बिहार उपचुनाव: दोनों तरफ बराबर की आग लगाएगा परिणाम
हार-जीत किसी की भी हो मगर यह उपचुनाव ऐसे समय में हुआ है जब प्रदेश में कुछ माह पहले ही नया गठबंधन बना है, और अगले आम चुनाव में बहुत समय नहीं है।
पटना [जेएनएन]। लोकसभा की एक और विधानसभा की दो सीटों पर हुए उपचुनाव का परिणाम बुधवार सुबह से ही आना शुरू हो जाएगा। हार-जीत किसी की भी हो मगर यह उपचुनाव ऐसे समय में हुआ है जब प्रदेश में कुछ माह पहले ही नया गठबंधन बना है, और अगले आम चुनाव में बहुत समय नहीं है।
उपचुनाव का नतीजा सरकार पर तो कोई असर नहीं डालेगा, परन्तु निश्चित रूप से राजग और महागठबंधन, दोनों की भावी रणनीति को प्रभावित करेगा। सियासी तकाजे ने नतीजे को उम्मीदवारों से अधिक दलों के लिए महत्वपूर्ण बना दिया है।
यह भी इत्तेफाक है कि प्रदेश के तीन कोनों में यह तीनों सीटें स्थित हैं। ऐसे में बिहार के तीन कार्नर की सियासी नब्ज भी उपचुनाव टटोल लेगा। तीनों सीटें सिटिंग सांसद या विधायक के निधन के कारण रिक्त हुई हैं। राजनीतिक हलके में यह बात आरंभ से ही उठती रही है कि जिस दल की सीट थी, उसके ही प्रत्याशी के पक्ष में माहौल बनेगा। इसी सोच के आधार पर जदयू ने शुरुआत में उपचुनाव में हिस्सा नहीं लेने का फैसला लिया था। मगर बाद में भाजपा के आग्रह पर जहानाबाद में प्रत्याशी उतारा।
तीनों सीटों के संभावित नतीजे पर नजर डाली जाए तो भभुआ में अगर कांग्रेस प्रत्याशी की हार होती है तो पार्टी छोड़ जदयू में आए पूर्व प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष डा. अशोक चौधरी अपने दावे में सही साबित होंगे। उनका आरोप था कि पार्टी ने गलत प्रत्याशी मैदान में उतारा है। लेकिन इस सीट पर जीत कांग्रेस के लिए कई मायनों में वरदान साबित होगी।
डा. चौधरी के दावे को गलत बताने के साथ यह अगड़ी जाति में कांग्रेस के लिए फिर से आकर्षण पैदा होने का संकेत भी दे जाएगा। भभुआ मूल रूप से अगड़ी जाति की अधिक आबादी वाली सीट है। वहीं, जहानाबाद में तो सत्तारूढ़ जदयू की प्रतिष्ठा दाव पर है।
जदयू की इस सीट पर जीत सरकार की नीतियों पर जनता की मुहर जैसी होगी। नीतीश कुमार के फिर से राजग में वापस आने के फैसले पर लोगों की सहमति भी होगी। यह भी साबित होगा कि उपचुनाव से ठीक एक दिन पहले राजद द्वारा राज्यसभा चुनाव में खेले गए 'फारवर्ड कार्ड' का मतदाताओं ने बहुत नोटिस नहीं लिया है। मगर इस सीट पर राजद की जीत उसे जदयू पर राजनीतिक हमला तेज करने की नई ऊर्जा दे जाएगी। यह भी अंदाजा करा जाएगी कि दलितों एवं अतिपिछड़ों को राजद अपनी ओर आकर्षित करने में कामयाब हुआ है। अररिया सीमांचल का हिस्सा है।
2014 लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी की लहर के बावजूद भाजपा को सीमांचल की चारों सीटों-अररिया, पूर्णिया, किशनगंज और कटिहार, पर कामयाबी नहीं मिली थी। तब जदयू, राजद के साथ था। भाजपा की इस सीट पर जीत का एक यह भी पहलू होगा कि बिहार में घ्रुवीकरण की राजनीति आने वाले दिनों में असरदार साबित होगी। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष नित्यानंद राय के चुनावी प्रचार के दौरान बयानों ने घ्रुवीकरण का प्रयास किया था।
लेकिन राजद प्रत्याशी की जीत जदयू के मुस्लिम मतदाताओं पर असरअंदाज नहीं होने के अलावा भाजपा की सीमांचल में रणनीति पर प्रश्न चिह्न भी लगा देगी। सीमांचल की सभी चारों सीटें मुस्लिम बहुल हैं। उपचुनाव का नतीजा तेजस्वी यादव के लिए भी बहुत अहम है। लालू प्रसाद इस समय जेल में हैं और पार्टी का प्रचार अभियान उन्होंने ही संभाल रखा था।