Bihar Chunav 2020: बिहार चुनाव में आखिर क्यों भारी है 'जंगलराज' का मुद्दा, आप भी जानिए
Bihar Chunav 2020 बिहार विधानसभा चुनाव में इस बार जंगलराज का जिक्र छिड़ रहा है। एनडीए के नेता 15 साल के राबड़ी-लालू शासन को लेकर आक्रामक हो गए हैं। पीएम मोदी ने जंगलराज की तुलना कोरोना वायरस से की है। आखिर क्याें जंगलराज का मुद्दा भारी है पढ़िए पूरी रिपोर्ट
पटना, राज्य ब्यूरो। Bihar Chunav 2020 विकास के नाम पर शुरू हुआ विधानसभा चुनाव का प्रचार अब धीरे-धीरे कानून व्यवस्था की पुरानी हालत की याद दिलाने पर अधिक समय देने लगा है। पहले चरण के मतदान के दिन ही राजनीतिक दलों का सुर बदल गया। एनडीए के नेता विकास की चर्चा तो कर रहे हैं, लेकिन उनका अधिक जोर लोगों को यह याद दिलाने पर है कि लालू-राबड़ी के समय कानून व्यवस्था की हालत कितनी खराब थी।
जंगलराज की तुलना वैश्विक महामारी कोरोना से भी
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बुधवार को तीन चुनावी सभाओं को संबोधित किया। उन्होंने पहली बार राज्य के कथित जंगलराज की तुलना वैश्विक महामारी से की। वे बोले-बिहार में दो बड़े खतरे हैं - कोरोना और जंगलराज। एक से बचने के लिए दो गज की दूरी और मास्क तथा दूसरे से बचने के लिए एनडीए को वोट करना जरूरी है। प्रधानमंत्री पहले भी जंगलराज की चर्चा करते रहे हैं। 2015 के विधानसभा चुनाव में उन्होंने राजद का पूरा नाम बताया था- रोजाना जंगलराज का डर। लेकिन, उस समय जंगलराज से अधिक विकास की चर्चा करते थे।
सभी नेताओं के भाषण के केंद्र में कुशासन
पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा के भाषण का केंद्रीय विषय भी लालू-राबड़ी का कथित कुशासन ही है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार विकास और पूर्ववर्ती शासन की चर्चा पहले की तरह अब भी बराबरी में कर रहे हैं, लेकिन वह भी जंगलराज का जिक्र करना नहीं भूलते। दूसरे चरण के प्रचार में मुख्यमंत्री राजद के रोजगार वाले वादे को झुठलाने के लिए कुछ नई चीजों को जोड़ रहे हैं। गुरुवार की चुनावी सभाओं में उन्होंने कहा-10 लाख क्यों, एक करोड़ लोगों को नौकरी दे दो। 15 वर्ष में एक करोड़ लोग इंटर पास कर चुके हैं। रुपया कहां से लाओगे? क्या जेल से लाओगे। अब कह रहे हैं-क्या आसमान से लाओगे?
लोक लुभावन वादे की हवा निकालने को भी जंगलराज का सहारा
रणनीति के स्तर पर बदलाव यह भी आया है कि भाजपा के नेता अब मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की खुलकर तारीफ करने लगे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सासाराम में आयोजित अपनी पहली चुनावी सभा में नीतीश सरकार की तारीफ की। लेकिन, साथ में यह भी कहा था कि केंद्र में यूपीए की सरकार के दौरान राज्य को अपेक्षित सहयोग नहीं मिला। जदयू कार्यकर्ताओं के बीच उनके भाषण के इस अंश पर प्रतिक्रिया हुई। शायद फीडबैक के आधार पर ही प्रधानमंत्री ने अभियान के दूसरे दौर में कहा-डेढ़ दशक में बिहार नीतीश जी की अगुआई में कुशासन से निकल कर सुशासन की ओर आया है।
राजद का सबसे लोक लुभावन वादा है-10 लाख लोगों को सरकारी नौकरी। इस वादे की हवा निकालने के लिए भी कानून-व्यवस्था का सहारा लिया जा रहा है। खुद प्रधानमंत्री ने इस पर टिप्पणी की-सरकारी छोडि़ए, महागठबंधन के सत्ता में आते ही नौकरी देने वाली प्राइवेट कंपनियां भी बिहार से भाग जाएंगी।
स्थानीय मुददों पर कांग्रेस का जोर
महागठबंधन के दल भी रणनीतिक स्तर पर बदलाव कर रहे हैं। कांग्रेस पूरी तरह रोजगार के सवाल पर प्रचार कर रही है। कृषि से संबंधित नए कानूनों का हवाला देकर वह किसानों को गोलबंद कर रही है। पहले चरण के प्रचार में उसका अधिक जोर राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय विषयों पर था। वह धीरे-धीरे स्थानीय मुद्दों की ओर बढ़ रही है। राहुल गांधी ने चंपारण की सभा में चीनी मिलों की बंदी का मामला तल्खी से उठाया। कांग्रेस के दूसरे नेता राज्य के दूसरे हिस्से में बंद पड़े कल कारखानों का सवाल उठा रहे हैं। इन्हें फिर से चालू करने का वादा कर रहे हैं। कांग्रेस तत्कालिक विषयों को भी उठा रही है। गुुरुवार को रणदीप सिंह सुरजेवाला ने मुंगेर मसले को लेकर पुलिसिया कार्रवाई पर भी सवाल उठाए।
राजद का सामाजिक बदलाव की चर्चा से परहेज
राजद नेता तेजस्वी यादव के शुरुआती चुनावी भाषण में लालू-राबड़ी शासन काल में हुए सामाजिक बदलाव का जिक्र होता था। वे बताते थे कि कैसे उस शासन में गरीबों की इज्जत बढ़ी थी। उन्हें बताया गया कि अतीत की चर्चाओं से नुकसान हो सकता है। दूसरे दौर में वे विकास, रोजगार, कारखानों की बंदी, रोजगार के लिए पलायन जैसे विषयों पर जोर दे रहे हैं। बेशक वे कानून व्यवस्था की खराब हालत की भी चर्चा करते हैं, लेकिन, इसके लिए उन्होंने नीतीश कुमार के 15 वर्षों के शासन का चयन किया है।