राज्यसभा चुनाव: बिहार NDA दुविधा में कि टिकट काटें तो किसका, BJP-JDU में कई दिग्गज दावेदार
राज्यसभा चुनाव को लेकर बिहार में एनडीए के दोनों घटक दल भाजपा और जदयू अलग तरह की दुविधा में फंसे हुए हैं। पहले संकट होता था- किन लोगों को भेजें। नया संकट- किनका टिकट काटें।
पटना, अरुण अशेष। राज्यसभा चुनाव को लेकर बिहार में एनडीए के दोनों घटक दल भाजपा और जदयू अलग तरह की दुविधा में फंसे हुए हैं। पहले संकट होता था- किन लोगों को भेजें। नया संकट है- राज्यसभा में जाने से किन लोगों को रोका जाए। भाजपा के दो और जदयू के तीन सांसदों का कार्यकाल अगले महीने खत्म हो रहा है। इसी 26 मार्च को चुनाव है। रिक्त होनेवाली पांच सीटों में से एनडीए के खाते में तीन जाएंगी, जबकि दो पर राजद और उसके समर्थक काबिज होंगे।
रिटायर होने वालों में भाजपा के दिग्गज आरके सिन्हा और डाॅ. सीपी ठाकुर भी हैं। चुनावी वर्ष और सामाजिक समीकरण के लिहाज से भाजपा के लिए दोनों अपरिहार्य हैं। पंडित दीनदयाल उपाध्याय के समय में 54 साल पहले जनसंघ से जुड़े सिन्हा की पार्टी के प्रति अटूट आस्था रही है। राज्य के कई कायस्थ संगठनों के वे संरक्षक हैं। पिछले साल तक बिहार से इस बिरादरी के दो सदस्य राज्यसभा में हुआ करते थे। रविशंकर प्रसाद लोकसभा में चले गए। अगर अबकी सिन्हा नहीं जाते हैं तो बिहार से राज्यसभा में कायस्थों का प्रतिनिधित्व शून्य हो जाएगा। लिहाजा, भाजपा के लिए उनके दावे को खारिज करना आसान नहीं है।
पूछने पर आरके सिन्हा कहते हैं कि आज तक पार्टी से कुछ नहीं मांगा है। इस बार भी पार्टी का फैसला मंजूर होगा। पार्टी ने हमेशा सम्मान किया है। मुझे अभी तक इस बारे में कोई जानकारी नहीं है कि मेरे राज्यसभा के मामले में नेतृत्व क्या सोच रहा है। नेतृत्व का फैसला हमें मंजूर होगा।
दूसरी तरफ डाॅ. सीपी ठाकुर की अनदेखी भी भाजपा को मुश्किल में डाल सकती है। वैसे तो उनका सम्मान हरेक बिरादरी में है। भूमिहारों में अधिक है। उनके समर्थक संवेदनशील हैं। डाॅ. ठाकुर की उपेक्षा होती है तो समर्थक बिना देर किए मैदान में उतर जाते हैं। लोकसभा चुनाव में भाजपा पर भूमिहारों की उपेक्षा का आरोप लगा था। उग्र हुए समर्थकों को डा. ठाकुर ने ही समझा कर शांत किया था। विधानसभा चुनाव के मददेनजर हलचल शुरू गई है। ऐसे में डा. ठाकुर के लोगों की नाराजगी लेने से भाजपा परहेज ही करेगी।
जदयू परिषद में कर सकता है भरपाई
किसको राज्यसभा में भेजें? यह सवाल जदयू को भी परेशान कर रहा है। उसके तीन सदस्यों- हरिवंश, कहकशां परवीन और रामनाथ ठाकुर का कार्यकाल पूरा हो रहा है। हरिवंश उप सभापति हैं। वह नहीं जाते हैं तो जदयू के कोटे से यह महत्वपूर्ण पद भी चला जाएगा। इसलिए उनका जाना तय माना जा रहा है। लेकिन, बचे हुए दोनों सदस्यों को भेजना जदयू के लिए संभव नहीं है। इस बीच कुछ नए दावेदार भी सामने आ गए हैं। परवीन और रामनाथ ठाकुर- दोनों अति पिछड़ी बिरादरी के हैं। यह जदयू का कोर वोट बैंक है। राहत की बात यह है कि जदयू में मुख्यमंत्री और दल के अध्यक्ष नीतीश कुमार का फैसला हर किसी को मंजूर होता है। इसलिए इन राज्यसभा सदस्यों की भरपाई अगर विधान परिषद से कर दी जाए तो कोई परेशानी नहीं होगी। परिषद में अप्रैल-मई महीने में बड़े पैमाने पर रिक्तियां हो रही हैं। इससे पहले गुलाम रसूल बलियावी को राज्यसभा से रिटायर होने पर परिषद में भेज दिया गया था।