Bihar Assembly Election : चुनाव में उम्मीदवारी के लिए युवाओं की अब चर्चा नहीं, टिकट को लेकर बुजुर्ग हैं इत्मीनान
Bihar Assembly Election विधान सभा चुनाव में दम खम दिखाने को तैयार हैं 60 और 70 पार के उम्मीदवार। पढ़िए युवा उम्मीदवार बनाम बुजुर्ग उम्मीदवार पर दिलचस्प स्टोरी।
पटना, अरुण अशेष । Bihar Assembly : सरकार साठ पार के लोग चलाएं तो उनके अनुभव का लाभ राज्य की जनता को मिलता है। लेकिन, सरकारी सेवकों की कार्यदक्षता पचास की उम्र पार करने के बाद संदिग्ध हो जाती है। इस समय जबकि उम्र के आधार पर सरकारी सेवकों की सत्य निष्ठा और आचरण की परख हो रही है। उन्हें सेवा से हटाने के उपाय किए जा रहे हैं, बुजुर्ग राजनेता अपनी अगली पारी के लिए बेफिक्र हैं। नौजवानों को टिकट देने की घोषणाएं जो पांच साल तक होती रहती हैं, इस समय गौण हो गई हैं।
2015 के विधानसभा चुनाव में जीत हासिल करने वाले कम से कम 50 विधायक ऐसे हैं, 2020 के विधानसभा चुनाव का पर्चा दाखिल करने के समय जिनकी उम्र साठ के पार होगी। 20 तो सत्तर पार करके नामांकन का पर्चा दाखिल करेंगे। ये तो मौजूदा विधायक हैं। नामांकन की तैयारी कुछ बुजुर्ग पूर्व विधायक भी कर रहे हैं। मसलन, रमई राम। वे इस साल 77 के हो गए हैं। बोचहा से राजद टिकट के गंभीर दावेदार हैं। टिकट लेना न लेना उनकी मर्जी पर है।
70 पार के ये उम्मीदवार फिर चुनाव को हैं तैयार
सरकार के ऊर्जा मंत्री बिजेंद्र प्रसाद यादव सुपौल से 1990 से लगातार चुनाव जीतते हैं। बेशक उनमें ऊर्जा भी है। पर यह भी सच है कि उम्र के 74 वें पड़ाव पर खड़े हैं। नगर विकास मंत्री सुरेश शर्मा पर भले ही उम्र का असर आपको नजर न आए, वह भी 74 साल के हैं। बुजुर्ग विधायकों में से सिर्फ दो-सदानंद सिंह और रामदेव राय चुनाव लडऩे को लेकर उत्सुक नहीं हैं। राय 77 साल के हैं। इन दिनों गंभीर रूप से बीमार भी हैं। बाकी किसी माननीय ने चुनाव के प्रति अनिच्छा जाहिर नहीं की है। पंचायती राज मंत्री कपिलदेव कामत 69 के हैं। तबीयत ठीक नहीं रहती। फिर भी पार्टी टिकट दे तो चुनाव मैदान में उतर जाएंगे। लघु जल संसाधन मंत्री नरेंद्र नारायण यादव भी इसी उम्र के हैं। पथ निर्माण मंत्री नंदकिशोर यादव बीते 26 अगस्त को 67 वर्ष के हो गए हैं। अगले चुनाव के लिए अपने क्षेत्र में सक्रिय है। 76 साल के जीतनराम मांझी की सक्रियता किसी युवा से अधिक है। खुद रूक जाएं तो अलग बात है। कोई दूसरा चुनाव लडऩे से रोक नहीं सकता है। आखिर अपनी पार्टी किस दिन के लिए है। किसी दूसरे दल से तालमेल भी करें, तब भी उनकी उम्मीदवारी पर सवाल नहीं है। वैसे, बिना चुनाव लड़े उच्च सदन में जगह मिल जाए, वे इसके लिए भी तैयार हैं।
ये हैं 70 पार के माननीय
राघव पांडेय-बगहा-भाजपा, भागीरथी देवी-रामनगर-भाजपा, डा. अजय कुमार सिंह-रक्सौल-भाजपा, रामचंद्र सहनी-सुगौली-भाजपा, दिनकर राम-बथनाहा-भाजपा, अर्जुन प्रसाद यादव-निर्मली-राजद, अरुण कुमार यादव-सहरसा-राजद, महेश्वर प्रसाद यादव-गायघाट-राजद (हाल में जदयू में शामिल हो गए हैं।),व्यासदेव प्रसाद-सिवान-भाजपा, पन्ना लाल पटेल-जदयू-जदयू, रामानंद सिंह-परबत्ता-जदयू, सुबोध राय-सुल्तानगंज-जदयू, जनार्दन मांझी-अमरपुर-जदयू एवं सत्यदेव सिंह-कुर्था-जदयू। भाजपा को छोड़ किसी दल में उम्र के आधार पर टिकट से वंचित करने की परम्परा नहीं है।
जनता इनकी परीक्षा लेती है
सरकारी सेवकों से उलट जनप्रतिधियों को हर पांच साल पर जनता के बीच परीक्षा देने के लिए जाना पड़ता है। तर्क हो सकता है कि जनता अगर उम्र के आधार पर प्रतिनिधियों का चयन नहीं करती है तो राजनीतिक पार्टियां उन्हें उम्मीदवार बनाने से क्यों परहेज करे। लेकिन, इस तर्क में युवाओं की दावेदारी खत्म हो जाती है। खासकर उन क्षेत्रों में जहां एक ही माननीय पांच-सात चुनावों तक जन प्रतिनिधि बने रहते हैं।
युवाओं की चर्चा गौण
इस समय सभी दल युवाओं को टिकट देने के मामले में चुप हैं। उम्र के बदले सामाजिक समीकरण के आधार पर जीत की संभावना देखी जा रही है। इसी हिसाब से उम्मीदवार खोजे जा रहे हैं। संयोग है कि दो बड़े दलों में युवाओं को अधिक टिकट देने का वादा करने वाले नेता परिदृश्य से ओझल हैं। राजद में तेज प्रताप यादव ने युवाओं को उम्मीदवार बनाने की वकालत सबसे अधिक की थी। बेचारे अपने दो-चार लोगों को टिकट दिलाने के लिए ही परेशान हैं। 2018 में जदयू के तत्कालीन राष्ट्रीय उपाध्यक्ष प्रशांत किशोर ने कहा था-युवाओं और महिलाओं को टिकट में वरीयता मिलेगी। किशोर अभी पश्चिम बंगाल में तृणमूल के लिए चुनावी रणनीति बना रहे हैं। जदयू से उनका नाता टूट गया है। भाजपा और कांग्रेस जैसी पार्टियों में उम्मीदवारों का फैसला केंद्रीय स्तर से ही होता है।