Bihar Corona warrior: कोरोना वॉरियर डॉ. अर्पणा के हौसले को सलाम, दो माह से अस्पताल ही बना है घर
बिहार के आरा में अपने परिवार से दूर रहकर 63 दिनों से कोरोना को हराने के लिए डटी हैं अस्पताल में अर्पणा झा। पटना में रहता परिवार। परिवारों से सिर्फ फोन से होती बातचीत।
आरा, अरुण प्रसाद। दो महीने से डॉ. अर्पणा झा के लिए अस्पताल बना है घर और मरीज परिवार के सदस्य। कोरोना संदिग्धों की जांच में जुटीं डॉ. अर्पणा के परिवार के सभी सदस्य पटना में रहते हैं। आरा में वो अकेले जिला स्वास्थ्य समिति के क्वार्टर में रहती हैं और उनके चौबीस घंटे संक्रमितों तथा उनकी चेन की पड़ताल करने में ही गुजर जाते हैं। वे सदर अस्पताल में एपिडेमियोलोजिस्ट पद पर कार्यरत हैं।
स्वजनों से सिर्फ मोबाइल से संपर्क
बातचीत हुई तो बोलीं- सुबह 5:30 बजे उठती हैं। खुद चाय बनाती हैं। 7:30 बजे अस्पताल के लिए घर से निकल जाती हैं। खाना बाहर ही होता है। कभी-कभी तो इसके लिए समय नहीं मिल पाता है। अब तक 29 संक्रमितों की चेन से जुडे 719 लोगों की जांच कर उनके स्वाब का सैंपल पटना भेज चुकी हैं। इकलौती पुत्री और परिवार के सदस्यों से वे सिर्फ मोबाइल से संपर्क कर पाती हैं।
तब ठीक से खाना भी नहीं खा सकीं
बताती हैं कि गुरुवार की रात संदेश क्वारंटाइन सेंटर में कोरोना पॉजिटिव की जानकारी मिलने के बाद तो ठीक से खाना भी नहीं खा सकीं। व्यस्ततम दिनचर्या के बीच कभी-कभी तबीयत भी नासाज हो जाती है, जिसकी जानकारी देने पर परिवार की झिड़की भी सुननी पड़ती है।
महामारी की चेन तोड़ने की कोशिश
भोजपुर जिले में वैश्विक महामारी कोरोना की चेन तोडऩे में लगीं डॉ. अर्पणा झा 3 मार्च से अपने बच्चों से दूर हैं। बताती हैं कि एक समय ऐसा भी आया कि अधिकांश पुलिसकर्मी और मेडिकल स्टाफ को क्वारंटाइन करने की नौबत आ गई। मैं ईश्वर की कृपा से बच गई। उनके परिवार में बुजुर्ग पिता, मेडिकल की पढ़ाई कर रही बेटी और चिकित्सक पति हैं।
कहते हैं सिविल सर्जन
कोरोना काल में मरीजों को आवश्यक सेवा दे रहे डाक्टरों या स्वास्थ्यकर्मियों के लिए छुट्टी तो दूर, रेस्ट करने तक का भी प्रावधान नहीं है। डा.अर्पणा की सेवा सराहनीय है।
- डॉ. एलपी झा, सिविल सर्जन, भोजपुर