

पटना [जेएनएन]। बिहार सरकार 27 फरवरी को वित्तीय वर्ष 2018-19 का बजट पेश करने जा रही है। इस बारे में पहले ही विस्तृत जानकारी तो नहीं दी जा सकती, लेकिन दैनिक जागरण ने उपमुख्यमंत्री और वित्त मंत्री सुशील कुमार मोदी से यह जानने की कोशिश की कि नए वित्तीय वर्ष में सरकार किस वर्ग और क्षेत्र पर फोकस कर रही। पेश है मोदी से बातचीत के मुख्य अंश।

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सवाल : आम आदमी के लिए बजट में क्या खास होगा?

जवाब : देखिए, बजट गोपनीय विषय है। सदन पटल पर जब तक बजट पेश नहीं कर दिया जाता है, तब तक कोई भी विस्तृत सवाल-जवाब संसदीय व्यवस्था और बजट की गोपनीयता के लिहाज अनुचित है। हां, सरकार मध्यम वर्ग, गांवों के विकास और किसानों की प्राथमिकता को ध्यान में रखकर लगातार काम कर रही है।

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के सात निश्चय में मध्यम वर्ग के लिए कई काम हो रहे। स्टूडेंट क्रेडिट कार्ड योजना में बैंकों की निराशाजनक कार्यप्रणाली से सबक लेकर सरकार ने वित्त निगम बनाने का निर्णय किया है। विद्यार्थियों को अब वित्त निगम स्टूडेंट क्रेडिट कार्ड से शिक्षा ऋण मुहैया कराएगा। निगम के संचालन की जिम्मेदारी वित्त विभाग की होगी। अप्रैल से यह निगम काम करने लगेगा। 4 लाख रुपये तक के लोन पर सरकार की गारंटी के बाद भी बैंकों द्वारा लोन देने में आनाकानी के कारण सरकार खुद निगम बनाने जा रही है। गांव और किसानों की प्राथमिकता को ध्यान में रखकर 1.54 लाख करोड़ रुपये का तीसरा कृषि रोडमैप तैयार किया गया है। उम्मीद है कि कृषि रोडमैप गांवों के विकास और किसानों के जीवन में खुशहाली लाने में मददगार साबित होगा। इस पहल से किसानों की आय दोगुनी होगी।

सवाल : इंटरनेट का जमाना है। बड़ी आबादी गांव में रहती है। वह सस्ती और तेज इंटरनेट सेवा से कैसे जुड़ेगी?

जवाब : बिहार लालटेन युग से बाहर निकल चुका है। एक दौर था जब कहा जाता था कि आइटी-वाइटी क्या होता है। इस कारण हम पिछड़ गए, लेकिन अब बिहार आइटी के क्षेत्र में आगे बढऩे की कोशिश कर रहा है। बिहार में तीन करोड़ से अधिक लोग मोबाइल का उपयोग कर रहे हैं। साइबर सुरक्षा पर काम हो रहा है। हर जिले में साइबर सुरक्षा ऑफिसर तैनात करने की तैयारी है। स्कूलों में आइटी के सहारे शिक्षा देने की योजना बन रही है।

वर्ष के अंत तक पांच हजार पंचायतों तक ऑप्टिकल फाइबर नेटवर्क पहुंच जाएगा। गांवों में लोगों को तेज इंटरनेट और सस्ती वाईफाई सेवा उपलब्ध कराने की तैयारी है। आंगनबाड़ी केंद्रों, अस्पतालों, हाईस्कूलों और ग्राम पंचायत भवनों में वाईफाई सेवा उपलब्ध होगी। कॉमन सर्विस सेंटर खोलने काम शुरू हो गया है। तकनीकी रूप से बिहार समृद्ध राज्य बनने की ओर अग्रसर है। सरकारी योजनाओं की मॉनीटरिंग अब सॉफ्टवेयर करेगा। सरकारी खजाने में जमा राशि और निकासी का हिसाब अब राज्य से लेकर प्रखंड स्तर तक कॉम्प्रिहेंसिव फाइनेंस मैनेजमेंट (सीएफएम) करेगा। पहली अप्रैल से यह सुविधा लागू हो जाएगी।

मैं उम्मीद करता हूं कि सरकारी खजाने से राशि की हेराफेरी पर यह सॉफ्टवेयर अंकुश लगाने में मददगार साबित होगा।

सवाल :  वित्त मंत्री का पद  संभालने के बाद आपने कौन से बदलाव किए हैं। कुछ महत्वपूर्ण उपलब्धियां?

जवाब : बीच के कुछ वर्षों को छोड़ दें तो बतौर वित्त मंत्री 2006 से लेकर अब तक की उपलब्धियां गिनाना आसान काम नहीं है। कुछ अहम बदलाव ध्यान में है, बताता हूं। 2006 से पहले बिहार में हर वर्ष दो किस्तों में सरकार बजट पास कराती थी। पहला बजट अप्रैल से जुलाई तक और दूसरा अगस्त से मार्च तक पास करवाया जाता था। राजग सरकार बनने के बाद मैंने पहली बार पूरे वर्ष का बजट एक बार बनाने और पास करवाने का प्रावधान सुनिश्चित किया। अप्रैल से मार्च तक का बजट बनाने की परंपरा शुरू हुई।

बजट बनाने से पूर्व मैंने समाज के प्रबुद्ध वर्ग के लोगों औद्योगिक, व्यावसायिक और अन्य संगठनों के प्रतिनिधियों के साथ मीटिंग की परंपरा शुरू की। आर्थिक सर्वेक्षण शुरू करवाया। बजट से पहले विधानमंडल के समक्ष आर्थिक सर्वेक्षण रिपोर्ट पेश करने की पहल की। आज भी यह व्यवस्था जारी है।

2006 से पहले सरकार के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का 55 फीसद कर्ज था, लेकिन कुशल प्रबंधन से आज यह घटकर 26 फीसद पर आ गया है। बिहार में राजग सरकार बनने से पूर्व स्थिति यह थी कि सरकार कर्ज लेकर कर्ज चुकाती थी। वर्षों तक एसीडीसी बिल मुद्दा बनता रहा, लेकिन उस पर अब काफी हद तक नियंत्रण कर लिया गया है।

सवाल : सरकार पर कर्ज का बोझ बढऩे के पीछे वजह क्या है? कर्ज लेने का आधार क्या है?

जवाब : वित्तीय प्रबंधन के तहत प्रति वर्ष कर्ज लेने की सीमा तय है। सरकार जीडीपी का तीन फीसद से ज्यादा प्रति वर्ष कर्ज नहीं ले सकती है। फिर कर्ज लौटाने का भी दबाव रहता है। किंतु 2006 से पहले सरकार कर्ज लेती गई और लौटाने की ओर ध्यान नहीं दिया। स्थिति यह हो गई थी कि सरकार कर्ज लेकर कर्ज चुकाती थी। राजग सरकार बनने के बाद ऐसी स्थिति पर काबू पाना हमारी पहली प्राथमिकता थी। इसमें मैं अपने आप को काफी सफल मानता हूं।


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