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Bihar Assembly Elections 2020: कांग्रेस के अवसान और भाजपा के उत्थान के बीच सीधा रिश्ता

कांग्रेस के नेताओं को भाजपा आसानी से पचा लेती है। कमोवेश यही मनोदशा कांग्रेस के पुराने मतदाताओं की भी है।

By Akshay PandeyEdited By: Published: Wed, 05 Aug 2020 04:39 PM (IST)Updated: Fri, 07 Aug 2020 02:59 PM (IST)
Bihar Assembly Elections 2020: कांग्रेस के अवसान और भाजपा के उत्थान के बीच सीधा रिश्ता
Bihar Assembly Elections 2020: कांग्रेस के अवसान और भाजपा के उत्थान के बीच सीधा रिश्ता

अरुण अशेष, पटना। राज्य में कांग्रेस के अवसान और भाजपा के उत्थान के बीच सीधा रिश्ता है। कांग्रेस के नेताओं को भाजपा आसानी से पचा लेती है। कमोवेश यही मनोदशा कांग्रेस के पुराने मतदाताओं की भी है। उनका बड़ा हिस्सा भाजपा को वोट देने में संकोच नहीं करता है। कांग्रेस से भाजपा में आए डॉ. सीपी ठाकुर इसके उदाहरण हैं। भाजपा ने उन्हेंं इस तरह अपनाया कि उनके पुत्र विवेक ठाकुर भी पार्टी के लिए स्वीकार्य हो गए। जनसंघ के जमाने से जुड़े उन भाजपाइयों की तादाद बहुत कम होगी, जिनकी पीढ़ियां राज्यसभा में गई हैं।

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डॉ. ठाकुर का नाम बड़ा है। भाजपा में आए उन कांग्रेसियों की संख्या भी कम नहीं है, जो उनकी तरह असरदार नहीं, फिर भी पार्टी में उनका सम्मान है। ओहदा है। पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. जगन्नाथ मिश्र के पुत्र नीतीश मिश्र भाजपा के नेता हैं। उन्हेंं पिछली बार झंझारपुर से उम्मीदवार बनाया गया था। कांग्रेस में नामचीन ललित नारायण मिश्र के स्वजन भी भाजपा में स्वीकार किए गए। डॉ. जगन्नाथ मिश्र राज्य में कभी कांग्रेस के पर्याय हुआ करते थे। 

भाजपा में ऐसे जा रहा है कांग्रेस का आधार

चुनावी वर्ष : सीटों पर उम्मीदवार : जीत : वोट प्रतिशत  

1990 : कांग्रेस : 323 : 71    24.78

भाजपा : 237 : 39 : 11.61

1995 : कांग्रेस : 320 : 29 : 16.03

भाजपा : 315 : 41 : 13.00

2000 : कांग्रेस : 324 : 23 : 11.01

भाजपा : 168 : 67 : 14.06

2005 (फरवरी) : कांग्रेस : 84 : 10 :  5.00

भाजपा : 103 : 37 : 10.07

2005 (अक्टूबर) : कांग्रेस: 51 : 09: 6.09

भाजपा : 102: 55: 15.65

2010 : कांग्रेस : 243 : 04 : 8.38

भाजपा : 102 : 91 : 16.46

2015 : कांग्रेस : 41 : 27 : 6.07

भाजपा : 157 : 53 : 21.81

दोनों दलों के बीच कमजोरी और मजबूती का अंतर्द्वंद्व

नेतृत्व के स्तर पर ही भाजपा में कांग्रेस के नेताओं का सम्मान नहीं है। यह चुनाव परिणामों में भी परिलक्षित होता है। 1990 में कांग्रेस राज्य की सत्ता से अलग हुई। तब से लेकर अबतक यही सिलसिला चल रहा है। कांग्रेस कमजोर होती है। भाजपा मजबूत हो जाती है। कांग्रेस थोड़ी तंदुरुस्त होती है। भाजपा की सेहत बिगडऩे लगती है। 1985 में कांग्रेस बिहार विधानसभा की 196 सीटें जीती थी। 1990 में 71 पर आ गई। उधर भाजपा 16 से बढ़कर 39 पर पहुंच गई। कांग्रेस मुख्य विपक्षी पार्टी बनी। भाजपा ने 1995 में उससे मुख्य विपक्षी पार्टी का ओहदा भी छीन लिया। उस साल कांग्रेस 29 पर आ गई। भाजपा 39 से 41 पर पहुंची। 2000 में कांग्रेस 23 सीट पर जीती। भाजपा 67 पर पहुंच गई। यह 1990 में कांग्रेस की चुनावी उपलब्धि के करीब है। उसके बाद के चुनावों में भी कांग्रेस-भाजपा की हार-जीत का यही हिसाब रहा है। 2005 में कांग्रेस नौ सीट पर जीती। उधर भाजपा 55 पर ठहर गई, लेकिन 2010 में कांग्रेस चार पर सिमटी तो भाजपा 91 सीटों पर जीत गई। 2015 में महागठबंधन का दबदबा कायम हुआ। कांग्रेस चार से 27 पर पहुंची। इधर भाजपा 91 से 53 पर आ गई।

सत्ता की स्वतंत्र दावेदारी से अब भी दूर

कांग्रेस के आधार का बड़ा हिस्सा लेने के बावजूद भाजपा अबतक सत्ता की स्वतंत्र दावेदारी की हैसियत में नहीं आ सकी। उसे कांग्रेस से एक मामले में बढ़त हासिल हुई कि उसकी मदद से सत्ता में पहुंचा जाता है। वह इसका उपयोग अपना दायरा बढ़ाने के लिए करती है। बीते 30 वर्षों में कांग्रेस को यह अवसर सिर्फ 2000 में हासिल हुआ था, जब उसकी मदद के बिना राजद की सरकार का बनना नामुमकिन था, मगर कांग्रेस ने उस अवसर का इस्तेमाल जनता के बीच यह संदेश देने के लिए किया कि सत्ता ही उसके लिए सर्वोपरि है। वह अदभुत सरकार थी, जिसमें कांग्रेस के एक को छोड़ सभी विधायक मंत्री बन गए थे। विधानसभा अध्यक्ष का बड़ा पद भी उसके हिस्से में आया था।


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