Bihar Politics: कांग्रेस की हार-जीत से तय होगा 'राम-कृष्ण' का भविष्य, एग्जिट पोल के बाद हलचल तेज
बिहार विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के प्रदर्शन का असर प्रदेश नेतृत्व पर पड़ेगा। एग्जिट पोल के बाद पार्टी में असंतोष है और नेता राजेश राम और कृष्णा अल्लावारु की जोड़ी पर सवाल उठा रहे हैं। टिकट बंटवारे में अनदेखी के आरोप लग रहे हैं। 14 नवंबर को नतीजों के बाद कांग्रेस में बड़े फेरबदल हो सकते हैं।

राज्य ब्यूरो, पटना। बिहार विधानसभा चुनाव में कांग्रेस का प्रदर्शन केवल सीटों के आंकड़े तक सीमित नहीं रहने वाला है, बल्कि इसका सीधा असर पार्टी के प्रदेश नेतृत्व पर भी पड़ेगा। चुनाव खत्म हो चुके हैं, वोट ईवीएम में कैद हैं और अब सबकी निगाहें 14 नवंबर के नतीजों पर टिकी हैं। मगर इस बीच कांग्रेस के अंदर खामोशी के बीच असंतोष की आवाजें गूंजने लगी हैं।
एग्जिट पोल के आंकड़े आने के बाद कांग्रेस के अंदर नाराज खेमे के नेता लामबंद होने लगे हैं। नाराज नेता इस कोशिश में जुट गए हैं कि चुनाव के दौरान पार्टी के पुराने नेताओं की अनदेखी, टिकटों को लेकर मचे संग्राम के साथ अपने चहेतों को टिकट देने वाले नेताओं को एक मंच पर लाकर दिल्ली के दरबार तक बात पहुंचाई जा सके।
ऐसे नाराज और बागी नेता राज्य में पार्टी की कमान संभाल रहे राजेश राम और कृष्णा अल्लावारु की जोड़ी पर अब सवाल उठा रहे हैं। पार्टी के वरिष्ठ नेता डॉ. शकील अहमद के इस्तीफे को भी इसी प्रकरण से जोड़ा जा रहा है।
पार्टी के कई नेता टिकट बंटवारे से लेकर प्रचार रणनीति तक में स्थानीय नेताओं को दरकिनार करने का आरोप लगा रहे हैं। किसान कामगार के उपाध्यक्ष मनोज कुमार कहते हैं हमारे प्रदेश ने आयातित नेताओं को आगे करने में पार्टी के पुराने नेताओं कार्यकर्ताओं तक का साइड कर दिया।
कई जिलों से कार्यकर्ताओं ने नाराजगी जताई कि चयन प्रक्रिया में जमीनी समीकरणों की अनदेखी की गई, जिससे कई मजबूत प्रत्याशी टिकट से वंचित रह गए। झूठे सर्वे को आधार बनाकर कमजोर उम्मीदवारों को मौका दे दिया गया। उल्लेखनीय है कि मधुबनी में कांग्रेस के एक प्रत्याशी मतदान के तीन दिन पहले क्षेत्र से फरार हो गए हैं। आलम यह रहा कि पोलिंग एजेंट नाश्ते-पानी तक के पैसों के लिए इधर-उधर भटकते रहे।
यहां बता दें कि अधिकांश एग्जिट पोल में कांग्रेस पार्टी की स्थिति कमजोर बताई जा रही है। यदि नतीजे भी इन्हीं रुझानों के अनुरूप आए, तो प्रदेश नेतृत्व पर गाज गिरना लगभग तय माना जा रहा है।
अंदरखाने चर्चा है कि कांग्रेस हाईकमान भी बिहार में संगठन की निष्क्रियता और रणनीतिक कमजोरी से नाखुश है। फिलहाल, कांग्रेस और प्रदेश नेतृत्व का भविष्य 14 नवंबर के नतीजों पर टिका है। अगर पार्टी का प्रदर्शन उम्मीद के अनुरूप नहीं रहा, तो बिहार कांग्रेस में बड़े फेरबदल की शुरुआत तय मानी जा रही है।

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