तीन दिन के दिल्ली दौरे में नीतीश कुमार बो आए राजनीतिक बीज, ममता बनर्जी ने बताया कैसे होगा खेला
वाकई देखा जाए तो विपक्ष के दलों के बीच एकता का पहला प्रयास सफल रहा। इसमें बिहार उत्तर प्रदेश दिल्ली हरियाणा बंगाल व महाराष्ट्र के अलावा वामपंथी दलों के प्रभाव क्षेत्र को एक करने का प्रयास किया गया।
पटना,आलोक मिश्रा। नीतीश कुमार तीन दिन का दिल्ली का फेरा लगाकर पटना लौट आए हैं। इस दौरान उन्होंने बिखरे विपक्ष को एक करने का राजनीतिक बीज बोया है। अब उसका परिणाम क्या होगा? यह तो भविष्य ही बताएगा, लेकिन कुछ हद तक कामयाब रहा है उनका यह फेरा। अभी तक इस अभियान से अलग-थलग खड़ी बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के भी सुर मिलने लगे हैं। उन्होंने भी कह दिया है कि बिहार-झारखंड के उनके समकक्ष नीतीश कुमार व हेमंत सोरेन सहित कई अन्य नेता 2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को सत्ता से बेदखल करने के लिए साथ खड़े नजर आएंगे। अब खेला होबे कहकर ममता भी उनके साथ खड़ी हो गई हैं।
जब नीतीश कुमार ने भाजपा का साथ छोड़ राजद से हाथ मिलाया तभी यह प्रचारित होने लगा था कि नीतीश कुमार केंद्र की राजनीति में सक्रिय होंगे। तभी से उनके प्रधानमंत्री मैटिरियल होने की चर्चा जदयू नेता जोर-शोर से करने लगे थे। हालांकि नीतीश कुमार इस बात को मंच से नकारते रहे, लेकिन हर प्रतिरोध के बाद इस बात को और बल मिलने लगा। जबकि भारतीय जनता पार्टी इसे मुंगेरी लाल के सपने बता रही है। भाजपा की बात में दम भी है कि विपक्ष में प्रधानमंत्री पद के कई दावेदार हैं। कांग्रेस राहुल गांधी के नाम के बिना सहमत नहीं, आम आदमी पार्टी दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को उपयुक्त मान रही है।
ममता बनर्जी के भी सपने हैं। तेलंगाना के मुख्यमंत्री केसीआर की देश भर की दौड़ उनकी महत्वाकांक्षा को दर्शा रही है। ऐसे में नीतीश कुमार का नाम भी उसमें शामिल होने से एकता कैसे संभव होगी? इस यक्ष प्रश्न के कारण नीतीश के प्रयासों को व्यर्थ बता भाजपा मोदी के आगे विपक्ष का कोई सर्वसम्मत चेहरा न होने से 2024 भी अपना मानकर चल रही है। लेकिन नीतीश कुमार जब सोमवार को लालू प्रसाद यादव से मिलकर दिल्ली निकले तो हवा बदलती चली गई। कड़ियां मिलती चली गईं। चाहे आम आदमी पार्टी हो या कांग्रेस, वामदल हों या शरद पवार, मुलायम हों या ओमप्रकाश चौटाला, सभी साथ खड़े नजर आए। जबकि आम हालात में ये सब अलग-थलग ही दिखाई देते थे।
कांग्रेस को ‘आप’ नहीं पचा पाती तो बाकी अन्य के अपने-अपने स्वार्थ। नीतीश चले तो यह संदेश देते कि एकजुटता जरूरी है, पद नहीं। वे कोई दावेदार नहीं हैं, भाजपा का साथ छोड़ सबको सिर्फ एकजुट करने आए हैं। इसी का परिणाम रहा कि सब एक दिखाई देने लगे। सोमवार को कनार्टक के पूर्व मुख्यमंत्री कुमार स्वामी से पहले मुलाकात की फिर राहुल गांधी से। मंगलवार को पहले मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव सीताराम येचुरी से फिर भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव डी. राजा से मुलाकात की। उसके बाद दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल से लंबी चर्चा हुई।
शाम को हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री ओमप्रकाश चौटाला से मिले। उसके बाद उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव से मुलाकात की। बुधवार को सीपीआइ (एमएल) के महासचिव दीपांकर भट्टाचार्य से मुलाकात के बाद मराठा क्षत्रप शरद पवार से मुलाकात की। इस दौरान राष्ट्रपति व उपराष्ट्रपति से भी शिष्टाचार भेंट की। एक तरफ राहुल गांधी की ‘भारत जोड़ो’ यात्रा शुरू हुई और इधर दिल्ली में नीतीश की यह कवायद। विपक्ष को बल देने वाली इन मुलाकातों व यात्रा का ही प्रभाव रहा कि अभी तक राष्ट्रपति व उपराष्ट्रपति चुनाव में उदासीन रहीं ममता बनर्जी भी बोल पड़ीं कि असली खेला अब होबे।
वाकई देखा जाए तो विपक्ष के दलों के बीच एकता का पहला प्रयास सफल रहा। इसमें बिहार, उत्तर प्रदेश, दिल्ली, हरियाणा, बंगाल व महाराष्ट्र के अलावा वामपंथी दलों के प्रभाव क्षेत्र को एक करने का प्रयास किया गया। अभी भले ही कुछ दिखाई न दे रहा हो, लेकिन जो बीजारोपण नीतीश ने किया है, अगर मोह छोड़ विपक्षी दल इसी राह पर चले और चुनाव बाद चेहरा तय करने के क्रम में आगे बढ़े तो भाजपा के लिए 2024 में सोचनीय स्थिति बन सकती है। लालू से मिलकर दिल्ली गए नीतीश लौट आए हैं और लौटते ही उनसे मिलकर सारी प्रगति से अवगत करा चुके हैं।
[स्थानीय संपादक, बिहार]