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चौतरफा अनदेखी की कीमत चुका रहा बिहार, अब है विशेष दर्जे की दरकार

बिहार को विशेष राज्य के दर्जे की दरकार है। साल दर साल यह राज्य उपेक्षा का शिकार रहा है। इसने विभाजन का दंश भी झेला है, बावजूद इसके यह अपने दम पर विकास कर रहा है।

By Kajal KumariEdited By: Published: Sun, 29 Apr 2018 12:51 PM (IST)Updated: Mon, 30 Apr 2018 08:28 PM (IST)
चौतरफा अनदेखी की कीमत चुका रहा बिहार, अब है विशेष दर्जे की दरकार
चौतरफा अनदेखी की कीमत चुका रहा बिहार, अब है विशेष दर्जे की दरकार

पटना [एसए शाद]। नीति आयोग के सीईओ अमिताभ कांत की टिप्पणी ने बिहार के साथ अबतक हुई अनदेखी की यादें फिर ताजा कर दी हैं। आजादी से पहले से ही बिहार उपेक्षित रहा और नतीजे में लगातार पिछड़ता गया।  आजादी के बाद से अबतक बनी केंद्र सरकार की नीतियों में ऐसे किसी प्रयास की झलक नहीं दिखी जिसे बिहार को अन्य विकसित राज्यों की कतार में खड़ा करने का प्रयास कहा जा सके।

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बिहार ने विकास का अबतक जो भी सफर तय किया है, वह अपने बल-बूते ही तय किया है। राज्य की विकास दर अभी राष्ट्रीय औसत से अधिक है। इसके बावजूद इसे विकसित राज्यों की कतार में खड़ा होने के लिए बड़े पैकेज की आवश्यकता है।

कुछ साल पूर्व बनी रघुराम राजन कमेटी से उम्मीदें जगीं थीं। परन्तु कमेटी ने पिछड़ेपन की पहचान के लिए सही पैमाना तय नहीं किया। 

गलत पैमाने का विरोध

''यूपीए सरकार ने बिहार की विशेष राज्य के दर्जा की मांग के मद्देनजर मई, 2013 में रघुराम राजन की अध्यक्षता में पांच सदस्यीय कमेटी बनाई। राजन उस समय प्रधानमंत्री के आर्थिक सलाहकार थे। समिति ने 10 मानक तय किए थे जिनके आधार पर 28 राज्यों की रैंकिंग की गई।

प्रति व्यक्ति आय की जगह प्रति माह प्रति व्यक्ति उपभोग को पैमाना बनाया गया था। इसका विरोध समिति में सदस्य के रूप में शामिल एशियन डेवलपमेंट रिसर्च इंस्टीच्यूट के सदस्य सचिव डा. शैबाल गुप्ता ने किया था।

कमेटी के 10 पैमाने

1. प्रति माह प्रति व्यक्ति उपभोग

2. शिक्षा

3. स्वास्थ्य

4. घरों में सुविधाएं

5. गरीबी दर

6. महिला साक्षरता

7. अनुसूचित जाति-जनजाति की आबादी का प्रतिशत

8. शहरीकरण की दर

9. आर्थिक समावेश

10. कनेक्टिविटी

योजना    मिलनी थी राशि   प्राप्त राशि(करोड़ में)

प्रधानमंत्री आवास योजना-- 4154.60  --

602.57

मनरेगा      ---1503.00    --- 437.22

जीविका    --- 440.20     --- 393.02

ग्रामीण पथ  --- 3300.00   --- 20.59 

एमएसडी    --- 223.20    ---12.25

पेयजल     --- 350.00  --- 215.28

त्वरित सिंचाई --- 798.65  -- 00

स्किल डेवलपमेंट -- 30.46 -- 36.81

हर दौर में उपेक्षित रहा है बिहार

बिहार एक ऐसा राज्य है जो हर दौर में उपेक्षित रहा है। ब्रिटिश काल में इसने स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय रहने की कीमत चुकाई। फिर देश जब आजाद हुआ तो कुछ ऐसी नीतियां बनीं जिसने बिहार को प्राकृतिक संसाधन में संपन्न रहने के बावजूद इसके लाभ से वंचित कर दिया। भाड़ा समानीकरण की नीति प्रमुख थी।

बिहार के खनिज पदार्थों के बल-बूते कई राज्य विकास की सीढिय़ां धड़ाधड़ फलांगते गए। डा. राजेंद्र प्रसाद, अनुग्रह नारायण सिंह, जगजीवन राम और फिर बाद में ललित नारायण मिश्रा जैसी बिहार की बड़ी हस्तियों के राष्ट्रीय राजनीति में दखल रखने के बावजूद बिहार को इसका वाजिब हक नहीं मिल सका।

आपातकाल के दौरान भी बिहार अन्य राज्यों की अपेक्षा अधिक राजनीतिक सरगर्मियों का केंद्र बना। 80 का दशक भी बिना कुछ पाए गुजर गया। 

