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    Bihar Chunav 2025: क्‍या टूट गई जाति‍ की बेड़‍ियां; युवा और मह‍िलाओं ने बदली राजनीत‍ि की तस्‍वीर

    By Dina Nath Sahani Edited By: Vyas Chandra
    Updated: Fri, 14 Nov 2025 03:00 PM (IST)

    बिहार विधानसभा चुनाव के नतीजों से पता चलता है कि राज्य में जातिवाद कम हो रहा है। युवा पीढ़ी अब रोजगार और विकास के साथ खड़ी है। राजनीतिक दलों ने युवा मतदाताओं को रिझाने के लिए कई वादे किए। युवाओं ने विकास और रोजगार के नाम पर अपनी सहमति जताई। नीतीश सरकार की योजनाओं ने भी युवाओं को आकर्षित किया।

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    Bihar Chunav 2025: युवाओं ने विकास पर क‍िया फोकस

    दीनानाथ साहनी, पटना। Bihar Vidhan Sabha Chunav latest News: चुनावी नतीजे बता रहे हैं कि जात-पात की जकड़न से निकला बिहार की आबोहवा बदल रही है।

    पहले इसमें जाति का रंग घुला रहता था। अब ऐसा नहीं है। इस बदलाव का सारा दारोमदार आज की युवा पीढ़ी पर है। युवा वर्ग अब रोजगार और विकास के साथ खड़ा है।

    जात-पात से दूर रहना चाहता है और राज्य की प्रगति में भी खुद को भागीदार बनाना चाहता है। यही कारण है कि बिहार चुनाव की शुरूआत से मतदान के अंतिम दौर तक राजनीतिक दलों की नजर युवा वर्ग पर फोकस थी।

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    संभवत: राजनीतिक दल भी युवा वर्ग की मंशा को समझ चुके हैं कि युवा अब जाति के नाम पर कुछ पल को ठहरता जरूर है, लेकिन वह समर्थन विकास के नाम पर ही करता है।

    युवा वोटर बने निर्णायक 

    •  18-19 आयुवर्ग-14 लाख 1,150 मतदाता
    •  20-29 आयुवर्ग-1 करोड़ 63 लाख 25 614

    बीते दो-तीन माह के चुनाव अभियान और प्रचार के दौरान तमाम दलों ने सर्वाधिक युवा मतदाताओं को अपने पाले में लाने का पूरजोर प्रयास किया, जिनकी कुल आबादी 1 करोड़ 77 लाख 26 हजार 764 है।

    एनडीए हो या फिर महागठबंधन, दोनों ने युवा मतदाताओं को रिझाने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी, वो तमाम वादे किए, जो उन्हें रोजगार, नौकरी और विकास से जोड़ सके।

    दूसरी राजनीतिक पार्टियां भी युवाओं के वोट को साधने में जुटी दिखीं। चुनाव विश्लेषक भी बिहार चुनाव में एनडीए की सुनामी में महागठबंधन की हार की बड़ी वजह युवा वोटरों को मान रहे हैं।

    समाजशास्त्री प्रो. अमर कुमार सिंह कहते हैं-पूरे चुनाव में राजनीतिक दलों की नजर युवाओं पर थी। इनमें एक 18-19 वर्ष की आयु वर्ग हैं तो दूसरे 20-29 आयु के।

    तमाम दलों ने रोजगार-नौकरी, नौजवानों को बेरोजगारी भत्ता जैसे अनेक मुद्दे हवा में उछाले। और जैसी उम्मीद थी युवाओं ने विकास और रोजगार के नाम पर अपनी सहमति जताई। 

    15 वर्ष (लालू-राबड़ी शासन) बनाम 20 वर्ष (नीतीश सरकार) के कार्यकाल को कसौटी पर कसते हुए अपना फैसला सुना दिया।

    बिहार के युवाओं ने इस चुनाव में देश-दुनिया को यह संदेश भी दिया कि जाति का आवरण एक निश्चित सीमा तक अच्छा लगता है। लेकिन, विकास, नौकरी और रोजगार के लिए जाति के नाम पर वह समझौता नहीं किया जा सकता। 


    युवाओं के लिए कई योजनाओं के माध्यम से नीतीश सरकार की सक्रियता

    बिहार में युवाओं पर कई योजनाओं के माध्यम से नीतीश सरकार की सक्रियता है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की महत्वाकांक्षी योजना स्टुडेंट क्रेडिट कार्ड (Bihar Students Credit Card) है।

    उच्च शिक्षा के लिए यह योजना के तहत ब्याज मुक्त ऋण की व्यवस्था युवाओं के लिए मददगार है। बिहार में युवा आयोग का गठन के अलावा मुख्यमंत्री निश्चय स्वयं सहायता भत्ता योजना सभी स्नातकों के लिए भी फलदायक है।

    अगले पांच वर्षों में एक करोड़ युवाओं को नौकरी व रोजगार देने की घोषणा भी युवाओं को ध्यान खींचा। यही मुख्य वजह रही कि इस बार चुनाव सिर्फ गठबंधनों, जाति समीकरणों या महिलाओं की भूमिका पर ही नहीं टिका है।

    बल्कि, इस बार चुनाव के केंद्र में बिहार के 58 प्रतिशत आबादी रही जो देश में सबसे ज्यादा है।