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17 साल बाद आजाद हुआ बिहार क्रिकेट, अब कोर्ट में नहीं, मैदान में होगा खेल

17 साल बाद बिहार क्रिकेट आजाद हुआ है। उन्हें झारखंड नहीं, बल्कि अपने राज्य का प्रतिनिधित्व रणजी जैसे क्रिकेट टूर्नामेंट में करने को मिलेगा।

By Ravi RanjanEdited By: Published: Thu, 04 Jan 2018 07:55 PM (IST)Updated: Fri, 05 Jan 2018 06:12 PM (IST)
17 साल बाद आजाद हुआ बिहार क्रिकेट, अब कोर्ट में नहीं, मैदान में होगा खेल
17 साल बाद आजाद हुआ बिहार क्रिकेट, अब कोर्ट में नहीं, मैदान में होगा खेल

पटना [अरुण सिंह]। दस साल आपसी खींचतान और सात वर्ष कोर्ट में लड़ाई के बाद 2018 बिहार क्रिकेट के लिए नया सवेरा लेकर आया है। 17 साल बाद बिहार क्रिकेट आजाद हुआ है। अब यहां के क्रिकेटर खुली हवा में सांस ले सकेंगे। उन्हें झारखंड नहीं, बल्कि अपने राज्य का प्रतिनिधित्व रणजी जैसे क्रिकेट टूर्नामेंट में करने को मिलेगा, जो टीम इंडिया में इंट्री का मार्ग भी प्रशस्त करेगी।

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विभाजन के बाद लगा ग्रहण

1999 में झारखंड विभाजन के बाद बिहार क्रिकेट पर ग्रहण लगना शुरू हो गया। 2001 में क्रिकेट जहां झारखंड चला गया, वहीं यहां खेल के लिए लड़ाई शुरू हो गई। शुरू में बीसीए के समानान्तर एसोसिएशन ऑफ बिहार क्रिकेट (एबीसी) बना फिर उनके बीच खींचतान शुरू हो गई। इस दौरान भविष्य अंधकारमय होता देख खिलाडिय़ों ने बिहार प्लेयर्स एसोसिएशन बनाकर बीसीसीआइ से दो-दो हाथ करने की ठानी।

इशान समेत कई क्रिकेटर पलायन कर गए

2002 में दो से चार संघ बिहार में बन गए और चारों में कुर्सी के लिए लड़ाई शुरू हो गई, जबकि इससे क्रिकेटरों को हो रहे नुकसान पर किसी का ध्यान नहीं गया। बिहार क्रिकेट टीम के कप्तान रहे सुनील कुमार, तरुण कुमार, निखिलेश रंजन, विष्णु शंकर, रतन कुमार, मनीष वर्धन आदि क्रिकेटरों के साथ झारखंड में सौतेला व्यवहार होने लगा और उन्हें असमय संन्यास लेना पड़ा।

इशान किशन, अनुकूल आशीष, शाहबाज नदीम, केशव कुमार, शशीम राठौर, समर कादरी, बाबूल जैसे युवा  क्रिकेटर झारखंड की शान बने हुए हैं और हम उनकी उपलब्धियों पर खूब तालियां बजाते हैं। झारखंड की ओर से इन क्रिकेटरों को रणजी खेलने का मौका मिला, जबकि इशान तो अंडर-19  विश्व कप टीम के कप्तान भी बने। जबकि यहां के पदाधिकारियों पर फर्क नहीं पड़ा।

एसोसिएट राज्य का दर्जा

बीसीसीआइ ने भी 27 सितंबर 2008 को बीसीए को एसोसिएट राज्य का दर्जा देकर पल्ला झाड़ लिया। इसके एक साल बाद क्रिकेटरों की नई पौध ने एसोसिएट टूर्नामेंट के अडर-19 में चैंपियन और अंडर-16 में रनर अप बनकर दिखाया कि प्रतिभा की कमी नहीं है। उनके कदम आगे बढ़ते कि फिर उनकी उम्मीदों पर उनके ही आकाओं ने पानी फेर दिया।

दो धड़े में बंटा बीसीए

बिहार के क्रिकेटर अगली सीजन की तैयारी में जुटे थे तो दूसरी ओर, 2010 में बीसीए ही दो धड़ा में बंट गया। उस समय के तत्कालीन अध्यक्ष लालू प्रसाद ने तदर्थ समिति बनाई, जिसमें सबा करीम, अमिकर दयाल, मृत्युंजय तिवारी को रखा गया। इसपर सचिव अजय नारायण शर्मा ने बगावत कर दी और समानान्तर बीसीए का गठन कर लिया। फिर आपसी विवाद हाई कोर्ट की सिंगल बेंच से होते हुए सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा। आखिरकार सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर सितंबर 2015 में बीसीए का चुनाव संपन्न हुआ।

लोढ़ा कमेटी के दबाव में सिद्दीकी ने छोड़ा पद

2016 में बीसीसीआइ की  स्पेशल जनरल मिटिंग में बीसीए की मान्यता बहाल हो गई और रणजी छोड़ अन्य टूर्नामेंट खेलने के लिए बिहार को हरी झंडी दिखा दी गई। अब्दुल बारी सिद्दीकी बीसीए के अध्यक्ष बने, लेकिन बाद में उन्हें लोढ़ा कमेटी की सिफारिशों के अंतर्गत एक व्यक्ति एक पद को देखते हुए यह क्रिकेट से अलग होना पड़ा।

जूनियर स्तर पर शानदार प्रदर्शन

वर्तमान में बीसीए सचिव रविशंकर प्रसाद सिंह की देखरेख में बिहार के क्रिकेटरों ने जूनियर स्तर के क्रिकेट में छाप छोड़ी है। बिहार की अंडर-16 टीम रिकॉर्डतोड़ प्रदर्शन करते हुए नॉर्थ-ईस्ट जोन में चैंपियन बनी है। अब उसके सामने नॉक आउट में पड़ोसी राज्य झारखंड है।

राजकोट में नौ जनवरी से चार दिवसीय मुकाबला शुरू होगा, जहां वह अपने प्रदर्शन से झारखंड को यह अहसास कराने की कोशिश करेंगे कि उनके साथ कितना अन्याय हुआ है। दूसरी ओर, सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद अब आने वाला समय यहां के क्रिकेट पदाधिकारियों के लिए चुनौती भरा रहेगा। 


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