दो टुकड़ों में बंटा बिहार

90 का दशक आरंभ हुआ तो बिहार में गैरकांग्रेसी सरकार के सत्तासीन होने का सिलसिला आरंभ हुआ। तब देश में नई आर्थिक नीति के साथ-साथ मंडल कमीशन की अनुशंसाएं भी लागू हो रहीं थीं। बदली हुई राजनीतिक एवं आर्थिक परिस्थिति में भी देश के एजेंडे में बिहार प्रमुखता पाने में विफल रहा। और फिर 2000 में बिहार का विभाजन भी हो गया।

खनिज संपदाओं वाला हिस्सा झारखंड के रूप में अलग राज्य बन गया। 2005 में सरकार बदली तो विकास की गाथा लिखने की पहल हुई। बेहतर वित्तीय प्रबंधन और राशि खर्च करने की क्षमता में इजाफा के नतीजे में कुछ ही माह में बिहार की विकास दर 10 से ऊपर तक जा पहुंची।

पिछले दस सालों से राज्य का विकास दर नीचे  

देखा जाए तो पिछले 10-12 सालों से राज्य की विकास दर 10 प्रतिशत से अधिक रहने के बावजूद बिहार कई मानकों पर राष्ट्रीय औसत से बहुत पीछे है। बात चाहे गरीबी रेखा से नीचे जीवनयापन करने वाली आबादी की हो या प्रति व्यक्ति आय की, बिहार बहुत पीछे है।

बिहार को इकोनॉमिक बेस की जरूरत

तेज विकास दर के बावजूद इसे आगे बढऩे के लिए बड़े 'इकोनोमिक बेस' की जरूरत है। यह काम किसी बड़े विशेष पैकेज से ही संभव है। बिहार ने इसके एवज में केंद्र से विशेष राज्य के दर्जा की मांग की ताकि निवेशक आकर्षित हों और राज्य को एक बड़ा इकोनोमिक बेस मिलने में कामयाबी मिले।

विशेष राज्य के दर्जे की सौगात का मुंह देख रहा बिहार

मगर केंद्र सरकार से विशेष दर्जा की सौगात का अबतक इंतजार है। उम्मीद तब बंधी तब रघुराम राजन की अध्यक्षता में कमेटी गठित हुई, मगर इसके मानक बिहार के लिए अनुकूल नहीं थे। बिहार में अन्य राज्यों की तुलना में काफी काम प्रति व्यक्ति आय का संज्ञान ही नहीं लिया गया।

नीति आयोग के सीईओ ने बिहार के जख्म को हरा किया

अब नीति आयोग के सीईओ अमिताभ कांत की यह टिप्पणी की भारत के पिछड़ेपन के मूल में बिहार जैसे राज्यों का पिछड़ापन है, एक मजाक के समान है। इस पिछड़ेपन को दूर करने का कभी प्रयास नहीं किया गया, जबकि बिहार हमेशा से ही 'विक्टिम' रहा। अब 'विक्टिम' को ही मुजरिम बताया जा रहा है। 

औद्योगिकीकरण, सामाजिक एवं भौतिक आधारभूत संरचना के मामले में भी प्रदेश बहुत पिछड़ा है। प्रदेश में गरीबी उन्मूलन की योजनाएं भी धीमी रफ्तार से चल रहीं हैं। धीमी रफ्तार कई अन्य स्कीम की भी हैं जो मुख्य रूप से केंद्र प्रायोजित या केंद्रीय प्रक्षेत्र की योजनाओं का हिस्सा हैं।

जितनी राशि चाहिेए उतनी नहीं मिलती

पिछले वित्त वर्ष में केंद्र सरकार ने केंद्र प्रायोजित एवं केंद्रीय प्रक्षेत्र की योजनाओं के लिए जो आवंटन किए उसके मुताबिक राशि रिलीज नहीं की। सबसे अधिक प्रभावित प्रधानमंत्री आवास योजना हुई है। सूबे में करीब 25 लाख बेघरों को आवास मुहैया कराना है, और ठंड के इस मौसम में उन्हें खुले आसमान के नीचे जिंदगी गुजारनी पड़ रही है। 

-केंद्र सरकार को प्रधानमंत्री आवास योजना के लिए चालू वित्त वर्ष में 4154.60 करोड़ रुपये देने थे, परन्तु केवल 602.57 करोड़ रुपये ही प्राप्त हुए। 

-इसी प्रकार गरीबी उन्मूलन की दूसरी बड़ी योजना मनरेगा के लिए 1503 करोड़ पिछले वित्तीय वर्ष में मिलने थे लेकिन केंद्र सरकार ने सिर्फ 437.22 करोड़ ही रिलीज किए। 

-केंद्रीय करों में राज्य की हिस्सेदारी भी अबतक पूरी की पूरी नहीं मिल सकी है। कुल 1261.45 करोड़ रुपये 2017-18 में मिलने थे लेकिन इसके विरूद्ध 549.27 करोड़ ही मिले।

-प्रदेश का एक आसरा पिछड़ा क्षेत्र अनुदान कोष(बीआरजीएफ) भी है। लेकिन बीआरजीएफ की बकाया 2903.53 करोड़ की राशि की जगह 2064 करोड़ ही उपलब्ध कराए गए हैं। 


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