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चर्चा में बिहार के प्रवासी कामगारों का चनपटिया मॉडल, कंबल-टोपी के साथ साड़ी ने कर दिया कमाल

प्रवासी कामगारों की 76 लोगों के जत्थे ने करिश्मा कर दिया है। उनके द्वारा तैयार किए गए कंबल और टोपी लद्दाख में तैनात सेना के जवानों के लिए खरीदे गए हैं औैर बड़े स्तर पर ये हुनरमंद बांग्लादेश से मिल रहे रेडिमेड कपड़ों का आर्डर संभाल रहे हैं।

By Akshay PandeyEdited By: Published: Sat, 02 Jan 2021 04:01 PM (IST)Updated: Sat, 02 Jan 2021 04:01 PM (IST)
चर्चा में बिहार के प्रवासी कामगारों का चनपटिया मॉडल, कंबल-टोपी के साथ साड़ी ने कर दिया कमाल
चनपटिया बाजार समिति स्थित जिला औद्योगिक नवप्रवर्तन योजना का निरीक्षण एवं परिभ्रमण करते नीतीश कुमार। जागरण आर्काइव।

भुवनेश्वर वात्स्यायन, पटना। नियमित रूप से निगेटिव सोचने वालों के लिए यह खबर उनमें आशा का संचार कर सकती है। कोरोना काल में बाहर के राज्यों से लौटे प्रवासी कामगारों की 76 लोगों के जत्थे ने कुछ ही महीने में करिश्मा कर दिया है। उनके द्वारा तैयार किए गए कंबल और टोपी लद्दाख में तैनात सेना के जवानों के लिए खरीदे गए हैं औैर बड़े स्तर पर ये हुनरमंद बांग्लादेश से मिल रहे रेडिमेड कपड़ों का आर्डर संभाल रहे हैं। यही नहीं इंब्रायडरी वाली साड़ियों को तैयार कर देश के विभिन्न राज्यों में भेजा रहा है। हाल ही में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने इन प्रवासी कामगारों के उद्यमिता का जायजा लिया था।

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इस तरह इनकी उद्यमिता ने लिया विस्तार 

कोरोना काल में पश्चिम चंपारण में बड़ी संख्या में गुजरात और राजस्थान में काम करने वाले कामगार लौैटे। इनमें अधिकांश गुजरात के सूरत साड़ी तैयार करते थे और कुछ रेडिमेड वस्त्रों को तैयार करने वाली फैक्ट्री में थे। कोरोना काल मेंं  क्वारंटाइन सेंटर में स्किल मैपिंग के माध्यम से इनकी पहचान हुई थी। जिलाधिकारी ने इनके लिए काम करना चाहा। तय हुआ कि कुमारबाग में इनके लिए शेड बना दिया जाए। वहां उद्योग विभाग की जमीन थी। जमीन पर शेड बनाने की बात हुई तो यह कहा गया कि कम से कम डेढ़ साल लग जाएगा शेड तैयार करने में। इतना समय लगेगा तो प्रवासी कामगार निकल लेंगे। इसके बाद बियाडा की पहल पर यह तय हुआ कि एफसीआई के बेकार पड़े गोदाम के शेड को ले लिया जाए। यह चनपटिया में है। खाद्य एवं आपूर्ति विभाग ने कहा कि बियाडा इसका किराया तय कर ले। इसके बाद अस्सी रुपए वर्गफीट के हिसाब से किराया तय हो गया। शेड का पूरा इलाका विकसित कर एक रुपए चार पैसे प्रति वर्गफीट की दर से किराया तय हो गया। कुल 76 कामगारों को शेड आवंटित कर दिया गया।

कंपनियों का काम खुद अपने पास ले लिया कामगारों ने

कामगारों ने मिलकर छोटी पूंजी से काम शुरू किया। सरकार ने भी मदद की। कामगारों ने उन फर्मों से बात कर ली जहां उनकी उस कंपनी का माल जाता था जहां वे पहले काम करते थे। बात आगे बढ़ गयी। एक से बढ़कर एक उत्पाद तैयार होने लगे और इन कामगारों ने अपने बूते इन्हें बाहर के राज्यों में भेजना शुरू कर दिया। लद्दाख में सेना के लिए कंबल और टोपी का आर्डर भी ले लिया और बांग्लादेश का आर्डर भी संभालने लगे। रेडिमेड वस्त्रों के मामले में बांग्लादेश बड़ा हब है। वहां की कुछ कंपनियों को कई यूरोपीय देशों मे प्रतिबंधित कर दिया है। उनमें कई अपने रेडिमेड वस्त्रों का कुछ हिस्सा यहां तैयार करवा रहे।


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