बिहारः पशुओं में लंपी वायरस को लेकर सतर्क हुई सरकार, जारी की एडवाइजरी; खुद ऐसे कर सकते हैं इलाज
राज्य स्तर पर पशु स्वास्थ्य एवं उत्पादन संस्थान बिहार पटना में एक नियंत्रण कक्ष की स्थापना के निर्देश दिया गया है। पशुपालन निदेशक ने प्रदेश स्तर प्रमंडल और जिला स्तर पर नोडल पदाधिकारी को नामित करने और तीनों स्तर पर आरआरटी (रैपीड रेस्पान्स टीम) का गठन किया गया है।
राज्य ब्यूरो, पटना : सरकार पशुओं में फैल रहे त्वचा रोग लंपी वायरस को लेकर सतर्क हो गई है। पशुपालन विभाग ने अधिकारियों व पशु चिकित्सकों को सतर्कता व विशेष सावधानी बरतने के निर्देश दिए हैं। संक्रमित गौवंशीय और महिषवंशीय पशुओं के इलाज के लिए समन्वय स्थापित करते तमाम इंतजाम सुनिश्चित एडवाइजरी भी जारी की है। साथ ही संक्रमित पशुओं के आइसोलेशन, पशु चिकित्सकों को निर्देशों और प्रोटोकाल के अन्तर्गत निस्तारण की कार्रवाई विशेष सतर्कता बरतते हुए करने की ओर ध्यान आकृष्ट किया है।
संक्रमण के खतरे के प्रति सभी क्षेत्रीय निदेशक, जिला पशुपालन पदाधिकारी, भ्रमणशील पशु चिकित्सा पदाधिकारियों एवं पशु स्वास्थ्य एवं उत्पादन संस्थान, बिहार, पटना के निदेशक एवं अन्य पदाधिकारियों के पदाधिकारी के साथ वीडियो कांफ्रेंसिंग कर सतर्कता को लेकर विस्तृत जानकारी दी गई है। इसमें मुख्य रूप से डा. मंजू सिन्हा ने लंपी त्वचा रोग के संबंध में विस्तृत जानकारी दी।
बीमारी के खतरे को भांपते हुए राज्य स्तर पर पशु स्वास्थ्य एवं उत्पादन संस्थान, बिहार, पटना में एक नियंत्रण कक्ष की स्थापना के निर्देश दिया गया है। पशुपालन निदेशक ने प्रदेश स्तर, प्रमंडल और जिला स्तर पर नोडल पदाधिकारी को नामित करने और तीनों स्तर पर आरआरटी (रैपीड रेस्पान्स टीम) का गठन किया गया है। लंपी से बचाव को लेकर व्यापक स्तर पर प्रचार प्रसार करने के निर्देश भी दिए गए। इसके तहत जागरूकता पोस्टर चिपकाने, एम्बुलेट्री वैन से आडियो विजुअल के माध्यम से शिविर लगाकर प्रचार-प्रसार कराने की जिम्मेदारी दी गई है। साथ ही बिहार से सटे अन्य राज्यों से आने वाले पशुओं पर भी नजर रखने के लिए जिला के क्षेत्रों में पशुओं के आवागमन पर सत्त नियंत्रण रखने का निर्देश अधिकारियों को दिए गए हैं।
प्राकृतिक उपचार है विकल्प
भारत सरकार और एनडीडीबी द्वारा पशुओं को लंपी त्वचा रोग से बचाने व उपचार के लिए हर्बल औषधी बनाने के सुझाव दिए गए हैं। इसमें 10 पान के पत्ते, 10 ग्राम काली मिर्च, 10 ग्राम नमक को घीसकर उसमें आवश्यकतानुसार गुड़ मिलाकर एक चटनी बनाने और इसे पहले दिन एक खुराक हर तीन घंटे पर पशु को खिलाएं। दूसरे दिन से दो सप्ताह तक हर तीन घंटे पर एक खुराक खिलाएं। खुराक प्रत्येक दिन ताजा तैयार किया जाना चाहिए। घावों पर लगाने के लिए एक मुट्ठी कुप्पी का पत्ता, लहसुन 10 कलियां, एक मुठ्ठी नीम का पत्ता, 20 ग्राम हल्दी पाउडर एक मुठ्ठी मेंहदी पत्ता और एक मुठ्ठी तुलसी पत्ता को एक साथ पीसकर उसमें 500 एमएल नारियल या तील का तेल मिलाकर उबाल लें। ठंडा करें। घाव को अच्छी तरह साफ कर लगाएं। यदि घाव में कीड़े पड़ गए हों तो नारियल के तेल में कपूर मिलाकर लगाएं या शरीफा की पत्तियां पीसकर लगाएं।
रोग के फैलने की स्थिति में पशुओं के चिकित्सा के साथ सैम्पल कलेक्शन कर जांच कर भेजने और रोग फैलाव को रोकने के लिए आवश्यक कदम उठाए जाने का निर्देश दिए गए हैं। यदि पशु संक्रमित हो जाता है तो उसे अलग करके रखें। भैंस जाति के पशु को इससे दूर रखेंगे रोग के संक्रमण की सूचना अविलम्ब नियंत्रण कक्ष को देने के निर्देश दिए हैं। पशु स्वास्थ्य एवं उत्पादन संस्थान, बिहार, पटना स्थित नियंत्रण कक्ष के टेलिफोन नंबर 0612-2226049 जारी किया गया है। इस रोग के संबंध में मानक संचालन प्रक्रिया तैयार करने का निर्देश निदेशक, पशु स्वास्थ्य एवं उत्पादन संस्थान, बिहार, पटना को दिया गया।